सम्मेद शिखर पिकनिक स्पॉट बन गया, यह बड़ा घातक बनता जा रहा है। इसके लिए हम क्या कर सकते है ? : आचार्य श्री सुनीलसागरजी

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02 अगस्त 2023/ श्रावण कृष्ण एकम /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
पूज्य आचार्य श्री सुनीलसागरजी गुरुदेव ऋषभ विहार, दिल्ली NCR में अपने मधुर वचनों सें प्रतिदिन धर्म की गंगा बहा रहे है। पूज्य गुरुदेव ने अपने उदबोधन में कहा-

णमोकार बोलो तो जीवन बदल जाये,
गुरु दर्शन करो तो भय बदल आये, तीर्थों के दर्शन करके तो देखो, तीर्थकर भूमि के दर्शन करो तो जीवन बदल आये।
जिसे है जिन धर्म से प्यार उसे हरवक्त यह करना चाहिए ये तन रहे या ना रहे जिनधर्म रहना चाहिये। इस तरह से इस स्वतंत्र भारत में जैन तीर्थो के साथ जैन धर्म के साथ संतो के साथ दुर्वावहार हो रहा है यह अत्यंत नींदनीय है। गिरणार जैसा तीर्थ हाथ से छीन ले की चेष्टा निरंतर जारी है। श्री कृष्ण के चचेरे भाई नेमिनाथ की निर्वाण भूमि है। उसकी रक्षा सुरक्षा के लिए कोई अकलंक निकलंक की तरह जिनधर्म के लिए बलिदान देनेवाला कोई तो हो। जो कहे ये तन रहे या ना रहे, जिनधर्म रहना चाहिए।

तिरूपति का मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापूर, ढेरों जैन मंदिर बदल गये। हम कुछ नही कर पाये। सबसे प्राचीन है हमारी जैन संस्कृति इसके आप वारीस हो। तमिलनाडू में 8000 मुनियों को खत्म कर दिया गया था। तब से अत्याचार होते आया है और हम सभी सहन करते आये है। धर्म सिखाता है एक दूसरे को निचा ना दिखाना, दूसरे को अंगुली ना दिखाना सबको साथ लेकर चलना, हाथ मिलाकर आगे बढ़ना।

‘तीर्थ मतलब जिससे तीर जाये, पार जाने का मार्ग है। तीर्थ परमात्मा से मिलने का साधन है। अब ये लडने के साधन बन गये। क्या कर सकते है सहन करते हुए प्रेम करने का सामर्थ्य हो, भगवान महावीर के समय एक कुंड मे एक साथ शेर और गाय पानी पिते थे, वैसा वातावरण फिर से निर्माण हो।

दिगंबर संत बड़े महान होते है। हिंदू (वैष्णव) संस्कृति में नागा साधू भी होते है। सर्व संग त्याग को यहा महत्त्व दिया सम्पूर्ण वीतरागता का सुंदर रूप होते है दिगंबर संत। महाभारत में रथ पर सवार ” अर्जुन से कृष्ण ने कहा दिगंबर संत के दर्शन हो गये, अब तुम्हारी जीत/ विजय पक्की है। उसने सब कुछ जीत लिया. समझो, जिसके सामने दिगंबर संत हो।” विचारों के साथ आचरण भी शुद्ध हो, संतों की एवं तीर्थ की रक्षा के लिए एकजूट होना होगा, धर्म की रक्षा करनी होगी। कुछ कुछ संस्था, श्रावक आपस में इतना द्वेष रखते है की होता हुआ काम भी बिगड़ जाता है। कोई आगे होता है उसे पिछे हटा दिया जाता है। किसी को हित चिंतक नही समझ सकते।

सम्मेद शिखर पिकनिक स्पॉट बन गया, यह बड़ा घातक बनता जा रहा है। इसके लिए हम क्या कर सकते है ? तीर्थों पर आये वंदना करे संस्कार को कायम रखें। पहाड़ पर ना कुछ खरीदे और ना कुछ खायें। हमारा नुकसान हमारे ही द्वारा हो रहा है। पतन का कारण हम स्वयं है। हमें तीर्थों पर जाकर वंदना करना चाहिए।

ठान , लिजिए, भिड़ जाइये। ठाण लो तो अपने हाथ कुछ तो आयेगा। “मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना।” पंथवाद संतवाद सारा छोड़ के एक हो जाओ। जो हमारे साथ है, हम उसके साथ है’ ऐसा जयघोष करें। एकता, संघटन की आवश्यक है। जीना है तो जुझना होगा, जुझ नही सकते तो जी नही सकते । शेर की तरह दहाड़ो, दहाड़ोगे तो बड़े से बड़ा हाथी भी भाग जायेगा।‘’