तीर्थ क्षेत्र कमेटी – ध्यान तीर्थों पर अधिकार बनाए रखने का ही हो, तीर्थ रक्षा के लिए सेवाभाव से निःस्वार्थता से काम करें

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मंगलवार 31 अगस्त 2021, गिरनार जी तीर्थ, सम्मेद शिखर जी, अंतरिक्ष पार्शवनाथ जी और केसरिया जी सिद्ध और तीर्थ क्षेत्र के प्रकरण विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। आनंद जी कल्याण जी न्यास ने पालिताना तीर्थ को गुजरात उच्च न्यायालय की अहमदाबाद खण्डपीठ द्वारा प्रदत्त निर्णय अपने पक्ष में करने के लिये बिना भयभीत हुए समय रहते धर्म के हित में राहत पाकर अन्य सम्प्रदाय के हस्तक्षेप से बचा लिया है।

तीर्थक्षेत्र कमेटी ने यदुवंशी सर्व पूज्य श्रीकृष्ण जी के चचेरे भ्राता जिनकी आत्मा जीवन-मरण से मुक्ति पा चुकी है, ऐसे २२ वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी जिनेश्वर जैन समाज के आराधक हैं। उनके निर्वाण की पूज्यनीय चरण-चिह्न स्थली गुजरात राज्य के गिरनार पर्वत की पाँचवीं टोंक पर स्थित है। दिगंबर जैन धर्म के श्रावकों की अटूट आस्था स्थली को हिंदू समाज के कतिपय समूह के द्वारा जबरन क़ब्ज़े का जो प्रयास निरंतर होता आया है, उसे न्यायमार्ग से मुक्त कराने से बड़ा कोई धार्मिक कार्य समाज के श्रद्धालुओं के जीवन में हो ही नहीं सकता है।

विडंबना तो यह है कि समाज की तीर्थरक्षा करने के उद्देश्य से गठित श्री दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, मुबंई ने सर्व महत्व के इस तीर्थ की रक्षा से जुड़े प्रकरण पर उदासीनता धारण कर रखी है। ऐसी हालत में प्रभु नेमिनाथ जी के प्राचीन पुरातत्व संरक्षित नेमिनाथ जी भगवान के चरण चिह्नों की रक्षा संभव नहीं हो पा रही है।

पाँचों राष्ट्रीय संस्थाओं की उदासीनता भी है। मैं गिरनार जी तीर्थ राष्ट्रीय एक्शन कमेटी का सदस्य हूँ। तीर्थक्षेत्र कमेटी मुबंई का सम्माननीय सदस्य हूँ। पदाधिकारियों की रुचि मोक्ष स्थली बचाने में होना आवश्यक है। अन्यथा गिरनार जी तीर्थ पर उच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त स्थगन आदेश का पालन नहीं होना चिंता पैदा करता है। पाँच प्रकरण न्यायालय अहमदाबाद में लंबित होने पर भी हम अपना पक्ष मजबूती से रख नहीं सके हैं। चाहते तो पूरी खण्डपीठ में सुनवाई के लिए माँग कर सकते थे। वहाँ सुनवाई नहीं होने पर सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकते थे। दूसरी ओर पालिताना में आनंद जी कल्याण जी पेड़ी को अहमदाबाद उच्च न्यायालय से विश्व हिंदू परिषद के विरुद्ध सफलता प्राप्त हुई है।

हम गिरनार जी पर्वत की पांचवीं टोंक पर निरंतर बैठ रहे अजैनों को हटा नहीं सके हैं। उन्होंने पहाड़ पर ही कमलकुण्ड पर अपने रहने के लिए कमरें निर्माण कर लिये हैं। कोई भी आवश्यकता होने पर पाँचवीं टोंक से आवाज लगा देते हैं। पहाड़ पर वंदना के मार्ग में ‘दत्तात्रय प्रवेश द्वार’ का निर्माण कर लिया है। हम इस निर्माण को रोक नहीं सकें हैं।

सबसे पहले पाँचवीं टोंक पर नेमिनाथ भगवान के चरण के समीप दत्तात्रय की छोटी मूर्ति रख दी गई। बाद में बड़ी रख दी। चरण के पिछले वाले नीचे के हिस्से में पाषाण में उत्कीर्ण नेमिनाथ भगवान की प्राचीन मूर्ति को विकृत कर दिया गया है। अब भगवान के चरण चिह्न के पास में ‘दत्तात्रय चरण पादुका’ लिख दिया गया है। नई रेलिंग लगा दी गयी है।
हमारे समाज के तीर्थ यात्रियों को उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश सन् 2004 के अनुसार प्रदत्त निर्देश के बावजूद चावल, पूजा द्रव्य, जय बोलने, माला जपने, ढोक देने आदि कुछ भी नहीं करने दिया जाता है। चरण की अंगलियों को छोड़ कर शेष पूरा भाग फूलों से ढक दिया जाता है। यात्रियों, साधुओं, त्यागी वृत्तियों के साथ गाली-गलोच, डराना, मारपीट, धमकाना, जानलेवा हथियारों और डण्डों से हमला आदि हुआ है। फोटों तक नहीं लेने दिय जाते हैं।

