18 जुलाई 2022/ श्रावण कृष्ण पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
चातुर्मास जीने के लिए नहीं,जीने दो के लिए करते हैं–सुधासागरजी महाराज
मुनि पुंगव श्री सुधा सागरजी महाराज ने की वर्षायोग की स्थापना
सैकड़ों भक्तों ने की चातुर्मास कलश की स्थापना
ये चातुर्मास जीयो के लिए नहीं जीने दो के लिए किया जा रहा है ये वर्ष योग संस्कृति की ध्वजा को फहराने के लिए हैं चातुर्मास में तुम अपने लिए मत बैठो तुम कुछ जीवों को जीने दो साधु चातुर्मास तो जंगल में भी कर सकते है पेड़ के नीचे भी हो सकता है आज आधा मंत्र सिद्ध हैं जी तो सकते हैं लेकिन जीने दो को सिद्ध नहीं कर पा रहा पंचम काल में साधु सिद्ध क्षेत्र नहीं वना सकता वह तीर्थ क्षेत्र वना सकता है और यहां चतुर्मास संस्कृति के निर्माण के लिए हो रहा है ललितपुर के चातुर्मास को दो सूत्र दे दिए चौबीस घंटे में कुछ ना कुछ नया करना है और जव मेरे गुरु महाराज एक स्थान पर रूक गये तो मैं भी ललितपुर की सीमा के बाहर नहीं जाऊंगा तुम्हें मेरी इमान दारी पर विश्वास है कि नहीं लेकिन आप लोगों को यहां प्रतिदिन आकर विश्वास दिलाना होगा उक्त आशय के उद्गार ललितपुर में चातुर्मास स्थापना समारोह को संबोधित करते हुए मुनि पुंगव श्री सुधा सागरजी महाराज ने व्यक्त किए।
पहली वार देश भर के भक्त कर रहे हैं एक हजार कलशों की स्थापना
मध्यप्रदेश महासभा के संयोजक विजय धुर्रा ने ललितपुर उत्तर प्रदेश से लोटकर वताया कि देश में पहली वार एक साथ एक हजार आठ भक्ति कलशों के साथ ही अमृत सिद्धि सर्वासिद्धि कलश सर्वासिद्धि कलश चातुर्मास कलश सहित भक्ति कलशों की स्थापना की गई जिसका सौभाग्य समाज के अध्यक्ष अनिल अंचल मन्दिर संयोजक राजेन्द्र जैन सहित अन्य भक्तों ने प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भइया के मंत्रोच्चार अमित पंडरिया सशाक सिंघ ई के मधुर भजनों के साथ कलशों की स्थापना की समारोह का शुभारंभ राजीव लंकि वुक परिवार द्वारा ध्वजारोहण के साथ हुई इस दौरान अखण्ड दीप की स्थापना अखलेश जैन गदियाना परिवार ने की इस दौरान मुनि पुंगव श्री सुधा सागरजी महाराज मुनिश्री पूज्य सागरजी ऐलक श्री धैर्य सागरजी क्षुल्लक श्री गम्भीर सागरजी महाराज ससंघ ने ब्रहद मंत्रोच्चार के साथ चारों दिशाओं की दुरी को दृष्टि में रखकर चातुर्मास की स्थापना की।
साधु कितना भी चाहें अपने चरण नहीं दे सकता
उन्होंने कहा कि चेतना एक है अचेतन की संख्या असंख्यात है वहुमत की दृष्टि से भी वात करें तो भी अचेतन राशि का वहुलता है लेकिन गुणो की दृष्टि से वात करें तो जीव द्रव्य में निज शक्ति का जागरण स्वयं के द्वारा करने की शक्ति होती है
संत इस शक्ति को प्राप्त करते रहते हैं साधु कितना भी चाहें वह अपने चरण भक्तों को नहीं दे सकता चाहे वह आपको कितना ही चाहें लेकिन साधु के चरणों का गंधोदक लेकर आप अपना कल्याण कर सकते हैं सम्यक दर्शन आत्मा में प्रकट कर सकते है
उन्होंने कहा कि मैं सदा अपनी आत्मा पर निगरानी रखुगा में होस में जीऊंगा होश में चलूंगा इतने से काम नहीं चलेगा सबको को अपना चहरा अच्छा लगता है काल कुवड़ा भी अपने चहरे को यु यु देखता है आप अपनी आत्मा में डूबे हैं फिर भी आत्मा को प्राप्त नहीं कर सकते जैसे आपको अपनी आत्मा अच्छी लगती है वैसे ही आपको सारे जगत की आत्माओं में गुण नजर आए जव सारी दुनिया को धतुरे में ज़हर नजर आये तव सम्यक दृष्टि को उसमें औषधि नजर आयेंगी और सच मैं जो धतुरा जहर है उसे भी वैध औषधि की तरह प्रयोग करते हैं
जीओ धर्म है और जीने दो संस्कृति
उन्होंने कहा कि महावीर ने एक सूत्र दिया तुम जियो व औरो को जीने दो
जीयो धर्म है और जीने दो संस्कृति है स्वयं जियो और दुसरे को जीने दो का उपाया करो धर्म से वड़ा होता है संस्कृति का निर्माण आज जो आप करने जा रहे हैं वह संस्कृति का निर्माण हैं।
धर्मात्मा पर संकट आये तो उसकी रक्षा करना संस्कृति है
मुनि पुंगव ने कहा कि साधु होना अलग चीज है गुरु होना अलग चीज है आपकी आंख से देखते हुए मेरे पेर में कांटे ना लग जाए ये धर्म है और
दुनिया के किसी धर्मत्मा पर संकट आ जाये तो उसकी रक्षा करना संस्कृति है तुम किस वल पर वोले हो कि ललितपुर का चातुर्मास कैसे ऐतिहासिक वने इसका उपाय आपको करने का सवूत आपके पास क्या है चार महीने के पहले देखते थे