23 मार्च/चैत्र कृष्णा षष्ठी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
7-8वीं शताब्दी सीई में #तमिलनाडु में मदुरै और उसके आसपास #जैनों को सूली पर चढ़ाया गया
आज हर की जुबान पर है, द कश्मीर फाइल्स। जैन हो, हिंदू हो, सिख हो, क्रिश्चियन हो, आज हर किसी ने कश्मीरी पंडितों पर हुए बरपाए गए कहर को देखा। कश्मीर की सच्ची घटना को फिल्मी अंदाज में कुछ मसाला लगाकर पेश किया द कश्मीर फाइल्स।
जरूरी है कि हम अपने इतिहास को जाने । इतिहास में क्या सही हुआ, क्या गलत हुआ, यह निर्णय जनता पर छोड़ दें । पर उसके लिए निर्भीक सत्य और अपने मंसूबों से रहित , अगर कदम बढ़ाए जाते हैं, तो वह निश्चित प्रशंसा के पात्र हैं। पर किसी की आड़ में ,अपनी रोटियां सेकना, राजनीतिक रंग देखना ,वह हमारे भाईचारे को खत्म तो नहीं कर रहा ,यह सवाल भी कुछ पूछते हैं। पर निर्णय यही है कि हमारा इतिहास जो रहा है , वह सबके सामने आना ही चाहिए।
चुन-चुन कर , गिन गिन कर, केवल उन पन्नों को निकालना, जो हमारी राजनीति को, हमारी पार्टी को, हमारी छवि को या दूसरे की छवि को नीचा करने में या दूसरे को नीचा दिखाने में रंग लाती हों, ऐसी स्थिति को नहीं आने देना चाहिए। इतिहास देखिए , यह उत्तर का इतिहास है , यह कश्मीर का इतिहास है, जहां कश्मीरी पंडितों से बर्बरता हुई। जुल्म ढाए गए । सचमुच उनको देखने से ही आंखें आंसुओं से भर जाती हैं। मन में पीड़ा उठती है और कहीं बार खून खोलने लगता है।
पर क्या केवल यही इतिहास है। हां, अगर राजनीति का रंग और चढ़ा तो आपको 1984 कांड, गुजरात कांड, और ऐसे कई कांड , दिखाये जाते रहेंगे। पर चुन चुन कर , दिखाने की बजाय ,अगर सत्य का सामना करना है , इतिहास को दिखाना है ,तो कुछ और भी दिखाना होगा। आज हम आपको उत्तर की कश्मीर का देखने के बाद, इसके बाद, ऐसी ही एक दक्षिण की कश्मीर फाइल के बारे में बताते हैं , जिसके बारे में सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो सकते हैं ।
इतिहास का यह छिपा हुआ टुकड़ा तमिलनाडु में मंदिरों और साहित्यिक स्रोतों में चित्रों और मूर्तियों में देखा जाता है। समानारों पर विजय के लिए वार्षिक उत्सव मनाए जाते हैं। कहीं-कहीं लाठी-डंडे भी मिलते हैं।
यह एक जैन पांड्य राजा और शैव भिक्षु संबंदर के समय में हुआ था, जिन्होंने उनका धर्म परिवर्तन किया था। उनकी रानी मंगयार्ककरसियार और मंत्री कुलचिराय नयनार दोनों ही कट्टर शैव थे। कून पांडियन ने 8000 जैनियों को सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया था।
हालांकि किंवदंती पर अभी भी बहस होती है, मंदिरों में नरसंहार के रीति-रिवाज, मूर्तियां और पेंटिंग हैं। मीनाक्षी मंदिर के वार्षिक उत्सव के दौरान, समानार मैडम अदक्कल नामक एक अनुष्ठान के हिस्से के रूप में पुतलों को लाठी पर लटकाया जाता था और चारों ओर ले जाया जाता था। 1974 में इस अनुष्ठान को रोक दिया गया था।
लांछन: निंदा करने वाले व्यक्ति के शरीर को एक नुकीले डंडे (काज़ुमाराम) के माध्यम से लंबाई में छेद दिया गया था और पीड़ित को एक धीमी और दर्दनाक मौत मरने के लिए छोड़ दिया गया था। सूली पर चढ़ाने के उपकरण पत्थर, लकड़ी और धातु से बने होते थे, जिन्हें आमतौर पर निंदा करने वाले व्यक्ति की लंबाई तक तेज किया जाता था।
