शनिवार 21 अगस्त 2021
गिरनार जी तीर्थ, सम्मेद शिखर जी, अंतरिक्ष पार्शवनाथ जी सिद्ध और तीर्थ क्षेत्र के प्रकरण न्यायालयों में लंबित हैं। आनंद जी कल्याण जी न्यास ने पालिताना तीर्थ को गुजरात उच्च न्यायालय की अहमदाबाद खण्डपीठ द्वारा प्रदत्त निर्णय के लिये बिना भयभीत हुए समय रहते अपने धर्म के हित में राहत पाकर राष्ट्रीय हिंदू संगठन से बचा लिया है।
तीर्थक्षेत्र कमेटी ने यदुवंशी सर्व पूज्य श्रीकृष्ण जी के चचेरे भ्राता जिनकी आत्मा जीवन-मरण से मुक्ति पा चुकी है, ऐसे २२ वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी जिनेश्वर जैन धर्म के आराधक हैं। उनके निर्वाण की हम सब की पूज्यनीय चरण-चिह्न स्थली गुजरात राज्य के गिरनार पर्वत की पाँचवीं टोंक पर स्थित है। दिगंबर जैन धर्म के श्रावकों की अटूट आस्था स्थली को हिंदू समाज के कतिपय अधार्मिक समूह के द्वारा कर लिये गये जबरन क़ब्ज़े से मुक्त कराने से बड़ा धार्मिक कार्य समाज के श्रद्धालुओं के जीवन में हो ही नहीं सकता है।
विडंबना तो यह है कि समाज की तीर्थरक्षा करने के लिए गठित श्री दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, मुबंई के पदाधिकारियों ने सर्व महत्व के इस धर्मक्षेत्र की रक्षा से जुड़े प्रकरण को एक व्यक्ति श्री पारसमल जी जैन, अध्यक्ष अहमदाबाद गुजरात पर छोड़ दिया है। वास्तविकता यह है कि इन महानुभाव का व्यवसाय पर सरकार का कोप न आवे, वे अपने हितों को सामने रख कर काम करना चाहते हैं। ऐसी स्वार्थी हालत में प्रभु नेमिनाथ जी के प्राचीन पुरातत्व से संरक्षित भगवान के चरण चिह्नों की रक्षा संभव नहीं लग रही है।
तीर्थों की रक्षा में पाँचों राष्ट्रीय संस्थाओं की उदासीनता सर्व ज्ञात है। मैं गिरनार जी तीर्थ राष्ट्रीय एक्शन कमेटी का सदस्य हूँ। तीर्थक्षेत्र कमेटी मुबंई का सम्माननीय सदस्य हूँ। अधिकार पदाधिकारियों के पास है और उनकी रुचि मोक्ष स्थली बचाने में नहीं है। अन्यथा पालीताना की तरह गिरनार जी तीर्थ पर समय रहते उच्च न्यायालय के प्रदत्त स्थगन आदेश के जान बूझकर पालन नहीं होने की स्थिति में हस्तक्षेप हो जाता। पाँच प्रकरण न्यायालय में लंबित होने पर भी हम मजबूती कार्यवाही कर नहीं सके। चाहते तो पूरी खण्डपीठ में सुनवाई के लिए माँग कर सकते थे। सुनवाई नहीं होने पर सर्वोच्च न्यायालय में जा सकते थे। दूसरी ओर पालिताना में आनंद जी कल्याण जी पेड़ी ने विश्व हिंदू परिषद के विरुद्ध सफलता प्राप्त कर ली है।
हम गिरनार जी पर्वत की पांचवीं टोंक पर निरंतर बैठ रहे पण्डों को हटा नहीं सके हैं। उन्होंने पहाड़ पर ही कमलकुण्ड पर रहने के लिए कमरें निर्माण कर लिये हैं। कोई भी बाधा आती तो पाँचवीं टोंक से आवाज लगाकर कमलकुण्ड से सहायता के लिए आ जाते हैं। पहाड़ पर वंदना के मार्ग में पण्डों ने दत्तात्रय द्वार बना लिया। हम निर्माण को रोक नहीं सकें।
इसके पहले पाँचवीं टोंक पर दत्तात्रय की छोटी मूर्ति रख दी। बाद में बड़ी रख दी। टोंक में ही नीचे हिस्से में पाषाण में उत्कीर्ण नेमिनाथ भगवान की मूर्ति को विकृत कर दिया। भगवान के चरण चिह्न के पास में दत्तात्रय चरण पादुका अंकित कर दिया गया। रेलिंग लगा दी गयी।
