22-23 फरवरी : दिन दो, तीर्थंकर दो, कल्याणक-3 :तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ : ज्ञान -मोक्ष कल्याणक तथा चंदाप्रभुजी का ज्ञान कल्याणक

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हिंदी तिथि कलेंडर का अंतिम माह फाल्गुन, जो नये कलेण्डर के प्रथम माह चैत्र की तरह कल्याणकों का माह कहा जाये, तो अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। ग्यारह दिन में 15 कल्याणक आये हैं इस माह में। अब मंगलवार – बुधवार 22 व 23 फरवरी फाल्गुन कृष्ण पंचमी-षष्ठी दो दिन में दो तीर्थंकरों के तीन कल्याणक आ रहे हैं।

तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ : ज्ञान -मोक्ष कल्याणक तथा
चंदाप्रभुजी का ज्ञान कल्याणक

दो दिन पूर्व छठे तीर्थंकर श्री पदमप्रभु जी के मोक्ष कल्याणक के बाद अब फाल्गुन कृष्णा षष्ठी (22 फरवरी) को है सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ जी का ज्ञान कल्याणक पर्व और अगले ही दिन सप्तमी (23 फरवरी) को है, उन्हीं तीर्थंकर का मोक्ष कल्याणक दिवस तथा उसी सप्तमी को आठवें तीर्थंकर श्री चंदाप्रभु स्वामी जी का ज्ञान कल्याणक दिवस।
काशी में जन्मे सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ जी की आयु 20 लाख वर्ष पूर्व थी तथा कद था 1200 फुट उतंग, हरित रंग की काया। आपने 14 लाख वर्ष पूर्व 20 पूर्वांग राजपाट किया तथा फिर बसंत लक्ष्मी का नाश देखकर वैराग्य की भावना बलवती हो गई।

काशी के सहेतुक वन में आपने नौ वर्ष तक कठोर तप किया और फिर 9 वर्षों के तप के बाद फाल्गुन कृष्ण षष्ठी को अपराह्न काल में सहेतुक वन के शिरीष वृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। 108 किमी विस्तृत समोशरण की रचना करता है तत्काल कुबेर और आपके 95 गणधर आपकी दिव्य ध्वनि को जन-जन तक पहुंचाते हैं। आपका केवलीकाल एक लाख पूर्व बीस पूर्वांग नौ वर्ष का रहा।

जब आयु कर्म क्षीण होते-होते एक माह का रह गया, तब आप पहुंच गये शाश्वत अनादि निधन तीर्थ श्री सम्मेद शिखरजी में जहां पदमप्रभु की मोहन कूट से आये प्रभास कूट पर खड्गासन मुद्रा में फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (इस वर्ष 23 फरवरी) को पूर्वाह्न काल में 500 महामुनिराजों के साथ सिद्धालय पहुंच गये। इस प्रभास कूट भाव सहित वंदना करने से एक करोड़ प्रोषध उपवास का फल मिलता है।

8वें तीर्थंकर को भी उसी तिथि को केवलज्ञान की प्राप्ति
7वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी के 900 करोड़ सागर बीत जाने के बाद चन्द्रपुर नगर में महारानी लक्ष्मणा देवी के गर्भ से जन्म होता है चन्दाप्रभु का। आपका कद 900 फुट ऊंचा और आयु दस लाख वर्ष पूर्व था। पूनम के चांद के समय श्वेत वर्ण वाले चन्द्रस्वामी जी ने साढ़े छ: लाख वर्ष पूर्व 24 पूर्वांग राज्य किया। फिर अघ्रवादि भावनाओं के चिंतवन से वैराग्य की भावना बलवती हो गई।

फिर जन्म कल्याणक तिथि पौष कृष्णा एकादशी को ही अपराह्न काल में चन्द्रपुर नगर में सर्वार्थ वन में विमला पालकी से पहुंचे और पंचमुष्टि केशलोंच कर नाग वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग मुद्रा में कठोर तप में लीन हो गये।
आपको तीन माह के कठोर तप के बाद फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (इस वर्ष 23 फरवरी) को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। कुबेर ने 100 किमी विस्तृत समोशरण की रचना की। आपका केवलीकाल एक लाख पूर्व 24 पूर्वांग तथा 3 मास का रहा। 93 गणधर आपकी दिव्य ध्वनि जन-जन तक पहुंचाते थे।