17 अगस्त 2023/ श्रावण शुक्ल एकम /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
8वीं सदी में जो जैन तीर्थों, साधु-संतों, श्रावकों को बदलने का सिलसिला शुरू हुआ, यह लालकिले की प्राचीर से 77वीं बार तिरंगा फहराने के बाद भी नहीं रुका। प्रधानमंत्री के दावें कुछ भी रहे हों – वसुदेव कुटुम्बकम्, डठए ऋअटकछ, परन्तु वर्तमान में सत्ता, प्रशासन, पुलिस व अन्य आध्यात्मिक व सामाजिक मंचों पर जैन समाज को उस नजर से नहीं देखा जाता, जैसा 15-20 साल पहले तक था। आज तो कौन-सा तीर्थ कब ‘रेड जोन’ में आ जाये, बदलने के कुचक्र में फंस जाये, जैन साधु-संत अपशब्द, असम्मान और हमलों के निशाने बन जायें, जैन मंदिरों में चोर ज्यादा एक्टिव हो जायें, सब होने लगा है। इसके कई कारण भी हैं, जिसमें
पहला तीनों स्तरों पर साधु-विद्वान-श्रावक वर्गों में एक नेतृत्व की कमी,
दूसरा बड़ा कारण – हमारी बड़ी कही जाने वाली कमेटियों की 100% डिवोशन में उदासीनता और
तीसरा समाज में एकता की कमी।
इस संबंध में कई संत गंभीर भी हैं, जिनके प्रवचनों से स्पष्ट संकेत मिलता है और इनमें अगर सबसे ज्यादा गंभीर देखें, तो आचार्य श्री सुनील सागरजी मुनिराज का नाम लें, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
स्वतंत्रता दिवस पर ऋषभ विहार दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री सुनील सागरजी मुनिराज के सान्निध्य में ‘उजला’ के पदाधिकारियों से गंभीर चर्चा हुई। इससे पूर्व भी रिटायर्ड जजों, कुछ वकीलों से भी जो चर्चा हुई, उसमें ऐसा लगा जैसे जैन ही अपने चल-अचल तीर्थों की सुरक्षा के लिये गंभीर नहीं हैं। अभी हाल की मीटिंग में सान्ध्य महालक्ष्मी – चैनल महालक्ष्मी को भी एक बड़ी जिम्मेदारी दी गई। प्रयास न एक कमेटी कर सकती है, न एक जगह का समाज, इसके लिये सामूहिक रूप से आगे आना होगा। उजला के अध्यक्ष सुशील कुमार जैन (सुप्रीम कोर्ट वकील), सुरेन्द्र मोहन जैन (उपाध्यक्ष प्रमुख कोर्डिनेटर) की अगुवाई में जैन समाज के लिये शिखरजी – गिरनार – केसरिया जी आदि अनेक केस लड़ रहे वकील भी आश्वासन देकर गये कि शीघ्र एक बड़ी मीटिंग ऋषभ विहार, दिल्ली में आचार्य श्री के परम सान्निध्य में आयोजित होगी,
जिसके लिये सान्ध्य महालक्ष्मी – चैनल महालक्ष्मी ने निम्न बिन्दुओं पर केन्द्रित करने को कहा, जो संभवत: वह पहलू है जिस पर जैन समाज को वकीलों का सहयोग व जानकारी चाहिये। क्रमानुसार मुख्य मुद्दे निम्न हैं:-
1. हमारे तीर्थों के लिये ‘पूजा के स्थान अधिनियम 1991’ का क्या सार्थक उपयोग – विशेषकर उन तीर्थों के लिए जिन्हें स्वतंत्रता के बाद बदला गया।
2. जैन धर्म की प्राचीनता एवं पाठ्य पुस्तकों और सेमिनारों में विवरण / उल्लेख – वर्तमान में जैन धर्म – संस्कृति को नेगेटिव रूप से पेश किया जा रहा है।
3. दिगम्बरत्व और जैन मुनियों का संरक्षण-पिच्छी, संथारा जैसे विषय से गुजरते हुये वर्तमान में विहार के समय हो रहे हमले।
4. जैन धर्म ग्रंथों, शिलालेखों तथा तीर्थों/ स्मारकों के संबंध में पुरातत्व सर्वेक्षण।
5. प्राचीन तीर्थ, जिन पर लगातार कब्जे, बदलाव की कोशिशें हो रही हैं, उनके प्रति ठोस कदम जैसे मंदारगिरि, खण्डगिरि आदि अनेक
6. ऐेसे तीर्थ, जहां हमारे पक्ष में स्टे, निर्णय आदि आदेश अदालत से मिल जाते हैं, पर सत्ता, प्रशासन या बहुसंख्यक के कारण हमें उसका लाभ नहीं मिलता, जैसे गिरनार, गोम्मटगिरि आदि।
7. अजैन मंदिरों में अनेकों जगह जैन प्रतिमायें पूजी जा रही हैं, उन पर अपने अधिकार।
8. पुलिस मालखाने में बंद जैन प्रतिमाओं को वापस लेना।
9. खुदाई में मिलने वाली जैन प्रतिमाओं को उजागर करने की बजाय गायब करना, जैसे अयोध्या आदि।
10. जैनों के पक्ष में अब तक आये अदालतों के निर्णय, जिनमें जैन धर्म अलग धर्म है, जैनों के पक्ष में निर्णय हो, या उल्लेख हो।
11. संविधान व अन्य अधिनियम में जैनों की सुरक्षा
12. जैन मंदिरों से प्रतिमाओं को म्यूजियम-तस्करों तक पहुंचना, उनकी वापसी।
13. वर्तमान मंदिर/ तीर्थ किस तरह पूरी तरह सुरक्षित रहें।
14. जैन साधुओं के प्रति बढ़ती दुर्घटनायें और उन पर कार्यवाही/ सुरक्षित विहार।
15. आरटी आई की महत्व जैन तीर्थों के लिए।
ये सभी बिंदु जैन समाज की हर कमेटी, के लिये आवश्यक हैं। इन पर प्रकाश डालने के लिये संबंधित क्षेत्र के लगभग 30-35 वकील शीघ्र ऋषभ विहार आ रहे हैं। ऐसे में सभी विद्वत वर्ग, सभी स्थानीय, क्षेत्रीय व राष्ट्रीय कमेटियों से भी विनम्र अनुरोध कि वे समाज
हित में अतिआवश्यक समझ कर सक्रियता से भाग लें। (शेष विवरण शीघ्र)१४. सन १८५८ से १९४६ तक आते-आते 22 जैन वीरों ने अपने प्राणों से आहुती दी।