नेमिनाथ भगवान के निर्वाण पर कुछ समय से आषाढ़ शुक्ल सप्तमी दिवस पर पहले चरण के पास निर्वाण लाडु चढ़ाते थे। फिर चढ़ाव पर चढ़ाने की सुविधा मिली और बाद में चढ़ाव की नीचे की पेढ़ी पर लाडू चढ़ाने की स्थिति पैदा कर दी गयी है। पुरातत्व संरक्षित स्थल से जुड़े नियमों के पालन कराने की कोई व्यवस्था ही नहीं बनाई गयी है ? पुरातत्व नियमों के जानकारी की सूचना तक प्रदर्शित नहीं हुई है। यह सब ज़िला प्रशासन की जानकारी में है। पुलिस भी न्यायालय के स्थगन आदेश के पालन पर ध्यान नहीं देती है।
तीर्थ की रक्षा की जिम्मेदार संस्था ने लाखों रुपये वकीलों पर खर्च कर दिये। किंतु समाज अपने धार्मिक अधिकारों से निरंतर वंचित होता गया है। अजैन वकील जैन धर्म के विधि-विधान क्रिया को जानता ही नहीं है। वह न्यायालय में हमारा पक्ष धर्म के आधार पर प्रस्तुत कैसे कर सकता है ? उनके तो ज़्यादा से ज़्यादा फ़ीस मिलने में रुचि रहती है। न्यायालय में तारीख़ें बढ़ाने से उनका हित सधता रहा है।

तीर्थ क्षेत्र कमेटी की स्थिति चुनाव से बचने के लिए पदों का सौदा ढाई-ढाई साल के लिए होने लगा है। अध्यक्ष पद पर बैठने वाले को रीति-नीति समझने में समय तो लगता ही है। तीर्थों से जुड़े प्रकरणों को समझने की उलझन को समझना समय और इच्छा शक्ति पर निर्भर है। देखते ही देखते नयेा चुनाव नज़दीक आ जाता है। जबकि संस्था का मूल उद्देश्य तीर्थों की रक्षा करना करना है। जैन तीर्थ वंदना पत्रिका में तीर्थों से जुड़े प्रकरणों और प्रमाणों के संबंध में जानकारी का अभाव रहता है। अन्य कार्यक्रमों के चित्र प्रमुखता से प्रकाशित होते हैं। सामग्री कभी बीस पंथ की और कभी तेरह पंथ आम्नाय की रहती है। होना तो यह चाहिए कि पदाधिकारी पाँच साल पद पर रहे। संस्था के उद्देश्यों के अनुसार तीर्थ रक्षा के लिए सेवाभाव से निःस्वार्थता से काम करें। अल्पसंख्यक समाज के तीर्थों से जुड़े अधिकारों का उपयोग तीर्थ रक्षा के लिए करें। लगभग दस हज़ार सदस्यों की संस्था के चुनाव में सदस्यों की भागीदारी व्यावहारिक नहीं है। समय परिस्थितियों के अनुसार बड़ी संख्या सदस्यता वाली संस्था का चुनाव प्रॉक्सी मतदान प्रणाली से कराने की स्वीकृति साधारण सभा से ली जाय। ऐसा होने से सभी सदस्यों को अपने मताधिकार करने का अधिकार मिस सकेगा। चुनाव में उम्मीदवार घोषित कर दें कि वे अपने पंथ की भावना और आग्रह को इस राष्ट्रीय संस्था के संचालन और गठन से पूरी तरह से दूर रखेंगे। पद पर रह कर वे संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति सेवाभाव से ही करेंगे। पदाधिकारियों को पद पर आसीन होने से पहले इस संस्था के प्रथम नियंता महामना माणिकचंद ज़वेरी के सेवाकाल और तीर्थों की रक्षकों लिए उनके योगदान का गहराई से अध्ययन करना चाहिए। उनके बाद के सर सेठ हुकुमचंद, इंदौर लगभग पचास साल तक रहे। उनके बाद साहू परिवार की सक्रियता उल्लेखनीय है। इनकी कार्यप्रणाली अनुकरणीय है।

बण्डीलाल कारख़ाना के पदाधिकारियों की गिरनार तीर्थ की रक्षा के प्रति अब उदासीनता खटकने जैसी है। अपनी ज़िम्मेदारियों से हाथ क्यों पीछे रह गये हैं। जबकि इस संस्था की पहचान गिरनार तीर्थक्षेत्र से ही है।

गिरनार सिद्ध क्षेत्र से जुड़ी हुई दूसरी, तीसरी, चौथी और पाँचवीं टोंक समाज की प्राचीन समय से पवित्र आस्था पर आधारित रही है और रहना चाहिए। भावी पीढ़ी हमेशा के लिए वंदना के लिए भक्ति भाव से आती रहे, यह दायित्व वर्तमान समाज का है। समाज का रहे, सिर्फ़ यही सदभावना है।

निर्मलकुमार पाटोदी, इंदौर :- सम्पर्क : 7869917070