समाज में जो नेतागिरी करते है उनकी वजह से कभी कभी युवा धर्म से टूटते है, डाटने फटकारने से तो अपने भी दूर हो जाते है। सभी के साथ प्रेम प्रिति का व्यवहार करें: आचार्य श्री सुनील सागरजी

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17 जुलाई 2023/ श्रावण अधिमास अमावस /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/’

ऋषभ विहार, दिल्ली में चातुर्मास कर रहे आचार्य श्री सुनील सागरजी ने कहा कि

जमीन अच्छी है खाद अच्छा है, परंतु पाणी खारा है। तो फुल नहीं खिलते ।
भाव अच्छे है ‘कर्म अच्छे है, परंतु वाणी खराब हो तो संबंध नहीं बनते

कोई व्यकि, शत्रु बनकर नही आता दुनियाँ में, हमारे व्यवहार, आचार विचार ही यह तय करता है। आज के बच्चे ही जिनधर्म को आगे बढायेंगे। डोरेमॉन ने आज के नाटक में बच्चों को बातों बातों में अच्छी बात सिखाकर गया। वैसे ही गुरू समय समय पर आकर आपको अच्छी अच्छी बातें सिखाकर जाते है। हमारे यही सांता क्लोज नही आता गिफ्ट देने यहाँ तो संत आते है हमे सोचने की शक्ति, ताकत देकर जाते है। ज्ञानी का सानिध्य अवश्य लेना। छोटे छोटे बच्चों को पाठशाला में अनेक अच्छी बातें सिखायी जाती है। सभी अपने बच्चे को संस्कारवान बनाने के लिए पाठशाला में भेजें।

अशुद्ध खाने पिने से व्यवहार, आचार विचार बिगडता है। जिसे आप जानते नही उसे खाते कैसे हो? खानपान और खानदान की शुद्धि हो। समझाने से समझ में नही आता, अभ्यास करने से समझ मे आता है। अगर आप किसी से कहो की उसकी दोस्ती छोडो, वह झूठा है, धोकेबाज है। पर यह कुछ भी बोल रहा है, हमारी दोस्ती तोड़ने पर तुले है। पर जब आप स्वयं उसे देखोगे, धोकेबाज है। उस लगेगा झूठा है तो आप तुरंत यकिन करोगे और उसे छोड़ देंगे।

विषय कषाय बुरे है। मिथ्यात्व में मत फस जाना। इसे छोडना चाहिए। संत सानिध्य, साधुओं का समागम पाकर जीवन में अच्छाईयाँ करते रहें।
समाज में जो नेतागिरी करते है उनकी वजह से कभी कभी युवा धर्म से टूटते है। डाटने फटकारने से तो अपने भी दूर हो जाते है। सभी के साथ प्रेम प्रिति का व्यवहार करें। मंदिर मे प्रज्ञावान, बुजुर्गो को चाहिए की वे नई पिढ़ी को धर्म से जोडे। धर्मकार्य करने में उत्साहित करें। नियम संकल्प पालन करने में उत्साह रखे। माता-पिता अपने बेटी-बेटी से मित्रता रखे। मित्र जैसा व्यवहार करें। बच्चों को समझने की कोशिश करें। 24 घंटे में एक बार का भोजन सभी साथ बैठ कर करें। कम से कम 10 मिनट स्वाध्याय साथ में बैठकर करें। यह आपस मे प्रेम- प्रिति बढ़ाने का तरीका है।

मुनिराज माताजी कही स्वर्ग से या पेड़ से नहीं आये वे भी किसी न किसी की संतान है, उनपर अपने मा – बाप के संस्कार है, इसलिए आज पिच्छी कमंडल लेकर जिनधर्म की प्रभावना कर रहे है। 28 मूलगुण का पालन करते है। इंद्रिय निरोध करते है। 5 आवश्यक 7 विशेष गुणों का पालन करते हैं। समयसारजी के गाथा नं 7 में कहते है. व्यवहार से ज्ञानी के दर्शन ज्ञान और चारित्र है परंतु निश्चय से आत्मा के ना ज्ञान है, ना दर्शन है और ना ही चारित्र है। वह ज्ञायक शुद्ध है। जिसप्रकार वस्तु आटा, घी, और शक्कर से हलवा बना है वैसे ही आत्मा में दर्शन ज्ञान और चारित्र से स्वरूप का, शुद्ध स्वरूप का हलवा बनता है।

वीतराग जिन शासन भव से पार होने की कला सिखाता है। सभी उसी का पुरुषार्थ कोशिश करें। सबका मंगल हो।
भाषा महत्वपूर्ण होती है।
रोटी पर ‘घी’ और नाम के आगे ‘जी’
लगाने से उसका स्वाद बढ़ जाता है।
वैदिक संस्कृति में शब्द को प्रथम कहा है। आपका व्यवहार आपके शब्दों से पता चलता है आपका कुल कैसा है। भाषा से पता चलता है आपके संस्कार कैसे है। भाषा से ही पता चलता है आचार विचार व्यवहार गिरा हुआ है या संभला हुआ है? सोच मैली है या साफ सुधरी है। क्षत्रचुडामणी में भी कहा है- वक्लीं वक्त्रं मनसः
Face is the index of heart
भाषा बहुत महत्वपूर्ण है।