जिन्हें हिंदू पुराणों में ब्रह्मा,विष्णु और शिव समझ लिया गया है,जिन्हें यहुदी, ईसाई और इस्लाम मजहब में आदिम बाबा(Adam) माना गया है, जिन्हें जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ माना गया और बौद्ध धर्म में प्रथम बुद्ध आदिबुद्धा माना गया है।
वे ऋषभदेव इस धरती पर प्रथम राजा हुए ,उनसे पहले कल्पवृक्षों की सहायता से सभी युगलिक लोग अपना जीवन यापन कर लेते थे ,
लेकिन युगलिककाल के अंत होने से जब कल्पवृक्षों का प्रभाव मंद हो गया तब उनके पिता नाभि कुलकर (जिनके नाम से हिंदू पुराणों में भारत का प्राचीन नाम अजनाभवर्ष मिलता है)ने ऋषभदेव को विश्व का प्रथम राजा घोषित किया और ऋषभदेव ने युगलिकों की समस्या का समाधान करने के लिए पुरुषों को 72 और स्त्रियों को 64 कलाए सिखाई,कृषि करना,बर्तन बनाना ,खाना पकाना ,लिखना-पढ़ना, नृत्यकला ,अस्त्र-शस्त्र बनाना ,घुड़सवारी आदि सभी कलाए ऋषभदेव ने ही सिखाई थी। ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को 18 लिपि में लिखना सिखाया।जिस कारण से विश्व की प्राचीनतम ब्राह्मी लिपि अस्तित्व में आई।पुत्री सुंदरी को गणित विधा में पारंगत किया।
समाज की अर्थव्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए तीन वर्ण व्यवस्था क्षत्रिय वर्ग ,व्यापारी वर्ग ,और शुद्र वर्ग की स्थापना ऋषभदेव ने ही की थी। ऋषभदेव के ही पुत्र भरतचक्रवर्ती के नाम पर भारतवर्ष का नामकरण हुआ , फिर ऋषभदेव विश्व के प्रथम तपस्वी बने और उन्होंने पूर्णज्ञान प्राप्त कर विश्व को आत्मा के 84 लाख योनियों में अनंत बार जन्म- मरण के चक्कर और शाश्वत आत्मा का सभी दोषों और कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर परमात्मा बनने के मार्ग काब उपदेश दिया।
विश्व के प्रथम शिक्षक ऋषभदेव(तीर्थंकर आदिनाथ) को कोटी कोटी नमन