जैन संस्कृति की पहचान आज अजैनों में और कुछ जैनों में 24वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी से होती है। कारण हमने प्रथम तीर्थंकरर श्री वृषभनाथ जी के प्रति इतना प्रचार-प्रसार, प्रभावना ही नहीं की, उनकी शिक्षाओं को समाज के सामने उतनी वृहद दृष्टि से नहीं रखा। अगर जैन समाज में संत-विद्वान और श्रेष्ठी वर्ग इतना प्रयास कर लें, तो सबसे प्राचीन धर्म संस्कृति के रूप में जैनों की पहचान स्वत: होने लगेगी। 10 फरवरी को आ रहे मोक्षकल्याणक को पूरी धूमधाम से मनायें। इस अवसर पर 10 अनोखी खास बातें, उनके जीवन से –
परिवारवाद धर्म में भी
पहले तीर्थंकर आदिनाथ जी के पोते आगे इस काल में अंतिम तीर्थंकर बनते हैं, यानि परिवारवाद राजनीति ही नहीं, धर्म में भी है। तीर्थंकरों की शुरूआत यानि पहले व अतिंम तीर्थंकर भी।
सबसे ज्यादा नाम
मुख्यत: महावीर स्वामी के पांच और पुष्पदंत तीर्थंकर दो नामों से जाने जाते हैं, पर आपके 6 नाम का उल्लेख है – ऋषभनाथजी, आदिनाथजी, पुरुदेवजी, आदि, ब्रह्माजी, प्रजापति जी, वैसे इन्द्र तो 1008 नामों से सभी तीर्थंकरों की स्तुति करता है।
सबसे ऊंचे तीर्थंकर
जहां 24वें तीर्थंकर का कद मात्र 7 हाथ था, यानि आज की गणना में 10.5 फुट, वहीं पहले तीर्थंकर आदिनाथ जी का कद था 500 धनुष यानि 2000 हाथ यानि 3000 फुट आज की गणना से। कुतुब मीनार की ऊंचाई मालूम है आपको 240 फीट यानि उससे भी लगभग 15 गुना, मतलब दिल्ली के एक कोने में खड़े होते, तो पूरी दिल्ली को दिखाई देते। वैसे उनके पुत्र भगवान बाहुबली उनसे भी 150 फुट ज्यादा ऊंचे कद के थे।
इतनी लम्बी उम्र, जिसकी कल्पना भी नहीं
आदिनाथ तीर्थंकर की कितनी उम्र थी, 84 लाख पूर्व, यह तो आप सभी जानते हैं। पर यह कितनी हुई? यह सोचकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे, 84 लाख पूर्व, और एक पूर्व होता है 84 लाख पूर्वांग के बराबर और एक पूर्वांग 84 लाख वर्ष के बराबर यानि 84 लाख गुना 84 लाख गुना 84 लाख, मान लीजिए, आपका केलकुलेटर भी इसकी गणना नहीं कर पाएगा।
दो-दो रानी, दो-दो पुत्रियां
वैसे चक्रवर्ती तीर्थंकर शांतिनाथ जी, कुंथुनाथ जी सहित 3 तीर्थंकरों की 96 हजार रानियां थीं, पर दो रानियां नंदा-सुनंदा केवल आपकी ही थी, वैसे तीर्थंकरों के कभी पुत्री का जन्म नहीं होता, पर आपके ब्राह्मी और सुंदरी का जन्म हुआ।
सबसे ज्यादा दीक्षा को चले साथ, पर
अधिकांश तीर्थंकरों के साथ एक हजार राजाओं ने दीक्षा ली, पर आपके साथ सबसे ज्यादा चार हजार ने आपके साथ पंचमुष्टि केशलोंच कर दीक्षा ग्रहण की, पर आपके तरह तप नहीं कर पाये। आप तो जम गये 6 माह तप के लिए, पर बाकी सब भूख से व्याकुल हो गये और पथ भ्रष्ट हो गये। ऐसा किसी अन्य तीर्थंकर के साथ नहीं हुआ, क्योंकि अन्य कोई इतने लम्बे समय बगैर आहार के नहीं रहा।
शेष सभी तीर्थंकरों से दोगुना से ज्यादा तप
ऋषभदेव तीर्थंकर ने महामुनिराज के रूप में इतना तप केवलज्ञान से पूर्व किया, जितना शेष सभी 23 तीर्थंकरों ने मिलकर भी आधा समय नहीं किया। आपने एक हजार वर्ष तप किया।
पिता सेर, बेटा सवा सेर
पिता सेर, बेटा सवा सेर, सुना होगा आपने। यह चरितार्थ हुआ आदिनाथ जी के परिवार में भी। उन्हीं से दीक्षा लेकर, उनका पुत्र अनंतवीर्य उनसे पहले मोक्ष चले गये। पुत्र बाहुबली भी इसी तरह उनसे पहले गये।
पिता-पुत्र की वंदनीय जोड़ी
24 तीर्थंकर वंदनीय पूजनीय, प्रात:स्मरणीय हैं, पर आदिनाथ-बाहुबली की ही एकमात्र पिता-पुत्र जोड़ी है, जो सर्वत्र पूजी जाती है और दोनों की प्रतिमायें दिखती हैं, कुछ जगहों पर अंतमुहुर्त में मोक्ष पाने वाले भरत चक्रवर्ती की भी कई जगह मूर्तियां हैं।
परम्परा से हटकर जन्म और मोक्ष
सभी तीर्थंकरों का जन्म चतुर्थ काल में होता है, पर आपका जन्म और मोक्ष तीसरे काल में हो गया, परम्परा से हटकर। आपका जन्म चौथे काल से 84 लाख वर्ष पूर्व, तीन वर्ष साढ़े आठ महीने पूर्व ही हो गया और चौथे काल से 3 वर्ष साढ़े आठ महीने पहले कैलाश पर्वत से सिद्धालय भी चले गये एक समय के भीतर। कारण यह हुण्डा अवसर्पिणी काल है, कुछ उल्टा-पुल्टा होता है ऐसे काल में।