श्री महावीर स्वामी के लाल, हम हैं भाई-भाई फिर क्या उचित है दिगंबर प्रतिमाओं का श्वेताम्बर में बदलना?

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 05 दिसंबर 2021
जैन समाज चाहे समय के साथ कई संप्रदायों में बदल गया है, पर हम एक थे, एक रहेंगे – यह कहते भी हैं। पर हमारी कथनी और करनी में अंतर क्यों?

दूसरा चिंतन का विषय है कि आज भी जगह-जगह हमारी प्राचीन अनमोल विरासत बिखरी पड़ी है, नष्ट हो रही है, बदली जा रही है। चाह कर भी हम उन्हें पूरी तरह संरक्षित करने में सफल नहीं हो पा रहे। अफसोस तब होता है, जब कोई बाहर वाला बदलता है, तो हम एक होकर पुरजोर विरोध नहीं करते। यही नहीं, हम आज भी आपस में अपने ही तीर्थों को ‘हम सबका’ कहने की बजाय ‘मेरा है – तेरा नहीं’ और इसको लेकर अदालतों में भाई-भाई आमने-सामने खड़े हैं।

सान्ध्य महालक्ष्मी के पुणे के एक पाठक पीयूष मेहता जी, उन्होंने कुछ ऐसे प्रमाण भेजे हैं, जो चौंकाने वाल ेहैं:-

1. (डॉ. पार्थ नागदा, स्थानीय गाइड का दावा)
यह है कर्नाटक के समुद्री तट पर स्थित कुमटा के एक स्थानीय गाइड का पोस्ट, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि 200-250 वर्ष पहले वहां श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर था, जिसे बाद में श्वेताम्बर समाज को दे दिया गया (या ले लिया गया)। यहां पर कुल देवता क्षेत्रपाल दादा बहुत सुंदर हैं? यहां मेरे दादा श्री हीराचंद लखमसे नागदे और मणिकांत लखमसे नागदा के दान द्वारा यहां कुल देवता, बाथरूम, गेस्ट हाउस का सौंदर्यीकरण किया गया है।


प्रश्य यह उठता है कि प्रबंधन किसी का भी हो, पर प्रतिमाओं को बदलना, उनकी मूल छवि में परिवर्तन करना क्या उचित है? ऐसे आरोप हैं कि यहां प्रतिमाओं के दिगम्बरत्व को श्वेताम्बर रूप में बदलाा गया है। ऐसा करने के पीछे क्या मंशा है?


ये शिलालेख हैं जो प्राचीन काल में बनवाये गये। इतिहास विशेषज्ञ कहते हैं कि दिगम्बर जैन मंदिरों में ऐसे शिलालेख पाये जाते हैं और अधिकांश दक्षिण भारत में – आंध्र प्रदेश, तेलांगना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों में मिलते हैं। वैसे वैदिक परम्परा में भी कुछ ऐसे शिलालेख देखें गये हैं।


पर पास के इस वल्लागई शांतिनाथ जैन मंदिर के शिलालेख को भी बदल दिया गया। इतिहास आज भी स्पष्ट है कि दक्षिण में दिगम्बर जैन सम्प्रदाय पहले था, फिर पश्चिम के राजस्थान-गुजरात से मारवाड़ी भाई आये और फिर श्वेतांबर समाज का प्रवेश हुआ। क्या यह इतिहास को बदलने की कोशिश है? हम भाई-भाई अपनी विरासतों को दूसरों से बचाने की बजाय, अपनी ही विरासतों को बदलने में लगे हैं।

सही तो यह है कि कही किसी दिगम्बर भाई को श्वेताम्बर मूर्ति मिले, उसी रूप में रखकर, उस सम्प्रदाय को सौंप दें, वहीं श्वेतांबर समाज के सामने कोई दिगम्बर सम्प्रदाय की मूर्ति आये, तो उसका वही अस्तित्व बरकरार रख, दिगम्बर समाज को सौंप दें।

(पाठक इस बारे में अपने विचार व्हाट्स अप नं. 9910690825 पर जरूर भेजें या info@dainikmahalaxmi.com पर मेल करें, क्योंकि जैनों को एक करना, न कि बांटना, सभी का मूल उद्देश्य होना चाहिए। )
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