#शिखरजी में बने तत्काल आचार संहिता, मिसाल है 1100 साल पहले की बहुत सख्त इस मंदिर की #आचार_संहिता, इतनी सख्त कि विश्वास नहीं कर सकते

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चैनल महालक्ष्मी के इस चिंतन पर सभी की राय आमंत्रित है
आज हम कहते हैं कि हमारे तीर्थों पर विशेषकर सिद्ध क्षेत्र पर कोई आचार संहिता नहीं है । पर क्यों हो, सवाल यह भी उठता है। क्या किसी और मंदिर में ऐसा है? वैसे बिना नियम –
कानून के वहां की पवित्रता और पावनता को आसानी से भंग किया जा सकता है। यह हम शिखर जी का दृश्य वर्तमान में सभी देख रहे हैं। तो क्या मंदिरों में आचार संहिता नहीं होनी चाहिए? आप जानकर हैरान होंगे कि हमारे देश में आजादी के बाद आम चुनाव के लिए आचार संहिता बनी, उससे पहले ही देश में लोकतंत्र के प्रावधान 1100 साल पहले भी थे और आचार संहिता आज से ज्यादा सख्त थी।

शिक्षित और ईमानदार होना सबसे बड़ी योग्यता, घूसखोरी व व्यभिचार बर्दाश्त नहीं
चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 35 व अधिकतम 70 साल थी। ईमानदारी से कमाई, करदाता होना और आधा एकड़ टैक्स पेड जमीन होना जरूरी था। दो कार्यकाल में 3 साल अंतर, अधिकतम 5 बार ही लड़ सकते थे। न्यूनतम शिक्षा अनिवार्य, वेदों का ज्ञान अतिरिक्त योग्यता। आय-खर्च, संपत्ति का ब्योरा न देने वाले अयोग्य। पद पर रहते घूसखोरी, भ्रष्टाचार करने पर ससुराल सहित सभी रिश्तेदार ताउम्र अयोग्य होते थे। परिवारिक व्यभिचार, दुष्कर्म करने वाला 7 पीढ़ियों तक अयोग्य। अवैध संबंध रखना, हत्या, मदिरापान, चोरी, अतिक्रमण, ठगी पर ताउम्र अयोग्य।

कई प्रावधान मौजूदा आदर्श चुनाव संहिता में भी हैं

यह व्यवस्था थी तमिलनाडु के प्रसिद्ध कांचीपुरम से 30 किमी दूर लगभग 1250 साल पुराना कस्बा है उथीरामेरुर। इसे लोकतंत्र के प्राचीनतम तीर्थस्थलों में से एक कहा जाता है। यहां वैकुंठा पेरूमल (विष्णु) मंदिर के चबूतरे की दीवारों पर 920 ईस्वी के आसपास चोल वंश के वे राज्यादेश दर्ज हैं, जिनमें कई प्रावधान मौजूदा आदर्श चुनाव संहिता में भी हैं।
सदियों पहले उथीरामेरुर के 30 वार्डों से 30 जनप्रतिनिधियों का चुनाव बैलेट सिस्टम से होता था। नियत दिन बच्चों, महिलाओं सहित सभी लोग ग्राम सभा मंडप में उपस्थित होते थे। सिर्फ बीमार, तीर्थ यात्रा पर गए लोगों को छूट थी। ताड़ के पत्तों पर प्रत्याशियों के नाम लिखकर घड़े में डाले जाते थे। हर वार्ड का अलग बंडल होता था। पुजारी किसी बच्चे से ताड़पत्र निकलवाकर, सबके सामने नाम पढ़ते थे। सबसे बुजुर्ग पुजारी, विजेता की घोषणा करते थे।

घूसखोरी, अपराध करने या अक्षम साबित होने पर बीच कार्यकाल से हटाया जा सकता

चुनाव में सभी वर्ग के लोग भाग ले सकते थे। इन्हीं 30 निर्वाचित लोगों में से योग्यता के अनुसार, सिंचाई तालाब, बाग, परिवहन, स्वर्ण परीक्षण व व्यापार, कृषि, सूखा राहत आदि के लिए कमेटियां बनाई जाती थीं। कार्यकाल एक साल होता था। पद पर रहते हुए घूसखोरी, अपराध करने या अक्षम साबित होने पर बीच कार्यकाल से हटाया जा सकता था। यह ‘राइट टू रिकॉल’ जैसा था। मंदिर के चबूतरे के चारों ओर 25 राज्यादेश दर्ज हैं। आज भी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी इस मंदिर में आशीर्वाद लेने आते हैं। सेंट्रल विस्टा की नींव रखते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसका जिक्र किया था। मंदिर के मुख्य पुजारी एस. शेषाद्रि बताते हैं, पहली बार यह मंदिर चर्चा में तब आया, जब 1988 में राजीव गांधी यहां आए।

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