तीर्थों की सुरक्षा के लिए पहली बड़ी महापंचायत : तीर्थक्षेत्र कमेटी, बड़े वकीलों के साथ श्री महावीरजी में आचार्य श्री सुनील सागरजी के सान्निध्य में कई बड़े खुलासे और भावी योजनाओं की रूप रेखा

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20 मार्च 2024 / फाल्गुन शुक्ल एकादिशि/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन / Exclusive
गिरनार, शिखरजी, केसरिया, शिरपुर आदि केसों में तारीख पर तारीख और हर तारीख पर वकीलों का बिल 30 से 40 लाख, क्या यह सिलसिला रोका नहीं जा सकता, समन्वय से, या फिर… बस इसी पर मनन के लिये तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन तथा सुप्रीम कोर्ट के वकील सुनील कुमार जैन, (जिन्होंने शिरपुर के 42 सालों से बंद ताले खुलवाये), मनोज जैन, सुप्रीम कोर्ट के वकील (जो अब अपने को जैन तीर्थों के संरक्षण के लिये पूरी समर्पित) तथा वकालत के 50वें साल में खिल्लीमल जैन, जिनका मन बार-बार धिक्कारता है कि अपने तीर्थों को ही नहीं बचा सकते, तो क्या फायदा इस वकालत जीवन का। इन सबको आचार्य श्री सुनील सागरजी के पास लेकर सान्ध्य महालक्ष्मी की टीम अपना कर्तव्य निभाते, लेकर पहुंची श्री महावीरजी में। हर ने केसों पर अपने विचार प्रस्तुत किये, तब हमने गुरुवर से हमें इस सम्बंध में समाज हित में आदेश देने के लिये अनुरोध किया

गिरनार पर न हमारा, न दत्तात्रेय का मालिकाना हक पर दर्शन, पूजा का अधिकार पूरा है
आचार्य श्री सुनील सागरजी ने कहा कि आचार्य श्री, मुनि उपदेश देते हैं, आदेश नहीं। लेकिन जो अनुयायी होते हैं, वे उपदेश को, आदेश जैसा मानकर आगे बढ़ते हैं, अमल करते हैं और सफल होते हैं। गिरनारजी के संबंध में तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जी, खिल्लीमलजी, सुनील जी, मनोज जी, शरद जी द्वारा जो भी विचार रखे गए हैं, बिल्कुल सही हैं, परस्पर समन्वय काफी अच्छा है। सभी वकीलों की बात कि गिरनार सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, उसे ना दत्तात्रेय वाले खरीद सकते हैं और ना ही हम, पर सहमति जताते हुये उन्होंने एक महंत द्वारा जो उनसे कहा वह चौंकाने वाला था।
उन्होंने कहा कि गिरनार जी जैसे तीर्थों का हमें दर्शन हो, उनकी रक्षा हो, उनकी समृद्धि हो। परस्पर में सामंजस्य काफी अच्छा है, लेकिन कम्यूनिकेशन गैप होने से कई बार लगता है, जैसे हम अपोजिट में खड़े हैं। पहाड़ हमें चाहिए नहीं, लेकिन वहां जो चरण हैं, छतरी है, नेमिनाथ प्रतिमा है, उसी रूप में दर्शन हो, जिस रूप में 1947 में होते थे। इतिहास बहुत बड़ा है, सबूत बहुत ढेर सारे हैं। पिटीशंस बहुत सारे तैयार किए गए हैं, सामने वालों ने अपने पावर से समय-समय पर वहां परिवर्तन करवाएं हैं।

महंत का दावा : हमने सब बदल दिया, अब क्या करोगे, कुछ मिलने वाला नहीं
एक महंत जी मिले थे और हमसे कहने लगे कि आप क्या करोगे, हमने तो आफिसों में बैठ-बैठ करके प्रशासन से बहुत चीजें चेंज कराई हैं। आपको यहां पर कुछ मिलने वाला नहीं है। हमने कहा कि ये तो आप जानते हैं कि ये जैनों का प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र है, इस पर महंत ने कहा आपकी बात सही है, पुराणों की बात सही है, आप सही हैं, लेकिन मैं वर्तमान को मानता हूं, वर्तमान के अनुसार चलता हूं, आज यह हमारा तीर्थ है। हमने कहा कि आप अपना प्रभुत्व रखिये, पर जैनों को भी विधिवत पूजा-दर्शन करने दीजिए। धीरे-धीरे वो प्रभावित भी हुए, हमारी बातें भी मानी, पर उन्हें सत्ता का गरूर है, पर सत्य भी कोई चीज है।

