13 पंथ व 20 पंथ की परम्परायें समान रूप से अनुकरणीय, फिर क्यों परम्परा तोड़ने का एकता में निघटन की कील ठोकने जैसा षड्यंत्र

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तीर्थक्षेत्र कमेटी के सभी पदाधिकारियों, देश की सभी संस्थाओं पदाधिकारी, विद्वतजन, सुधि श्रावक जनों को खुला पत्र – दिगम्बर समाज में 13 पंथ व 20 पंथ की परम्परायें है, समान रूप से वंदनीय है, अनुकरणीय है। दोनों का ही समुचित आदर-सम्मान करना चाहिये। पर कहीं की परम्परा को तोड़ना, दूसरी परम्परा को थोपना, दिगम्बर समाज की एकता में निघटन की कील ठोकने जैसा हे। फिर क्यों यह परम्परा तोड़ने की कोशिश, सम्पूर्ण जगत को टी वी चैनल पर लाइव दिखाते हुए की गई। यह षड्यंत्र की गाथा क्यों रची गईं ?

दिनांक: 28 अगस्त 2021
अध्यक्ष, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन क्षेत्र कमेटी,
दूसरी मंजिल, हीरा बाग,कस्तूरबा गांधी चैंक, सी पी टेंक,मुम्बई-400004

विषय -सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज को संगठित करने की बजाय, परम्पराओं को तोड़कर विघटनकारी कदम उठाने पर तत्काल रोक व जवाबदेही तय करने हेतू


भारत में दिगम्बर जैन समाज की सबसे बड़ी व संवर्धन-संरक्षण की अग्रणी संस्था तीर्थक्षेत्र कमेटी के आप वर्तमान अध्यक्ष है। तीर्थक्षेत्र कमेटी का मूल आधारभूत कत्र्तव्य तीर्थों का संरक्षण व संवर्धन है, जो समाज में चल रही परम्पराओं को उसी रूप में गतिमान रखें बिना नहीं हो सकता।

श्रावण शुक्ल सप्तमी, ई.1996 यानि पिछले 25 वर्षों से अनादि निधन तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी की स्वर्णभद्र कूट पर नीचे तलहटी से मस्तक पर आदर पूर्ण लाकर श्रीजी के अभिषेक-शांतिधारा करने की स्वर्णिम शुरुआत हुई और इसका नेतृत्व स्व. श्री श्री किशोर जैन ने किया। लगातार 12 वर्षों तक यह गौरव बढ़ाते रहे, फिर उनके पुत्र श्री प्रवीन जैन लगातार चार वर्षों तक उन्हीं की उपस्थिति मस्तक पर श्रीजी विराजमान कर ले जाते रहे। दो वर्ष पूर्व पालिका में रखकर श्रीजी को ले जाया गया। वहां पर गत् वर्षों में कभी भी महिलाओं ने जलाभिषेक या शांतिधारा नहीं की

माननीय महोदय, आपने चैनल महालक्ष्मी से वार्ता के दौरान यह तो स्वीकारा कि यहां कभी पुष्प समर्पित नहीं करते, न दुग्ध या ना पंचाभिषेक करते, पर चैनल महालक्ष्मी से वार्ता करते आपने महिला अभिषेक जो आज से पूर्व ,स्वर्णभद्र कूट पर श्रीजी पर आज तक नहीं किया गया, के बारे कुछ (कु)तर्क दिये-

(1) श्वेताम्बर समाज की महिलायें यहां पहले करती है। इसलिये हमारी भी महिलायें करेंगी (कल कह सकते हैं कि उनका स्थानकवासी समाज मूर्ति पूजा नहीं करता, इसलिये हमारे मन्दिरों से भी मूर्तियां हटनी चाहिये, यह इसलिए कहा कि कुतर्क के प्रमाण में सीमायें लांघना अतिश्योक्ति नहीं।)

