मान कभी नहीं करना नहीं और स्वाभिमान को छोड़ना नहीं यह मान ऐसी मीठी कषाय है जिसके कारण व्यक्ति भीतर भीतर झुलसता रहता है
उत्तम मार्दव धर्म मृदुभावों मार्दवम
परिणामों की कोमलता उत्तम मार्दव धर्म है हमारे आचार्य कहते हैं कि मान कभी नहीं करना नहीं और स्वाभिमान को छोड़ना नहीं यह मान ऐसी मीठी कषाय है जिसके कारण व्यक्ति भीतर भीतर झुलसता रहता है
वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी
कहां भी है सरल स्वभावी हो ही ताकि घर बहुत संपदा अर्थात जो सरल स्वभाव वाला विनम्र गुण वाला कोमल हृदय वाला होगा उसके घर संपदा ही संपदा होगी
मान का उल्टा क्या होता है नमा अपने मस्तक को नमा जितने भी कृत्रिम अकृत्रिम जिनालय है अतिशय सिद्ध क्षेत्र है उनको नमन करो
जैसे चन्वरो को जीतना नीचे झुकाया जाता है तो वह उतने ही उच्च उठते हैं
इसी प्रकार जो जितना झुकता है वह उतना ही ऊंचा उठता है
विनय गुणसे मोक्ष का द्वार खुल जाता है इसलिए जो शिष्य जितना विनय वान होता है उसके प्रति आचार्य गुरुदेव भी उसे चाहते हैं और वह शिष्य गुरु के हृदय में विराजमान हो जाते हैं
विनय के अभाव में संपूर्ण शिक्षा निर्रथक है विनय के अभाव में सम्यक दर्शन भी नहीं रह सकता है
आ कुंद कुंद स्वामी कहते हैं
जो कुन रुप जाति बुद्धि तप श्रुत और शीलादि के विषय में थोड़ा सा भी किंचित मात्र भी गर्व नहीं करता है उस श्रमण के पास मार्दव धर्म प्रकट होता है या वह मार्दव धर्म का धारी होता है
क्रोध आता है अपेक्षा की उपेक्षा होने पर तो मान कब आता है इगो पॉइंट में भी कुछ हूं छोटा बच्चा भी सोचता है कि मैं भी कुछ हूं मुझे क्यों नहीं पूछा गया मनुष्य गति में चारों तरफ ईगो पॉइंट टकराता है
आचार्य देव कहते हैं नाक जब आड़े आती है तो समीचीन सत्य को देखते नहीं देती ना सत्य को सुनने देती है ना बोलने देती है कहीं भी चले जाओ टकराता है मान नाक की बात में हम सब कुछ करने को तैयार है
क्रोध में चेहरा लाल लाल हो जाता है और मान में अकड़ जाता है हर जगह मान टकराता है चाहे बच्चा बूढ़ा जवान या ज्ञानी क्यों ना हो
विनय शील व्यक्ति धर्म सभा में पहले आता है और बाद में जाता है उदाहरण के लिए जैसे जीभ पहले आती है बाद में जाती है पर मानी व्यक्ति बाद में आता है पहले जाता है जैसे दांत बाद में आते हैं पहले जाते हैं
मानी मनुष्य की और नल के जल की गति एक जैसी ही होती है जिस प्रकार जल को जितना भी ऊपर ले जाए तो भी उसका जल नीचे ही आता है उसी प्रकार मानी व्यक्ति भी नीचे आ जाता है
साधु जीवन का सबसे बड़ा जहर है ख्याति पूजा प्रतिष्ठा मान की आकांक्षा
जाति आदि के मद के आवेश का अभाव होना मार्दव है अथवा मान कषाय का अभाव होना मार्दव है मार्दव भाव आत्मा का गुण है मोक्ष सुख का कारण है यह मार्दव धर्म
– संकलन राजेश पंचोलिया इंदौर