गिरनार पर गुंडे भारतीय संस्कृति के लिए कलंक
अदालत के आदेशों का पालन हो, सीसीटीवी कैमरे लगें, सुरक्षित दर्शन हों। किसी भी अनैतिक तत्व को वहां प्रवेश नहीं दिया जाए। वहां जो गुंडे बैठते हैं, वो भारतीय संस्कृति के लिए कलंक की बात हैं।
जैन समाज का न हो भरुण्ड पक्षी जैसा हाल
श्वेताम्बरों से चल रहे विवादों पर उन्होंने भरुण्ड पक्षी का उदाहरण देते हुए कहा कि आपसी लड़ाई में भारुण्ड पक्षी वाला हाल होगा जैसे उसके दो मुंह होते थे, पेट एक। एक बार ऐसा हुआ, भोजन करने की बात आई, दोनोें ने अपनी-अपनी तरफ का भोजन खाया, परंतु पेट एक है, मुंह दो। इस भोजन को लेकर झगड़ पड़े, बाद में यह परिणाम हुआ कि एक मुंह ने विचार बनाया कि दूसरे को जहर खिला दिया जाए। जहर खिला दिया, परिणाम यह हुआ कि दोनों खत्म हो गए। यही हाल दिगंबर-श्वेतांबर का है। अगर नहीं समझेंगे, तो भरुण्ड पक्षी की तरह बहुत नुकसान खाएंगे। संभल कर चलेंगे, तो देश में नाम कमाएंगे, सबसे ऊपर रहेंगे, जो उनकी छवि है।

तेरह-बीस में बंट गया दिगंबर समाज
दिगंबर समुदाय में ही तेरह-बीस में विवाद करने, झगड़े करने पर उन्होंने जम्बू प्रसाद जी की बात पर सहमति जताते हुए कहा कि जरा से फूल पत्तों की पूजा की, फूल पत्तों को लेकर इतना बखेड़ा कर दिया। इसमें शामिल होते हैं वह पंडित, नामधारी साधु-संत। क्या फर्क पड़ रहा है, जैसी पद्धतियां चल रही हैं, वैसे ही चलने दिया जाए। जह मंदिर, समाज और संस्थाओं की बात आये, तो सब एक होकर काम करें। घर में दो भाई हैं, एक दूध पी रहा है, एक पानी पी रहा है, हरी भाजी खा रहा है, अष्टमी को भी खा रहा है, दूसरा कह रहा है कि अष्टाह्निका का पर्व चल रहा है, मैं नहीं खाऊंगा, तो क्या दुश्मन हो जाते हैं। समझदारी से काम करें, तो आपसी प्रेम बना रहेगा और सभी एक साथ भक्ति करें, जहां दिक्कत महसूस होती है तो एक वेदी या एक कोई प्रतिमा सुनिश्चित कर लो, कि आप यहां भक्ति करो। समझदारी से रहोगे, तो समाज जीवंत होगा और उन्नत करेगा। अगर टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे, तो हाल देखो, देश की प्रतिष्ठित पार्टी को आज कोई पूछने वाला नहीं है। हम भी देश के प्रतिष्ठित धर्म के हैं, प्रतिष्ठित धर्म वाले प्रतिष्ठित संस्कृति के लोग हैं और इस लापरवाही पर चल रहे हैं और चलते रहें तो बहुत बुरा हाल होगा। रुक जाने की जरूरत है, जहां तक हम रांग साइड चले गए हैं, वहीं रुक जाएं और सावधानी बरतें।

श्रीराम मंदिर के लिए जैनों ने बलिदान दिये, यहां हमारा विरोध क्यों?
गिरनार जी के दर्शन करें, लेकिन वहां दत्तात्रेय मूर्ति नहीं थी, मूर्ति नहीं होनी चाहिए। मूर्ति पर लकीरें खींच कर, रंग पोत कर, तुम दूसरा कुछ बनाने लग जाओ, यह अच्छी बात नहीं है। भाई सत्ता आपकी है, लेकिन सत्य भी तो कोई चीज है। आप हमें प्यार करेंगे, हम भी आपको प्यार करेंगे। श्री राम मंदिर की जब बात आती है, तो हम कहेंगे कि वह 500 साल के संघर्ष में वो अकेले नहीं थे, उस संघर्ष में हम लोग भी थे। इतिहास खंगालिये जैन भी उसमें शहीद हुए हैं। भले नाम के साथ कोठारी लगता हो, कुछ और लगता हो। हम समझदारी से खड़े हैं, हमारी संस्कृति है, हमारा देश है।

हमारे जिनालयों पर अनाधिकृत कब्जे न हों
आज उनको भी चाहिए कि वह जिनालयों पर, जिन प्रतिमाओं पर, प्राचीन तीर्थों पर अनाधिकृत कब्जा ना करें ना करवायें, ना उन पर रंग पोते, ना उनको कपड़े पहनाए, ना उन पर आंखें लगायें। क्योंकि श्रमण और वैदिक संस्कृति आदिकाल से साथ-साथ चल रही है और साथ-साथ चलने में ही भलाई, नहीं तो भरुण पक्षी की तरह हाल होगा। कोई तीसरा आकर मस्ती करेगा। आप सभी सद्भावनाओं से आगे बढ़ रहे हैं और प्रज्ञा का प्रयोग कर रहे हैं। हमें सिर्फ दर्शन पूजन का अधिकार चाहिए, हम लोग बहुत साफ-सुथरे लोग हैं, हमें कोई कब्जे नहीं चाहिए। हमें कोई कुर्सियां नहीं चाहिए, लेकिन जितना जो अधिकार बनता है, कम से कम देव पूजा, दर्शन का विधिवत जाप का अधिकार मिले, उतना तो जरूर चाहिए।