(2) दूसरा (कु)तर्क आपने दिया कि यहां शुरू से, अनादिनिधन से, महिलायें अभिषेक करती आ रही हैं।
महोदय, स्वर्णभद्र कूट पर श्रीजी को ले जाना 1996 से ही शुरू हुआ है और तब से आज तक श्रीजी पर अभिषेक या शांतिधारा कभी किसी महिला से नहीं हुई। इस 2021 की मोक्ष सप्तमी को कुछ श्रावकों ने टोका, तो उनकी आवाज को दबा दिया गया।

महोदय, हाथ जोड़कर सविनय कहना चाहूंगा कि दिगम्बर समाज में 13 पंथ व 20 पंथ की परम्परायें है, समान रूप से वंदनीय है, अनुकरणीय है। दोनों का ही समुचित आदर-सम्मान करना चाहिये। पर कहीं की परम्परा को तोड़ना, दूसरी परम्परा को थोपना, दिगम्बर समाज की एकता में निघटन की कील ठोकने जैसा हे। फिर क्यों यह परम्परा तोड़ने की कोशिश, सम्पूर्ण जगत को टी वी चैनल पर लाइव दिखाते हुए की गई। यह षड्यंत्र की गाथा क्यों रची गईं ?

चरणों पर श्री जी विराजमान
परम्परा ही नहीं तोड़ी गई, बल्कि श्री जी का अनादर भी 25 वर्षों बाद करने की जैसे शुरूआत सम्पूर्ण जगत को लाइव दिखाकर कर दी गई। श्रीजी को कहीं भी मन्दिर या किसी अन्य पूजनीय स्थान पर, कहीं भी सिंहांसन पर पूरा सम्मान देते हुए विराजमान किया जाता है।

परन्तु आप की उपस्थिति में 2021 मोक्ष सप्तमी पर, प्रतिमा को लाकर सिंहासन की बजाय, चरणों पर विराजमान कर दिया और आपने चैनल महालक्ष्मी से बातचीत में ताल ठोक कर, यह बात कही कि, ऐसा तो, यहां पहले से होता आ रहा है। श्रीजी का अविनय, अनादर भी, क्या पहले कभी किया गया?

परम्परा को तोड़ना, श्री जी अविनय करना, पूरे विश्व में लाइव देखा गया सम्भवतः लाखों लोगों के द्वारा और यह संकेत पहुंच गया कि जब दिगम्बर समाज की सबसे बड़ी संस्था ऐसा कर सकती है, परम्परायें तोड़ सकती है, श्रीजी का अविनय कर सकती है, तो शेष क्यों नहीं।

आपने दोनों के लिए (कु)तर्क तो कह दिये, पर अब आपसे इन 25 वर्षों में कभी भी केवल एक बार ही सही, इन दोनों के लिखित या फोटो के रूप में साक्ष्य, समाज के सामने प्रस्तुत कीजिये, यह आपका परम कर्त्तव्य व नैतिक जिम्मेदारी है। अगर आपकी बात में सत्यता होगी तो हम आपके चरण छूकर पूरे समाज से अपनी भयंकर भूल, बड़ी गल्ती और आप पर अनर्गल आरोपों के लिए क्षमा मांग लेंगें।

सम्पूर्ण तीर्थक्षेत्र कमेटी, बड़ी सभी संस्थाओं के पदाधिकारी, समन्वय समिति का दायित्व बनता है कि जो जो व्यक्ति उपरोक्त दोनों में शामिल है, जिनकी उपस्थिति व जानकारी में ऐसा हुआ, उन पर तत्काल उचित कार्यवाही हो तथा एक संयुक्त प्रस्ताव जारी किया जाये कि स्वर्णभद्र कूट पर पिछले 25 वर्षों की परम्परा यानि श्रीजी पर अभिषेक शांतिधारा केवल पुरूषों द्वारा ही की जाती रही है और रहेगी। साथ श्रीजी को कभी चरणों पर विराजमान उनका अनादर नहीं किया जायेगा।

कड़े शब्दों के लिये क्षमा के साथ,
(शरद जैन)
महामंत्री