28 जून 2022/ आषाढ़ कृष्ण अमावस /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
हां, उस वक्त उम्र थी उन मुनिराज की मात्र 19 वर्ष और दीक्षा को चंद महीने ही हुए थे कि अचानक नेत्रों की रोशनी चली जाती है , दिखना बंद हो जाता है। गुरु के साथ अन्य शिष्य भी हैरान हो जाते हैं कि अभी ही दीक्षा दी गई उस मुनिराज पर यह कैसा उपसर्ग? डॉक्टर भी परेशान, क्या करें, क्या दीक्षा छेदी जाए ? पर उस अभी ही दीक्षित हुए युवा मुनि को ऐसा कुछ स्वीकार नहीं था । उसने एक लाइन में स्पष्ट कर दिया गुरुजी मैं ना दीक्षा छेदन लगवाऊंगा, ना ही कोई इंजेक्शन लगवाऊंगा , चाहे मुझे समाधि लेनी पड़े, फिर क्या हुआ? और अब जानते हैं उस युवा मुनि के बारे में उस घटना के 53 वर्ष बाद आज बड़े पूरे राष्ट्र में आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी के नाम से लोकप्रिय है, जिनके परम सानिध्य में महामस्तका अभिषेक का आयोजन श्री महावीरजी में होना है और अब 1 जुलाई यानी आषाढ़ शुक्ल द्वितीया, वह दिन जो उनका आचार्य पद आरोहण दिवस है। उस दिवस पर बारंबार नमन करते हैं और जीवन के बारे में कुछ जानते हैं।
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के 33 वे आचार्य पदारोहण वर्ष दिवस आषाढ़ शुक्ला 2 दूज एक जुलाई 2022
सन 1990 से सन 2022 पर आचार्य पदारोहण दिवस 24 जून 1990 आषाढ़ सुदी दूज 2 एक जुलाई 2022 पर कोटिशः नमोस्तु
प्रातः स्मरणीय प्रथमा चार्य चारित्र चक्रवर्ती परमपूज्य 108 आचार्य श्री शांतिसागर जी गुरुदेव की अक्षुण्ण पट्ट परम्परा में तृतीय पट्टा धीश आचार्य श्री धर्म सागर जी से दीक्षित जिनधर्म प्रभावक राष्ट्र गौरव
ऐसी पवित्र धर्म नगरी सनावद में पर्युषण पर्व के तृतीय उत्तम आर्जव दिवस पर एक प्रतिभा शाली कुल परिवार नगर का मान बढ़ाने वाले यशस्वी बालक यशवंत का जन्म माता श्रीमती मनोरमा देवी जैन की उज्जवल कोख से प्रसवित हुआ। आपके पिता श्री कमल चंद जी जैन उपजाति पोरवाड़ से है । 18 सितम्बर 1950 भाद्रपद शुक्ल सप्तमी संवत 2006 को अवतरित होनहार भाग्यशाली सौभाग्यशाली पुत्र के पूर्व 8 पुत्र 4 पुत्रियां असमय काल का ग्रास हुई ।
जब आपकी उम्र मात्र 12 वर्ष की थी तब आपकी माता जी का असामायिक निधन हुआ ।
आपने सन 1964 में श्री बावनगजा बड़वानी में आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज और आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज के दर्शन किये ।
सन 1964 में तृतीय पट्टाधिश आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज के सनावद में मुनि अवस्था के दर्शन किये ।
सन 1965 में आर्यिका श्री इंदुमती माताजी का सनावद चातुर्मास हुआ ।
सन 1967 में आर्यिका श्री ज्ञानमति माताजी का सनावद चातुर्मास हुआ ।
व्रत नियम
सन 1967 में श्री मुक्तागिर सिद्ध क्षेत्र में आर्यिका श्री ज्ञानमति माताजी से आजीवन शूद्र जल त्याग और 5 वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत लिया ।
जनवरी 1968 बागीदौरा राजस्थान में आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किय ।
ग्राम करावली में सर्व प्रथम आचार्य श्री शिव सागर जी के दर्शन किये । सनावद वासियो के साथ श्री गिरनार जी एवम बुंदेलखंड की तीर्थ यात्रा कर। बालक यशवंत वापस सनावद आ गए ।
सन 1968 को श्री यशवंत पुनः ग्राम पालोदा में आचार्य श्री शिव सागर जी के दर्शन हेतु गए
गृह त्याग
मई 1968 से आप संध में शामिल हो गए । भीमपुर जिला डूंगरपुर में आपने द्वियतीय पट्टाधिश आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज से गृह त्याग का नियम लिया ।
दीक्षा हेतु श्रीफल भेंट
बाल ब्रह्मचारी श्री यशवंत जी ने मात्र 18 वर्ष की उम्र में फागुन कृष्णा चतुर्दशी संवत 2025 सन 1969 को श्री महावीर जी मे आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज को मुनि दीक्षा हेतु श्रीफल चढ़ा कर निवेदन किया ।