पुरातन-संस्कृति का संरक्षण हो, छेड़छाड़ नहीं
आज भारतीय पुरातन बदला जा रहा है, संस्कृति से छेड़छाड़ हो रही है, इस पर उन्होंने कहा कि हम साथ में यह भी कहेंगे कि पुरातत्व का संरक्षण होना चाहिए। बदलने नहीं चाहिए, कोई और आकर बनाने लग जाए, बदलने लग जाए, मस्ती करने लगे जाए, उसका अर्थ यह नहीं है। पुरातत्व पहाड़, पहाड़ की तरह रहना चाहिए, नदियां, नदियों की तरह रहनी चाहिए, प्राचीन स्वरूप की तरह रहना चाहिए, पूरी प्रकृति मुस्कुरानी चाहिए। जहां चाहे कंकरीट वॉल खड़ी कर दिए, वह हमारी प्रकृति के लिए, पर्यावरण के लिए, देश के लिए, संस्कृति के लिए, नुकसानदायी है। बच्ची सिंह जी कहते हैं, सब मंदिरों में गिरनार के बोर्ड लगाइए, पूजा की किताबों में जब नेमिनाथ भगवान का अर्घ्य लिखते हैं, तो पंचम टोंक से मोक्ष पधारे, ऐसा लिखिए, ख्याल रखिए। बच्चों को कहानी सुनाएं ताकि बातें जीवंत रहे, बात सब ठीक है हमें किसी न किसी रूप से उपक्रम करना चाहिए। लोग कहते हैं सुनील सागरजी ने काहे को यह मामला उठा लिया। भाई सुनील सागरजी तो 1977 में पैदा हुए। यह तो नेमिनाथ भगवान के काल से चला आया है, जब श्री कृष्ण नारायण इस धरती पर विचरण करते थे और नेमीनाथ भगवान की वंदना को जाते थे, वह तो गोभूमि है और हमारे पुरखे दर्शन करते रहे।

अनेकों ने कहा है, 25-30 बरस पहले वहां कोई दत्तात्रेय की मूर्ति नहीं थी
एक जज के ही अनुभव को शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि नरेंद्र जी आए थे, जो जस्टिस रहे हैं। वह बोले महाराज जी मैं जब गया था, जैसे आपने बताया था, वैसा कुछ नहीं था, सिर्फ चरण थे और आराम से भक्ति करें, पहली-पहली बार में जज बना था और मेरा मन हुआ कि तीर्थों की वंदना करें। मैंने खूब अच्छे से वंदना की। कोई रोक नहीं, कोई टोक नहीं, कोई धक्के देने वाला नहीं और कोई मूर्ति नहीं थी, सिर्फ दीवार पर नेमिनाथ भगवान की छोटी मूर्ति और चरण थे। लगभग यह 25 या 30 वर्ष पहले की बात है।पहले 4 इंच की, फिर 9 इंच की हो गई, फिर 2 फुट के हो गए, फिर 4 फुट पर पहुंच गए। भाई सत्ता आपकी है, चाहे हजार फुट की खड़ी कर लो, लेकिन इससे प्रकृति और संस्कृति का नुकसान हो रहा है।

जैन भी हिंदुस्तान की उपज हैं
वैदिक परम्परा को मानने वाले भी भाई हैं, इस पर उन्होंने कहा कि तुम्हारे ही छोटे भाई नाराज और दुखी हो रहे हैं। जैन समाज कोई खुश थोड़े ही है, तुम्हारी इस तरह की प्रवृत्ति से। पंडित जी को पीट दिया, श्रावक को पीट दिया, मुनियों को गाली दे दी, किसका अपमान कर रहे हो। और पूछते हैं कि जैन हो या जैन हिंदू हो। इंद्रियों को जीतने वाले की भक्ति करते हैं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से वह हिंदू हैं। हिंदुस्तान की उपज हैं, देसी हैं, वह कोई गैर थोड़े ही हैं, इतना समझ में नहीं आता है कि वो जैन हैं, कि हिंदू हैं। इनके सैद्धांतिक रूप से, पद्धति, बातें ऐसी हैं जो जैन धर्म में स्पेशल रूप से, जैसे ईश्वर का कर्ता नहीं मानते, जैसे पुन: अवतार नहीं मानते, ऐसी कुछ बाते ंहैं, बाकि पूरा देख लो, आचार-विचार, सदाचार, अहिंसा, प्रेम, गौ सेवा, पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम अंतर कहां है।

(नोट : इसकी पूरी जानकारी यू-ट्यूब /channelmahalaxmi पर एपिसोडं. 2490 ‘तीर्थों की सुरक्षा के लिए पहली बड़ी महापंचायत’ में देख सकते हैं। )