तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी जन्म-तप और
तीर्थंकर श्री नमिनाथ जी का ज्ञानकल्याणक
कुबेर द्वारा मिथिलानगर में महाराजा कुंभराज जी के राजमहल पर सुबह-दोपहर-शाम दिन के तीनों पहर साढ़े तीन करोड़ रत्न बरसाते कुबेर को आज 15 माह पूरे हो गये थे। हर तरफ खुशियां छाई हुई थी। वह दिन था मंगसिर शुक्ल एकादशी (जो इस बार 14 दिसंबर को है)। उसी दिन महारानी महादेवी (प्रभावती) के गर्भ से, अश्वनी नक्षत्र में, 19वें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी का जन्म हुआ। इक्ष्वाकु वंश में, कश्यप गोत्र वाले, 150 फुट ऊंचा कद, तपे सोने जैसा रंग, 55 हजार वर्ष की आयु, महाराजा के यहां जन्मे, पर आपने राज्य नहीं किया। इक्कीस हजार वर्ष के कुमार काल के बाद एक दिन अध्रुवादि भावनाओं का चिंतवन करने से आपके भीतर वैराग्य की भावना बलबती हो गई और मंगसिर शुक्ल एकादशी को ही मिथिलानगर के शालिवन में जयंत पालकी में पूर्वाह्न काल में पहुंच गये। आपके इस कदम को देख अन्य 300 राजाओं की भी भावना तप धारण करने की हो गई।
आपने पंचमुष्टि केशलोंच कर तप को धारण कर लिया और 6 दिन के कठोर तप के बाद ही आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। सभी 24 तीर्थंकरों में सबसे कम, मात्र 144 घंटों के तप के बाद केवलज्ञान की प्राप्ति हुई आपको।
श्री मल्लिनाथ तीर्थंकर के 60 लाख वर्षों से कुछ अधिक समय के बाद 21वें तीर्थंकर श्री नमिनाथ जी का भी मिथिला नगरी में महारानी वप्रिला देवी के गर्भ से जन्म हुआ। 90 फुट ऊंचे, दस हजार वर्ष की आयु वाले श्री नमिनाथ जी ने नौ माह तक मिथिलानगर के चैत्र वन में घोर तप किया। तब मंगसिर शुक्ल एकादशी को अश्वनी नक्षत्र में, अपराह्न काल में, मोलीश्री (वकुल) वृक्ष के नीचे आपको केवलज्ञान की पुष्टि हुई।
सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से, कुबेर तुरंत दो योजन विस्तार वाले समोशरण की रचना करता है, जिसमें सुप्रभ मुख्य गणधर के साथ 17 गणधर, 20 हजार ऋषि, 450 पूर्वधर मुनि, 12,600 शिक्षक मुनि, 1600 अवधि ज्ञानी मुनि, 1500 विक्रियाधारी मुनि, 1250 विपुलमति ज्ञानधारक मुनि, एक हजारवादी मुनि, प्रमुख मार्गिणी आर्यिका सहित 45 हजार आर्यिकायें, श्री विजय प्रमुख श्रोता सहित एक लाख श्रावक व 3 लाख श्राविकायें उसकी दिव्य ध्वनि से आत्मविभोर होते थे। आपका केवली काल 2491 वर्ष का था।
बोलिए, तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी के जन्म-तप और तीर्थंकर श्री नमिनाथ जी के ज्ञानकल्याणक की जय-जय-जय।
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