“महानता के शिखर : -आचार्य श्रीवर्धमानसागरजी महाराज ”
धर्म व्यक्ति को उन्नत करता है | उन्नत व्यक्ति की विचारधारा सेवा, त्याग और सम्यक् की त्रिवेणी में प्रवाहित रहती है | वे अपने स्वभाव, व्यवहार व आचरण से समाज में समन्वय का संदेश देते है, उनकी प्रत्येक क्रिया विधि जीव दया, मानव धर्म और समाज हित में होती हैं | समाज के हित से ही व्यक्ति का होता है | व्यक्ति अपने हित से ही देश और विश्व का हित करता है |
भारतीय संस्कृति की चिन्तन पद्धति में “वसुधैव कुटुम्बकम् ” की भावना निहित है | उसमें भी श्रमण संस्कृति अहिंसा के सार्वभौमिक सूत्र को लेकर चली है, जिसमें “सर्वजन हिताय – सर्वजन सुखाय” और ” जियो और जीने दो” की भावना निहित है | सर्वोदयी सिद्धांतों को लेकर चलने वाली यह संस्कृति अहिंसा,स्याद्वाद, अनेकांत, और अपरिग्रह के स्तम्भ पर खड़ी हुई है | इसकी श्रेष्ठतम विचार धारा “गोविंद दियो बनाय” पर आधारित है | स्वयं सिद्धत्व की ओर ले जाने वाली श्रमण संस्कृति ध्यान की सर्वोत्कृष्ट श्रेणी पर आरूढ़ है, तो आत्मानुशासन इसकी विशेषता है | इन्हीं सिद्धान्तों को अपने में समाहित किए हुए श्रमण संत होते हैं | जिनकी चर्या और चर्चा में एक रूपता होती है | उनकी चारित्रिक क्रिया सम्पूर्ण जीव जगत को संरक्षित, संवर्धित और संस्कारित करने के लिए होती है |
श्रमण संत समाज के मार्गदर्शक और श्रमणपरंपरा के मूल होते हैं | ऐसे ही श्रमण संतों की श्रेणी में सर्वोपरि वात्सल्य के धनी,समन्वय के आदर्श, समाज समन्वय के दिशा निदेशक, उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक संपूर्ण भारत के मान्य संतो में आप अनोखे श्रमण संत हैं | जिन्होंने विश्व को सत्य, अहिंसा, अस्तेय, बह्मचर्य, प्रेम, करुणा,अनेकांत, अपरिग्रह और समता का संदेश दिया| आप निष्परिग्रही, विश्व के अनोखे महोत्सव को मंगल सानिध्य प्रदान करके विश्व समाज में गौरव श्रमण समूह में समन्वय का पाठ पढाने वाले अनुपम संत है | जो कि उन्नीसवीं सदी के श्रमणसंत उन्नायक चारित्र चक्रवर्ती आचार्य प्रवर परम पूज्य श्रीशांतिसागर जी महाराज की पट्ट परम्परा के पंचम पट्टाधीश परम प्रभावक शिष्य उनके आज्ञानुवर्ती अपने संघ को आत्मानुशासन में दक्ष रखने वाले परमपूज्य वात्सल्य वारिधि श्रीवर्धमान सागर जी महाराज हैं |
जिनकी आगमानुकूल चर्या है | आप सम्पूर्ण व्यामोह से दूर रहकर आपके दर्शन सर्व साधारण के लिए सुलभ हैं |आपने अपनी विरुद्ध चर्या से श्रावकों को साधक बनाने का श्रेष्ठतम कार्य किया है | आप पंथवाद और ग्रंथवाद से रहित होकर आगम पथ के समर्थ आचार्य हैं | जिनकी बरगदी शीतल छांव तले बैठ कर व्यक्ति अपने आपको धन्य समझता है |
सत संयम सौरभ किरणें,
जिनके मन में व्याप्त है |
आगम चर्या निष्णात बने,
उनका मन तो आप्त है ||
आप ऐसे ही चुम्बकीय व्यक्तित्व के धनी और, वात्सल्य के महोदधि हैं | आपके दर्शन से ऐसा लगता है कि मानो साक्षात् भगवान महावीर स्वामी के दर्शन कर रहें हो |
वात्सल्य के शुभ सागर में,
मोती मिले समन्वय के |
सम्यक् मणि सुदीपक होके,
सिरमौर बने महोत्सव के ||
वास्तव मे आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज, के बाद श्रवणबेलगोला महामहोत्सव में सबसे ज्यादा आपका सानिध्य रहा है | यह आपकी सरलता, सहजता और सहृदयता की ही तो विशेषता है | जिससे राष्ट्रीय समाज में एक सम्यक दृष्टि बनी | आपके मंगल साथ से राष्ट्र में श्रवण साधकों ने आपके साथ श्रमण संस्कृति की मंगल ध्वजा को एकत्रित होकर फहराया और महामहोत्सव में शामिल होकर लाभ लिया | इससे सम्पूर्ण विश्व को समन्वय का मार्ग दिखा | आपने अपनी सम्यक् दृष्टि से संत समागम सरल बना दिया |
अपनी सम्यक दृष्टि से,
संत समागम सरल बना |
किया सभी को उन्नत स्व में,
ऐसा अनुपम आदर्श बना ||
आपने अपनी सम्यक् बुद्धि और सोच से राष्ट्र के सभी संतों को एक मंच पर एकत्रित करके, सम्पूर्ण समाज के लिए समन्वय का सहज उपदेश दिया | ऐसे आचार्य श्री के ससंघ, सानिध्य और आशीर्वाद से आज हम सब गौरवान्वित है | श्रमण संस्कृति और धर्म सहृदयता सहजता व स्व पर प्रकाशीय होने पर ही संचालित होते हैं | यह हम सब का सौभाग्य है कि ऐसे समय में आप जैसे आचार्यो के दर्शन पाके अपने जीवन को सफल बनाकर, समाज हित में कार्य करने की प्रेरणा लेते हैं |आपके श्री चरणों में कोटिशः नमोस्तु करता हूँ |
डॉ. निर्मल शास्त्री