यह वाद्य यंत्र कज़ुमाराम कन्ननकुडी में मदुरै और कामुधि रामनाद जिले के बीच के मंदिरों में, गोविंदनेंथल, मंडलमनिकम और कलारी गाँव में मंदिर के गर्भगृह में पाया जाता है। मंडलमनिकम और अन्य स्थानों के पास काज़ुवनपोटल में उत्कीर्णन पाए गए
आज भी ऐसे कई मंदिर हैं जिनमे सूली से निर्दयता से मारते जैन लोगो की हत्या दर्शाती मूर्तियां हैं, इनमें से कुछ हैं
वेंकुटापेरुमल मंदिर कांचीपुरम
थानुमल्यालम मंदिर, सुचिंद्रम
नटराज मंदिर, चिदंबरम
एरावतेश्वर मंदिर, दारामुरम
थिरूचंेदुर मंदिर
कांचीपुरम मंदिर
थिरूपन्नागाडू सिवान मंदिर
आज भी सूलियों पर सिंदूर लगाकर त्यौहार मनाये जाते हैं, हत्या के उस दिन पर जश्न मानते हैं, नगाड़े बजाते हैं, ऐसी सूलियां आज भी अनेक मंदिरो मैं हैं, जिनमे शामिल हैं
काजुबेरियान मंदिर, चिंतामणि, मदुरै
कझुमारम मंदिर, मुथुलापुरम, दिंडुगुल
सामनाथम मंदिर, मदुरै
कझुमारम मंदिर, कालाईयार कोयल,शिवगंगा
श्री पूरनाम्बिगाई अयनरप्पा स्वामी मंदिर, इरोड
मीनाक्षी मंदिर, मदुरै, #तमिलनाडु के गोल्डन लिली टैंक की दीवार भित्तिचित्रों पर #जैनों के स्तम्भ को चित्रित किया गया था। अब इसकी जगह नई पेंटिंग्स ने ले ली है। और न ही किसी इतिहासकार ने और न ही राज्य के पुरातत्व विभाग ने और न ही एएसआई ने इस पर सवाल उठाया है।
चोल और पल्लव काल के कुछ चित्रों में देखा गया है कि इम्पेलमेंट एक राज्य दंड बन गया था। अवुदियार मंदिर के चित्रों में जैन और बौद्ध दोनों का सूली पर चढ़ा हुआ दिखाई देता है जो दर्शाता है कि उन्हें कैसे निष्कासित किया गया था।
लेकिन इसको, क्या कोई फिल्म के रूप में अभिनीत कर पाएगा? किसी में इतनी हिम्मत होगी कि वह दिखा दे? क्या हमारी निष्पक्ष सरकार इस को दिखाने की मंजूरी तक दे ज्य में इस को टैक्स फ्री करने की अपनी हिम्मत दिखा सकेगा? क्या इसको भी सभी लोग उसी नजर से देखेंगे जैसे उन्होंने कश्मीर पंडिपाएगी? क्या कोई बड़े नेता इसकी अनुमोदना कर पाएंगे ? क्या कोई मुख्यमंत्री अपने रातों पर हुई बर्बरता को देखा? शायद इन सब का जवाब ना मिले । पर हम को प्रयास तो करना होगा ।
उत्तर में कश्मीरी पंडितों पर बनाई गई द कश्मीर फाइल्स और यह होगी दक्षिण की वह घिनौनी फाइल, असली क्रूर तांडव, जो शायद इस इतिहास को बहुत लोग नहीं जानते कि क्रूरता और बर्बरता का महा तांडव किसने ,किस पर, किया ,क्या हुआ और आज भी उस महा तांडव के चलते उसको पूजा तक जाता है। मंदिरों में रखा हुआ, दर्शाया गया है। पर भीतर ही भीतर , उस इतिहास को मिटाने की कोशिश की जा रही है। इतिहास को देखना है, तो इसको भी जानिए । और हिम्मत है तो इसको भी उतनी ही प्रखरता से जानिए , जितना आप कश्मीर फाइल को जानने की कोशिश कर रहे हैं।
क्या कभी जैन समाज के लोगों ने यह विचार किया जो घटनाक्रम क़रीब ३० वर्षों पहेले कश्मीर में पंडित समुदाय के साथ हुआ था वो ही घटनाक्रम जैन समुदाय पर इससे भी ज़्यादा बर्बरता , दर्दनाक, ख़ौफ़नाक रूप से दक्षिण भारत के मदुराई और मद्रास मे घटित हुआ था । गोवा में हुआ था । एक साथ 50000 साधुसाधवी ओर 500000 जैन को नरसंहार हुआ था। कारण क्या था ? जैन सब समुदाय, पंथ व गच्छ में बट गये। हमारे साधु और समाज के ठेकेदार अपना अस्तित्व और इतिहास ही भूल गए नेताओ की चापलूसी में लग कर ,अपने ही समाज के साथ कुठाराघात कर रहे है।
(स्रोत: विभिन्न स्रोतों से संकलित, मूल फोटोग्राफरों को श्रेय)