परिस्थितियों के अनुसार सहज भाषा शैली का उपयोग करने से श्रवण करने वाले के परिणाम भी सहज ही होते हैं क्योंकि असहज(कठिन) भाषा के उपयोग से श्रोता उसको समझने में ही उलझ कर रह जाता है अपितु असहज भाषा का उपयोग अनुचित नही है किंतु उसके परिणाम अपेक्षित नही आ पाते हैं जैसे जल को पानी या जल कहने से सभी समझ जाते हैं जो कि सहज है यदि उसे तोय,अम्बु,नीर आदि शब्द का प्रयोग करें तो समझना सहज नही होगा जबकि वे अनुचित शब्द नही है।
अतः भाषा शैली की सहजता अति आवश्यक है जम्बू स्वामी की तपोस्थली बोलखेड़ा में विराजमान अभिक्ष्ण ज्ञानोपयोगी आचार्य श्री वसुनंदी महाराज ने अपने प्रवचनों में शब्दों की सहजता की विस्तृत व्याख्या की।
संजय जैन बड़जात्या कामां