01 जुलाई 2023/ आषाढ़ शुक्ल त्रयोदिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ EXCLUSIVE/शरद जैन
उज्जैन सचमुच भारत की धर्म नगरी है, हिंदू परंपरा से , जैन परंपरा से। नयापुरा, जहां मंदिर भी है, मस्जिद भी हैं। पर क्या गजब की बात है कि जो सरकारी प्रशासन पहले कहता है कि हमें सड़क चौड़ी करनी है इसलिए कृपया 15-16 फुट गहरी और 80-85 फीट चौड़ी यानी 1200 वर्ग फीट जगह अपने मंदिर की आगे की दे दे, यानी समझ लीजिए लगभग एक चौथाई भाग अपने उस प्राचीन तीर्थ रूपी मंदिर का दे दे, जो मंदिर इस सरकार प्रशासन से पहले का है, वह भारत की आजादी से भी पहले का है, वह अंग्रेजों से आने से भी पहले का है ।
पर 2017 के उस पत्र 6 साल बाद ही प्रशासन रूपी नगर पालिका यह नहीं कहती कि उन्हें सड़क चौड़ी करनी है, अब यह फरमान जारी करती है कि आपने अवैध निर्माण किया है और इसको गिरा दो, नहीं तो हम गिरा देंगे।
21 जून 2023 को 84 गौतम मार्ग, पर स्थित एक ऐतिहासिक, पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आने वाला श्री चिंतामणि पारसनाथ दिगंबर जैन प्राचीन मंदिर, आज यही दुहाई कह रहा है । वहां की कार्यकारिणी ने अब तक किसी नोटिस का जवाब नहीं दिया, तो चैनल महालक्ष्मी ने तुरंत उससे कहा कि सरकारी नोटिस का प्रमाण के साथ जवाब तुरंत दीजिए, नहीं तो एक तरफा कार्यवाही करने में ऐसा प्रशासन देर नहीं करता और फिर 28 जून को उन्होंने यह जवाब भी दाखिल किया, जो चैनल महालक्ष्मी ने उसे कहा था।
क्या मंदिर अवैध निर्माण है यह आता होगा आपके मन में भी। यह मंदिर पहले लकड़ी का बना था और यहां पर विराजमान प्रतिमा इसके प्रमाण भी दिखाती हैं । धन्य है वह लोग, जिन्होंने प्रशस्ति पर कम से कम तारीख लिखना तो शुरू कर दिया, वरना हजार साल पुरानी जैन प्रतिमा के ऊपर तारीख नहीं होती है, तो कोई चाहे तो उसे प्राचीन से, नया कहने में देर नहीं लगाएगा। पर यहां की मूलनायक प्रतिमा पर स्पष्ट लिखा है की संवत 1623, आज संवत 2080 है।
स्पष्ट है 457 साल प्राचीन प्रतिमा, जो मंदिर के बनने के बाद स्थापित हुई, अपनी कहानी अपने आप कह देती है। ऐसे अनेकों प्रमाण है और यह सारी कथा इस बात पर अटक जाती है कि 200 साल पहले मंदिर को लकड़ी से पत्थर में जीर्णोधार किया गया। फिर अवैध निर्माण कैसे हो गया? क्या कोई प्रमाण नहीं है इस बारे में? चैनल महालक्ष्मी ने वहां के पुराने ट्रस्टी और कई लोगों से चर्चा की । मंदिर से बस चार मकान दूर जन्म लेने वाले और 68 सावन देख चुके, एक ट्रस्टी ने बहुत प्रमाण प्रस्तुत किए, जो आपको चैनल महालक्ष्मी रविवार 2 जुलाई के रात्रि 8:00 बजे के विशेष एपिसोड में: “457 वर्ष प्राचीन जैन मंदिर को अवैध बता तोड़ने की साजिश” के अंतर्गत दिखाएगा और आपके मन में उठने वाले कई सवालों के प्रमाण देगा।
पहला, क्या मंदिर वास्तव में 453 साल पुराना ही है?
दूसरा , बाहर जो रेलिंग बनी है, वह तो नई लगती है , क्या वह अवैध है?
तीसरा, जिस सड़क का विस्तार, इस दूसरे चरण में हो रहा है, उसमें पहले चरण में, 12 फुट मस्जिद जो सड़क पर आती है और 15 फुट का राधा कृष्ण मंदिर, जो कि पूरा का पूरा सड़क पर है, क्या उनको छोड़ दिया था?
चौथा , क्या इसका कुछ हिस्सा भी मंदिर का, अलग किया जा सकता है या फिर जरा सी छेड़खानी से पूरा का पूरा मंदिर, नीचे आ सकता है, मात्र 4 फुट में ही प्रतिमाएं हैं , क्या होगा?
पांचवा, क्या पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आने वाली धरोहर को , जहां बचाने की जिम्मेदारी होनी चाहिए उसको अवैध निर्माण बताते हैं ?
छटा, क्या बिना पुरातत्व विभाग के अनुमति के क्या ऐसा किया जा सकता है?
सातवा, क्या आजादी से पहले के भी कोई प्रमाण है , जो साबित कर सके यह मंदिर अति प्राचीन है?
आठवां, क्या आजादी से पूर्व की किसी धरोहर को अवैध कहा जा सकता है?
नौवां, क्या लगता नहीं यह अंधेरी नगरी…. जैसा जैनों के साथ सलूक हो रहा है?
दसवां, क्या अदालत में, इस मंदिर ने कोई पहले मुकदमे जीते हैं?
ऐसे ढेरों सवालों के, प्रमाणों के साथ जवाब चैनल महालक्ष्मी, आपके साथ, उस विशेष एपिसोड रविवार 2 जुलाई को दिखाएगा, जिनको देखकर हर कोई साफ कह सकता है की 70- 80 साल पहले बने राधा कृष्ण मंदिर और मस्जिद को छोड़कर, सड़क चौड़ी की गई , पर अब 457 साल वाले प्राचीन सबसे पहले बने जैन मंदिर को तोड़ने की जानबूझकर, अवैध निर्माण के नाम से साजिश रची गई है। सारा खेल राजनीति का लगता है, वोटों के नाम पर मस्जिद और राधा कृष्ण मंदिर छोड़ दिए जाते हैं, और जैनों के मंदिर पर अवैध निर्माण का, जो 457 साल प्राचीन है, ठप्पा लगा दिया जाता है।
बहुत कुछ दिखाएंगे, रविवार, 2 जुलाई के एपिसोड में और होना तो यह चाहिए कि नगर पालिका ने ऐसे अवैध निर्माण के झूठे नोटिस को दिया है , उस पर गलत आरोप के लिए उल्टी कार्यवाही की जाए और इसकी जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को निभानी चाहिए। देखिएगा जरूर, रविवार 2 जुलाई को विशेष एपिसोड, प्राचीन तीर्थ पर कितना झूठा आरोप हैं अवैध निर्माण।