मन वचन काय की चेष्ठा के माध्यम से कर्मों का आश्रय होता है और वचन काय की चेष्ठा को रोकने से कर्म का क्षरण होता है : मुनिश्री समय सागर

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तेंदूखेड़ा में चल रहे मज्जिेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव के अंतिम दिन सुबह से भगवान श्रीजी का पूजन, अभिषेक एवं शांतिधारा की गई। इसके बाद सुबह 7 बजे भगवान का मोक्षकल्याणक हुआ और भगवान मोक्ष के लिए गए।

मुनिश्री समय सागर महाराज ने प्रवचनों में कहा कि मन वचन काय की चेष्ठा के माध्यम से कर्मों का आश्रय होता है और वचन काय की चेष्ठा को रोकने से कर्म का क्षरण होता है। आत्मा कर्म के अधीन होकर ही चार गतियों में भ्रमण करती है। लेकिन अब भगवान का भ्रमण समाप्त हुआ है और एक समय में ही इस धरती से उठकर अनंतकाल के लिए भगवान विराजमान हुए हैं। अब प्रलय भी हो जाए तो उन्हें किसी भी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं है।

दोपहर गजरथ पंडाल के चारों ओर पांच रथों की फेरी प्रारंभ हुई। जिसमें सबसे पहले समय सागर महाराज ससंघ एवं आर्यिका अकंपमति माता जी ससंघ चल रही थीं।
इसके बाद डीजे अनेक प्रकार के बैंड, गाजे-बाजों से सभी इंद्र रथों में बैठकर चल रहे थे। इसके बाद सामान्य इंद्र-इंद्राणियां चल रही थीं। गजरथ फेरी के दौरान कुबेर जनता के बीच में आभूषण बरसा रहे थे। लोग सभी आभूषणों को उठा रहे थे। गजरथ की सात फेरी होने के बाद फेरियों का समापन किया गया।

नए जिनालय का नाम रखा श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन चौबीसी

गजरथ के समापन में मुनि श्री समय सागर जी महाराज ने कहा कि तेंदूखेड़ा समाज ने नवीन जिनालय के निर्माण के लिए भावना के साथ गुरू देव के चरणों में निवेदन किया था। फलस्वरूप जिनालय का निर्माण लगभग हो गया है और मंदिर में भगवान भी विराजमान हो गए हैं। साथ ही पुराने जिनालय के भगवान भी नए जिनालय में विराजमान हो चुके हैं। इसके अलावा समाज ने ऐसे भाव रखे थे कि आप नए जिनालय का नामकरण करें।

जिससे श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन चौबीसी जिनालय नामकरण किया गया है। इस प्रकार के जिनालय का निर्माण और श्रीजी को स्थापित करने का पवित्र भाव जिस व्यक्ति के भीतर होता है। वो मात्र अपना ही हित नहीं करता है, लेकिन आने वाली पीढ़ी और जनता का हित करता है। इस प्रकार यह पंचकल्याणक महोत्सव आज सानंद संपन्न हुआ है। यह अपने आप नहीं हुआ है, आप लोगों ने पुरुषार्थ किए हैं। इसको भुलाया नहीं जा सकता है।