यदि तुम कष्ट साध्य तपस्या, जप, संयम आदि का पालन न कर सको, तो तुम सरल बन जाओ : भगवान महावीर

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भगवान महावीर जयंती 25 अप्रैल विशेषदुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढा़या भगवान महावीर ने। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने जिन सिद्धांतों का उपदेश 2500 वर्ष पूर्व दिया था वह सिद्धांत आज विश्व शांति के लिए बहुत आवश्यक हो गए हैं सत्य अहिंसा अपरिग्रह के यह सिद्धांत वर्तमान संदर्भ में भी उतने ही उपयोगी हैं जितने ढाई हजार वर्ष पूर्व उपयोगी थे जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में भगवान महावीर अंतिम तीर्थंकर थे

वह जैन धर्म को पुनः प्रकाश में लाए और उन्होंने अहिंसा को व्यापक धर्म बनाया आजकल यज्ञों में जो पशु हिंसा नहीं होती वह भगवान महावीर स्वामी का ही प्रभाव है भगवान महावीर के समय स्त्री, शूद्र आदि शास्त्र पढ़ने और धर्म आचरण करने के अधिकार से वंचित थे उन्हें भगवान महावीर ने जिन धर्म में दीक्षा दी और सबको समान अधिकार एवं समान स्तर प्रदान किया वर्गवादी, आश्रम वादी, जातिवादी, सामंतवादी विचारों के मूल्यों का निर्मूलन करके भगवान महावीर ने समतावादी,मानवतावादी, जनतंत्र वादी एवं अहिंसा अनेकांत और स्यादवादी जीवन मूल्यों को समाज मे पुनः स्थापित किया

भगवान महावीर ने जन्म पर आधारित जाति, धनसत्ता एवं वैभव के आधार की व्यवस्था को मानवीय मूल्यों , सत्कर्म की वरिष्ठता के आधार पर स्थापित किया आज जब संसार अनेक दृष्टियो से व्याकुल हो रहा है तब इस व्यापक जीवन की मुख्य उलझन का हल ढूंढना जरूरी हो गया है इसके लिए भगवान महावीर के सिद्धांतों को अपनाने की आवश्यकता है भगवान महावीर के स्मरण और चिंतन से हम ऐसी प्रेरणा प्राप्त करें जिससे हम अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन का उद्धार कर सकें, भगवान महावीर की जन्म जयंती के अवसर पर हमें उनके सिद्धांतों पर चलने का संकल्प लेना चाहिए

भगवान महावीर ने अपने काल में अनेक स्थानों पर बिहार करके समस्त लोक में अपनी दिव्य ध्वनि से नवजागरण किया अपने विचारों से भगवान महावीर ने युगों से चली आ रही अनेक रूढ़ धारणाओं को तोड़ा और मानवता के लिए अभिशाप रूप अनेक परंपराओं में परिवर्तन भी किया उनके चरित्र में व्याप्त लोक कल्याणकारी महानतम उपलब्धियां आज हमें एक अच्छा समाज बनाने की प्रेरणा दे रहे हैं जिस पर चलने का संकल्प लेकर हमे अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए

भगवान महावीर ने कहा था- यदि तुम कष्ट साध्य तपस्या, जप, संयम आदि का पालन न कर सको, तो मेरे एकमात्र उपदेश का पालन करो कि तुम सरल बन जाओ। इस आत्मा पर अनंतकाल से माया एवं मिथ्या ने घेरा डालकर रखा है, जिसको बिना कठोर तप के तोड़कर बाहर आना बहुत कठिन है, अत: तुम सरल बनो।

सरल बनने का तात्पर्य होता है कि निष्कपट बनो, जो अन्दर हो, वही बाहर दिखे। अन्दर कुछ और मुंह से कुछ सरलता का नहीं, बनावटी पन का नमूना होता है।

सरल यानि सीधा, खरा, ईमानदार, निश्छल, सही या यथार्थ होना है।
सरलता महा धर्म है एवं कपट घोर अधर्म। सरल व्यक्ति निष्कपट एक शिशु के समान होता है, सबको समान मानता है, किसी से घृणा तथा बैर नही करता, किसी छलकपट भी नहीं करता और न ही क्रोध। किसी से कटु वचन नहीं बोलता, झगड़ा नहीं करता, कभी हिंसा का सहारा नहीं लेता, वह मन, वचन एवं कार्य से निर्भर रहता है।

महावीर स्वामी का कहना था कि जिसके मन मे धर्म है उस मनुज को देवता करते हैं सदैव नमस्कार। सम्पूर्ण विश्व को पंचशील सिद्धांत बतलाकर, महावीर स्वामी ने किया सब पर उपकार।।

सरिता जैन, मुरैना