क्या आप जानते हैं कि किस जगह तीर्थंकर भगवान नही होते?

0
1835

15 मार्च/फाल्गुन शुक्ल द्वादिशि /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/

मनुष्यलोक में युगलिक क्षेत्र यानी हेमवय, हिरण्यवय, हरिवर्ष, रम्यकवास, देवकुरु, उत्तरकुरु ये (6×5 ) 30 अकर्मभूमि व 56 अन्तरद्वीप में नही होते हैं। भरत ऐरावत महाविदेह की विजय के अनार्य खण्ड में नही होते हैं। जंबूद्वीप में महाविदेह की 2 विजय अधोलोक तक झुकी हुई है, मात्र इस अपेक्षा से तीर्थंकर प्रभु को हम अधोलोक में भी कह सकते हैं। भरत ऐरावत क्षेत्र में अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी काल के 1, 2 , 5 व छट्ठे आरे में तीर्थंकर नही होते है।

अवसर्पिणी के 3 रे व उत्सर्पिणी के 4थे आरे में एक -एक तीर्थंकर प्रभु तथा अवसर्पिणी के चौथे व उत्सर्पिणी के तीसरे आरे में 23 प्रभु जी होते है।

सामान्यतः तीर्थंकर प्रभु पुरुष ही होते है।

पंच परमेष्ठी में कुल गुण 108 होते है जिसमें से तीर्थंकर प्रभु में 12 गुण होते है। अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत बलवीर्य, अनंत सुख, दिव्य ध्वनि, भामण्डल, पाद पीठिका सहित स्फटिकमय सिंहासन, अशोक वृक्ष, पुष्प वृष्टि, देव दुंदुभी, चामर, तीन छत्र । इन बारह गुणों में कुछ लोग अलग मंतव्य भी रखते है।

तीर्थंकर प्रभु देव या नरक गति से आते है।

तीर्थंकर प्रभु इस भव के बाद नियमा मोक्ष प्राप्त करते है यानी सिद्ध सुख को प्राप्त करते है।

एक क्षेत्र में एक समय में एक ही तीर्थंकर प्रभु होते है।

भरत ऐरावत क्षेत्र में एक उत्सर्पिणी व एक अवसर्पिणी में 24 – 24 प्रभु जी विभिन्न समय में होते है। उसी अपेक्षा हम चौबीसी कहते है। महाविदेह में चौबीसी नहीं होती। वहां सदैव तीर्थंकर प्रभु विचरण करते रहते हैं। मतलब महाविदेह क्षेत्र में कभी तीर्थंकर प्रभु का अभाव नही होता।

जंबूद्वीप भरतक्षेत्र में जिस तरह हम ऋषभदेव प्रभु से लेकर महावीरस्वामी तक के 24 भगवान की चौबीसी कहते हैं, ठीक वैसे ही अन्य 4 भरतक्षेत्र व 5 ऐरावत क्षेत्र में भी अन्य 24 तीर्थंकर प्रभु हुए यानी अलग चौबीसी हुई इस काल में।