कोरोना न पड़ जाये,#वर्षायोग पर भारी- लापरवाही की ऐसी भूलों से शायद हम कुछ नहीं सीखें

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सान्ध्य महालक्ष्मी
कोरोना पहली लहर से ज्यादा दुर्दान्त रहा, दूसरी लहर में। इसने जैन समाज की अमूल्य विरासत से 150 के लगभग साधु-संतों को छीन लिया। इसलिए नहीं कि उन्होंने लापरवाही की थी, बल्कि इसलिए कि हम लोगों ने कोरोना को उन तक पहुंचाया था। लापरवाही की ऐसी भूलों से शायद हम कुछ नहीं सीखें।

एक बार फिर बैक-टू-बैक दूसरा चातुर्मास कोरोना की लहर में आया है, और हमें अपनी तो छोड़िए, अपने संतों की भी मानो कोई चिंता नहीं है। पिछले कुछ दिनों में सैकड़ों वीडियो-फोटो देख लिए विहार के, स्वागत के। जिस फोटो – वीडियो में अगर 20 भक्त भी हैं, तो कोरोना दिशा-निर्देशों का उल्लंघन स्पष्ट दिख जाएगा।

कोरोना में जहां एक तरफ अनावश्यक शो बाजी पर लगाम लगाने के लिये सरकारी आदेश मजबूरी बन गये हैं, वरना हम तो फिर उसी रंग में मानो डूबने को तैयार हैं। ये साधु संत चंद भक्तों की नहीं, पूरे समाज की अमूल्य धरोहर हैं। आज जैन संस्कृति, जैन धर्म की पहचान पूरे विश्व में होती हैं, वो हमारी 44.51 लाख की गिनती से नहीं, बल्कि इन चंद हजार संतों के कारण ही होती है।

अभी कोरोना गया नहीं है, उसका डेल्टा वेरिएंट और भी खतरनाक रूप से हमारे दरवाजों पर दस्तक देने को मानो आतुर है, बस हमने गलती की और उसने एंट्री की।

कोरोना धन्यवाद का भी पात्र है, इसने लंबे चौड़े टेंट, पोस्टर, होर्डिंग्स, फ्लैक्स, आमंत्रण पत्रिकाओं को लगातार दूसरे वर्ष दूर रखकर हमें उसी जगह लाकर खड़ा कर दिया है, जहां कहा जाता था कि चातुर्मास दर्शन के लिये हैं, प्रदर्शन के लिए नहीं।
वर्षा का योग यानि ज्ञान बरसे, और उससे जुड़े, उसमें अपने को सरोबार करें, पर दूरी बनाकर, मॉस्क पहनकर, वेक्सीन लगवाकर ही, दर्शन करें। इस बार चरण नहीं, आचरण छुए, भक्त बने, कम्बख्त नहीं। यह जैनों की नहीं, पूरे अहिंसारूपी धर्म प्रधान विश्व की अनमोल धरोहर है।

ढील मिली है, पर लापरवाही बिलकुल नहीं। पिछले कुछ दिनों में जैसा देखा जा रहा है, वह खतरे की घंटियां स्वत: बजाने लगता है। अपनी जिम्मेदारी निभायें, अचल तीर्थों की सुरक्षा करिये। कोरोना उनके पास नहीं जाता, उसको पहुंचाने वाले केवल हम लोग ही हैं। क्या आप चाहते हैं ऐसा हो, नहीं ना, तो बस ज्ञान अर्जन कीजिये, तड़क-भड़क नजदीकियां बिल्कुल नहीं।

– शरद जैन, संपादक