शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में यूएसए और अमेरिका के पश्चिम में 11 सितंबर 1893 को पहली बार लोगों ने प्राचीन भारत के दृढ़, उत्साही, प्रतिध्वनित स्वर और भारतीय दर्शन और संस्कृति का संदेश सुना। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले दो भारतीय प्रतिनिधियों ने भारत की आध्यात्मिक धरोहर को जगाया और पश्चिमी दुनिया में प्रवेश किया।
इनमें से एक स्वामी विवेकानंद थे जिनकी शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में सफलता आज हर किसी की याद में ताजा है। लेकिन उसी सम्मेलन में अन्य भारतीय जैन धर्म के प्रतिनिधि, वीरचंद राघव जैन गांधी भी थे , जिन्होंने सम्मेलन में अपने भाषण से धाक जमाई थी और भारत के वैभव का जोरदार प्रदर्शन किया था ।
शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन के लिए मूल निमंत्रण जैन आचार्य विजयानंदसूरिजी (आत्मारामजी) महाराज को भेजा गया था, लेकिन चूंकि वे जैन आचार संहिता के उल्लंघन के कारण विदेश यात्रा नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने जैन दर्शन के प्रख्यात विद्वान् वीरचंद जैन गांधी को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा था।
जैन धर्म पर वीरचंद राघवजी गांधी के व्याख्यानों की खास बात यह थी कि उन्होंने उस जैन विचारधारा को प्रदर्शित किया जो जीवन में अहिंसा और विचारों में अनेकांत का अभ्यास करती है।
ये इतिहास की वो बातें हैं जो बताई ही नहीं जातीं ।
प्रो अनेकान्त कुमार जैन