दुनिया का एकमात्र तीर्थंकर माता का मंदिर कहां है ONLY TEMPLE OF TEERTHANKAR’S MOTHER

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9 अप्रैल 2022//चैत्र शुक्ल अष्टमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
पूरा विवरण देखिए रविवार 10 अप्रैल को यूट्यूब महालक्ष्मी चैनल पर रात्रि 8:00 बजे ऐसी जानकारी जो देख कर हैरान हो जाएंगे

श्री माता त्रिशला जैन अतिशय क्षेत्र ग्वालियर त्रिशला गिरीTrishalaGiri Jain Atishay Kshetra GwaliorTRISHLA GIRI

ग्वालियर का त्रिशलागिरी (पर्वत) विश्व का एकमात्र ऐसा स्थान हैं, जहां जैन पंथ के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के गर्भकाल से लेकर मोक्ष तक का वर्णन 5 मूर्तियों के माध्यम से किया गया है। यहां की विशेषता माता त्रिशला के गर्भधारण काल की लेटी हुई मूर्ति है। इसके साथ ही भगवान के जन्म, तप ज्ञान और मोक्ष कल्याणक की मूर्तियों के माध्यम से भगवान के जीवनकाल को दर्शाया गया है।

ग्वालियर किले के उरवाई गेट के पास त्रिशलागिरी (पर्वत) है। यहां पर पर्वत पर माता त्रिशला की विशाल मूर्ति बनी हुई हैं। इस मूर्ति में माता त्रिशला को आराम करते दिखाया गया है। वहीं उनके पास ही अन्य देवियां बैठी हुई हैं। इसके बाद दूसरी मूर्ति भगवान महावीर स्वामी के जन्म की है। इसमें वह अपनी माता त्रिशला की गोद में बैठे हैं और इंद्र भगवान महावीर स्वामी को सुमेरू पर्वत पर लेकर जाने के लिए आए हैं। भगवान महावीर स्वामी को सुमेरू पर्वत पर लेकर जाते हैं और वहां पर उनका अभिषेक करते हैं। इसके बाद तीसरी मूर्ति में भगवान महावीर स्वामी को तपस्या करते हुए दर्शाया गया है।

भगवान स्वामी तपस्या कर ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। इसके बाद चौथी मूर्ति में भगवान को ज्ञान प्राप्त हो जाता है और वह ज्ञान का उपयोग लोगों के कल्याण में करते हैं। वहीं पांचवीं मूर्ति में भगवान मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

ग्वालियर किले पर राजा डूंगरसिंह का शासनकाल सन 1425 से 1459 तक रहा। इस दौरान उन्होंने जैन पंथ को काफी आगे बढ़ाया। उन्हीं के कार्यकाल में ग्वालियर किले की पहाड़ियों पर जैन पंथ के तीर्थंकरों की प्रतिमाएं बनना प्रारंभ हुई थीं। माता त्रिशला और भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमाएं भी उन्हीं के कार्यकाल के दौरान बनी बताई जाती हैं।

पांच कल्याणकों की यह है मान्यता
आचार्य योगेन्द्र सागर महाराज के शिष्य मुनिश्री यादवेन्द्र सागर महाराज ने बताया कि ग्वालियर ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहां पर भगवान के पांचों कल्याणकों को बताया गया है। इसमें प्रथम कल्याणक है गर्भकाल इसमें शिशु अपनी माता के गर्भ में आता है। दूसरा है जन्मकल्याण यह बच्चे के जन्म और बचपन का काल होता है। तीसरा है तप कल्याणक, इसमें मनुष्य तपस्या कर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करता है। चौथा है ज्ञान कल्याणक, इसमें मनुष्य ज्ञान प्राप्त कर इसके माध्यम से मनुष्य, और प्रकृति का कल्याण करता है। जबकि पांचवा कल्याणक है मोक्ष कल्याणक, इसमें मनुष्य अपने शरीर का त्याग कर देता है।