ताड़पत्रों पर सोने की स्याही से लिखे अत्यंत प्राचीन बेशकीमती एवं दुर्लभ ग्रंथ – सिर्फ सुगंध दशमी को ही समाज के लिए खोला जाता है

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ये चित्र पू १०५ श्री ऐलक पन्नालाल का है ।
जो सरस्वती भवन झालरापाटन में लगा है ।

इन्होंने समाज के लिये जो योगदान किया है , उसे भुलाया नहीं जा सकता ।
इन्होंने अपना पूरा जीवन प्राचीन दि जैन ग्रंथों को सहेज कर सुरक्षित करने में लगा दिया । और पूरे भारत के हर कोने से उपेक्षित पड़े बेशकीमती दि जैन ग्रंथों को सहेज कर भारत में चार जगहों पर इनको सुरक्षित किया ।

और एलक पन्नालाल सरस्वती भवन की स्थापना 100 साल पहले की ।
झालरापाटन ,ब्यावर ( राजस्थान ) उज्जैन, और मुम्बई ।
झालरापाटन में तीन मंजिला एलक पन्नालाल सरस्वती भवन है , जो सिर्फ सुगंध दशमी को ही समाज के लिए खोला जाता है । ( सुरक्षा की दृष्टि से )
यहां पाली , अपभ्रंश एवं प्राकृत भाषा में लिखे गये , ताड़पत्रों पर सोने की स्याही से लिखे अत्यंत प्राचीन बेशकीमती एवं दुर्लभ ग्रंथ हैं । जो कड़ी सुरक्षा में रखे गए हैं ।
जिनका अध्ययन हमारे बस की बात नहीं ।

हां हमारे दि जैन संतों के लिए जरूर खोलने की स्वीकृति है ।
क‌ई साल पहले प पू आचार्य विद्यानंद जी महाराज दिल्ली की ओर विहार करते समय झालरापाटन एक दिन के लिये रुके थे ।
पर इस बहुमूल्य ज्ञान के सागर को देखा , तो इतने अभिभूत हो गये कि सात दिन रुके और सिर्फ आहार चर्या के लिए ही बाहर आते, फिर वापस सरस्वती भवन में ही बंद हो जाते।

और इन ग्रंथों का अध्ययन करते रहते ।
वो श्रमण संस्कृति के इस ज्ञान के सागर को अपनी दूरदर्शिता और कड़ी मेहनत से सुरक्षित करने वाले एलक पन्नालाल को नमन कर के गये ।