प्रायः सभी व्यक्तियों के अंतःकरण में यह भाव रहता है कि लोग मुझे अच्छा-भला आदमी कहें और मेरा सम्मान करें, साथ ही मेरे हर कार्य की प्रशंसा करें, मेरे पास जो ज्ञान और वैभव आदि है, वह सर्वश्रेष्ठ है, ऐसा दुनिया के सभी लोग कहें एवं स्वीकार करें। इस तरह के भाव मान-कषाय के कारण आदमी के अंतःकरण में उठते हैं। मान के वशीभूत होकर व्यक्ति जिस धरातल पर खड़ा होता है, उससे अपने आपको बहुत ऊपर समझने लगता है। इसी अहंकार के कारण आदमी पद और प्रतिष्ठा की अंधी दौड़ में शामिल हो जाता है, जो उसे अत्यंत गहरे गर्त में धकेलती है। पर्युषण पर्व का द्वितीय ‘उत्तम मार्दव’ नामक दिवस, इसी अहंकार पर विजय प्राप्त करने की कला
उत्तम मार्दव धर्म का स्वरुप:-
कविवर ध्यानतराय जी दसलक्षण धर्म पूजा मे मान कषाय से होने वाली हानियो तथा उत्तममार्दव धर्मके पालन के लाभो का वर्णन करते हुए कहते है-
मान महा विषरूप,करहि नीचगति-जगत मे।
कोमल सुधा अनुप ,सुख पावै प्रानी सदा॥
उत्तम मार्दव-गुन मन माना,मान करन को कौन ठिकाना।
घमंड-मान कषाय का प्रतिकार करना मार्दव धर्म.जीव का स्वभाव है !घमंड का अभाव होकर कोमल होना मार्दव धर्म है,इसके विपरीत धन,ज्ञान,बल,रूप,कुल,जाति,पूज्यता ,सम्मानादि जीव-आत्मा के विभाव है,अधर्म है!
*”किसी वृक्ष के नीचे जाकर कभीआपने वृक्ष से कहा है कि हे वृक्ष आप मुझे छाया प्रदान कर दो? जैसे वृक्ष के नीचे जाकर उससे छाया मांगनी नहीं पड़ती वह तो स्वमेव मिल जाया करती है,उसी प्रकार साधु तो उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव,सत्य, शौच,संयम,तप, आकिंचन और वृहम्चर्य दस धर्मो की प्रतिमूर्ति है, उन साधुओं के पास आकर मांगने की कोई आवश्यकक्ता ही नहीं है, वह तो दशोंधरमों की प्रतिमूर्ति है,जैसे वृक्ष के नीचे जाकर आप खड़े होते हो तो शीतलता और छाया स्वमेव मिल जाती है ।
जितनी जितनी आपकी सहन शक्ती आपके अंदर बड़ती चली जाऐगी उतने उतने आप अंदर से खुश होते चले जाऐंगे।
उत्तम मार्दवधर्म की जय