हमारे समावर्तन यात्रियों को उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश सन् २००४ के अनुसार चावल, पूजा द्रव्य, जय बोलने, माला जपने आदि कुछ भी नहीं करने दिया। चरण को अंगलियों को छोड़ कर पूरा फूलों से ढकने लगे। यात्रियों, साधुओं, त्यागी वृत्तियों के साथ गाली-गलोच, डराना, मारपीट, धनकाना, जानलेवा हथियारों और डण्डों से हमला आदि हुआ है। फोटों तक नहीं लेने दिये गये।
नेमिनाथ भगवान के निर्वाण दिवस पर पहले चरण के पास निर्वाण साड़ी चढ़ा देते थे। फिर चढ़ाव पर चढ़ाने और बाद में चढ़ाव की नीचे की पेढ़ी पर लाडू चढ़ाने की हालत पैदा कर दी गयी। अब यह सब कुछ ख़त्म हो गया है। पुरातत्व संरक्षित स्थल से जुड़े नियमों के पालन को देखने की कोई व्यवस्था ही नहीं की गयी ? पुरातत्व नियमों के जानकारी की सूचना तक प्रदर्शित नहीं हुई है। यह सब ज़िला प्रशासन की जानकारी में हुआ है। पुलिस ने भी इस संबंध में न्यायालय के स्थगन आदेश के पालन पर ध्यान नहीं दिया।
तीर्थ की रक्षा की जिम्मेदार संस्था ने लाखों रुपये वकीलों पर खर्च कर दिये। किंतु समाज धार्मिक अधिकारों से निरंतर वंचित होता गया है। अजैन वकील जैन धर्म के विधि-विधान किया जाने ? उनके तो अपनी ज़्यादा से ज़्यादा फ़ीस के वसूलने में रुचि रही है। न्यायालय में तारीख़ें बढ़ाने से उनका हित सधता रहा है।
तीर्थ क्षेत्र कमेटी की हालत तो इतनी गिर चुकी है कि चुनाव की अपेक्षा पद का सौदा ढाई-ढाई साल के लिए होने लगा। अध्यक्ष पद पर बैठता और कुछ समय बाद नये चुनाव की ओर ध्यान देने लगता है। वह तीर्थों के प्रकरणों को समझ ही नहीं पाता है। उसकी रुचि पत्रिका में चित्र छपवाने तक सीमित हो गयी है। वह अपने बीस और तेरह पंथ के आम्नाय के हितों को साधने में ध्यान देने लगता है। तीर्थ रक्षा की उसे परवाह नहीं रहीं है.
ऐसी सोचनीय हालत जब हमारी तीर्थक्षेत्र कमेटी की है, तब अल्पसंख्यक समाज के तीर्थों के अधिकार और उसे बचाने की उम्मीद कैसे और किससे की जा सकती है ? हम अपने तीर्थों के लिए प्रदत्त अल्पसंख्यक अधिकारों का लाभ उठाने के प्रति पूरी तरह उदासिन हैं।
बण्डीलाल कारख़ाना के ये पदाधिकारियों ने तो गिरनार तीर्थ की रक्षा के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों से हाथ ही खींच लिए हैं।
तीर्थ क्षेत्र कमेटी सदस्यों की कोई क़ीमत ही नहीं है। उनकी उपयोगिता चुनाव तक ही सीमित रह गई है।
मैंने जो लिखा है, गिरनार तीर्थक्षेत्र समाज का रहे, सिर्फ़ इसी भावना से लिखा है। हम भूल गये हैं कभी इस संस्था के अध्यक्ष माणिकचंद ज़वेरी, सेठ हुकमचंद, साहू परिवार के महानुभावों ने कर्तव्य का पालन करते हुए पूरी सेवा भावना से अतुलनीय योगदान दिया है।
अब तो समय-परिस्थितियों के अनुसार चुनाव प्राक्सी वोटों के अनुसार होना ही चाहिए। लगभग दस हज़ार मतदाता सदस्य चुनाव स्थल पर मतदान करने नहीं पहुँच सकते हैं।
– निर्मलकुमार पाटोदी, इंदौर