गुरुदेव के आदेश से अगले दिन श्री सम्मेदशिखर जी की यात्रा पर गए।
आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज की अनायास समाधि फागुन कृष्णा 30 संवत 2025 को श्री महावीर जी मे होने के कारण पुनः नूतन आचार्य तृतीय पट्टाधिश आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज को दीक्षा हेतु श्रीफल भेंट किया ।
मुनि दीक्षा
तृतीय पट्टाधिश नूतन आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज ने श्री महावीर जी मे फागुन शुक्ला 8 संवत 2025 24 फरवरी 1969 को 6 मुनि 3 आर्यिका तथा 2 क्षुल्लक कुल 11 दीक्षाएं आपके सहित दी ।
अब ब्रह्मचारी श्री यशवन्त मुनि दीक्षा धारण कर मुनि श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज बन गए ।
उपसर्ग नेत्र ज्योति जाना
श्री महावीर जी से आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज का विहार जयपुर खानिया जी हुआ
ज्येष्ठ शुक्ला 5 पंचमी संवत 2025 सन 1969 को अनायास नव दीक्षित मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज की नेत्रों की रोशनी चली जाती है उस समय उम्र मात्र 19 वर्ष की , उसी समय डॉक्टर बुलाये गए अगले दिन डॉक्टरों ने नेत्रों का परीक्षण किया।
डॉक्टरों ने परामर्श दिया कि बिना इंजेक्शन लगाए नेत्र ज्योति आना नामुमकिन है ।
संघ में विचार विमर्श होने लगा कि मात्र 19 वर्ष की उम्र में इतना उपसर्ग क्या किया जावे
दीक्षा छेद कर डॉक्टरी इलाज कराने की भी चर्चा चली ।
मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज के कानों में चर्चा पहुँचने पर उनहोंने कहा कि में इंजेक्शन नही लगवायेगे प्रसंग आने पर समाधि ले लेंगे ।
मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने 1008 श्री चंद्र प्रभु की वेदी पर मस्तक रख कर पूज्य पाद रचित श्री शांति भक्ति का पाठ स्तुति प्रारम्भ की ।
लगातार 2 दिन अर्थात 52 घण्टे बाद प्रभु भक्ति के प्रभाव से बिना डॉक्टरी इलाज के नेत्र ज्योति वापस आ जाती है ।
उस घटना के समय आचार्य श्री धर्म सागर जी सहित 17 मुनि 25 आर्यिकाये 4 क्षुल्लक एवम 1 क्षुल्लिका सहित 47 साधु विराजित थे।
परमपूज्य आचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी जी आकाश गमनी विद्या से आकाश में गमन कर रहे थे सूर्य की प्रचंड तेज रोशनी से आचार्य श्री की नेत्र ज्योति जाने पर श्री पूज्य पाद स्वामी ने श्री शांति भक्ति की रचना कर नेत्र ज्योति वापस पाई थी ।
उसी पवित्र शांति भक्ति के पाठ से परम पूज्य मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज की नेत्र ज्योति
वापस आई ।
आचार्य पद
चारित्र चक्रवती प्रथमचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण पट्टपरम्परा के चतुर्थ पट्टाचार्य श्री अजित सागर जी महाराज के पत्र के माध्यम से लिखित आदेश✉ अनुसार पारसोला राजस्थान में 24 जून 1990 आषाढ़ सुदी दूज को आचार्य पद गुरु आदेश अनुसार दिया गया।
आचार्य पद के बाद वर्ष 1990 से वर्ष 2021 तक विभिन्न तीर्थ क्षेत्रो अतिशय क्षेत्रो प्रदेश राजधानियों महानगरों सिद्ध क्षेत्रो निर्वाण भूमियों आदि में किये
वर्ष 2021 का चातुर्मास कोथली कर्नाटक में हुआ है।
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी गुरुदेव ने अभी तक 89 दीक्षाये दी है ।
मुनि दीक्षा 32
आर्यिकाये दीक्षा 33
ऐलक दीक्षा 01
क्षुल्लक दीक्षा 13
परम्परा के पंचम पट्टाधिश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने 12 राज्यों राजस्थान दिल्ली हरियाणा उत्तर प्रदेश गुजरात कर्नाटक तमिलनाडु झारखंड बिहार बंगाल एवम मध्यप्रदेश में किये है
वर्तमान में श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र के लिए विहार चल रहा है
अब मध्यप्रदेश से भवानीमंडी में ऐतिहासिक भव्य मंगल प्रवेश के बाद राजस्थान में विहार चल रहा है
राजेश पंचोलिया इंदौर