18 नवंबर 2023 / कार्तिक शुक्ल षष्ठी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन/
खचाखच भरे ऋषभ विहार के सन्मति धर्म मंडल में नव वीर संवत 2550 के पहले दिन मंगलवार, कार्तिक शुक्ल एकम को दोपहर जब सूरज ढलने की ओर था, तब वहां ज्ञान सूर्य ने चढ़ना शुरू किया, पिच्छियों की रेल चली और उपाध्याय श्री शशांक सागरजी ने रेल की द्रुत गति से पिच्छियों का आदान-प्रदान करवा दिया, बस रह गई तो आचार्य श्री की पिच्छी। मंच पर सुनीलम् एक्सप्रेस गाजे-बाजे के साथ, सबसे आगे पंचरंगा जैन ध्वजा लेकर जब नवीन पिच्छियां लेकर पहुंची तो हर कोई वह दृश्य देखकर गदगद हो उठा। पुरानी पिच्छियां नियम-संयम के लेखा-जोखा के पैमान पर दी गई। आचार्य श्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि
कभी दिवाली, कभी दशहरा होता है, पर जहां संतों का प्रवास होता है,
वहां हर दिन खुशियां से हरा भरा होता है।
धन की अमीरी से महत्वपूर्ण है, देव-शास्त्र-गुरु के प्रति समर्पण, भक्ति। मूलाचार को साध करके, समयसार को अराधकरके साधु-संत आज भी हैं। आज कहना पड़ेगा कि दिल्ली दिलवालों की है। देव-शास्त्र-गुरू से जुड़ने से आत्मा की परिणति बदलती है। आज तुम छोटी-मोटी समस्यायें, फुंसी का इलाज देख चमत्कार मान लेते हो, पर जन्म-जरा-मृत्यु रूपी कैंसर जैसे असाध्य रोग का इलाज करने वाले महावीर स्वामी सबसे बड़े डॉक्टर हैं। साधु के वचन विषय-विकारों के नाशक एवं आनंद की वर्षा कराने वाले होते हैं।
पिच्छी परिवर्तन ही नहीं, हृदय परिवर्तन भी होना चाहिए
आचार्य श्री ने पिच्छी परिवर्तन के महोत्सव के अवसर पर कहा कि पिच्छी परिवर्तन ही नहीं हृदय परिवर्तन भी होना चाहिये। पिच्छी घर में रहेगी तो बहुत लाभ हैं। इसके पंख से सांप आदि नहीं आते। जिस घर में मुनिराज को तप की पिच्छी गई, उस घर में आधि-व्याधि दूर हो जाती है। पिच्छी मिलना सौभाग्य की बात है, उसे कांच के पारदर्शी यंत्र में रखें, कपूर साथ रखें जिससे जीव आदि न हो और महीने दो महीने में हवा-धूप लगाएं, अच्छे स्थान पर रखें।
जिन्होंने पिच्छी दी, वे भी सौभाग्यशाली हैं, उनको साल भर अभय दान का फल मिलेगा।
जिसने पिच्छी का लेना-देना देखा है, उसको अनुमोदना का फल मिलता है।
आचार्य श्री ने कहा पिच्छी हमें अनेक शिक्षायें देती है-
1. ये रज (धूल) को ग्रहण नहीं करती, चिपकती नहीं है। यह शिक्षा देती है कि तुम भी दुनियादारी की धूल मत पकड़ो।
2. मुनिराज को पसीना आए, तो पिच्छी से ही पोंछ लेते हैं जिससे पसीने की बूंदें झड़ जाती हैं। पसीना पिच्छी से चुपकता नहीं है। ऐसे ही तुम भी आसक्ति से चुपको मत। पानी में पिच्छी भीग भी जाए तो वह हवा धूप लगते ही पुन: जस की तस हो जाती है।
3. पिच्छी बहुत मृदु होती है, आंख में भी लग जाए तो नुकसान नहीं पहुंचाती। इससे शिक्षा मिलती है कि जीवन में मृदु व्यवहार करिये।
4. पिच्छी हल्की होती है जिससे चटाई,किताबों आदि का आसानी से मार्जन हो सके। शिक्षा देती है कि अपने परिग्रह को भी हल्का रखो।
भावाना भायें कि एक दिन पिच्छी आपके हाथ में आये।
छोटे-छोटे नियम भी एक दिन बड़े हो जाते हैं।
सेवा फल का जब पुण्य पकायें तो फल मिलेगा।।
मस्ती को नहीं, भक्ति को खुशी का साधन बनायें।
खाने को आनंद मानते हो, आप त्याग को आनंद मानिये।।
हिम्मत से भगवान महावीर के मार्ग का अनुसरण करेंगे, तो आपका कल्याण हो जाएगा। आचार्य श्री ने अपने उद्बोधन के बाद अपनी पिच्छी को देने की घोषणा करते हुए नवीन पिच्छी भेंट करने का सौभाग्य प्रथम कलश लेने वाले भक्त अशोक जैन परिवार प्रिया एन्क्लेव, सुनील सागर समिति को दिया तथा पुरानी पिच्छी 7 प्रतिमा लेने वाले ऋषभ विहार के अध्यक्ष सुनील जैन को दी। नियम संयम में आगे रहने वाले सुनील जी ने संघ की सेवा भी पूरे चातुर्मास में नि:स्वार्थ भाव से की। ऐसा इस संघ में पहली बार हुआ कि जहां आचार्य श्री का चातुर्मास हुआ, वहीं की कमेटी मे किसी को पिच्छी मिली।
पिच्छी परिवर्तन की एक खास बात यह भी रही कि मंदिर के कर्मचारी मिश्रा, शुक्ला, उमेश को भी नवीन पिच्छी भेंट करने का अवसर मिला।
व्यवस्था जीरो से कैसी बनी हीरो
ऋषभ विहार समाज के अध्यक्ष श्री सुनील जैन ने आचार्य श्री एवं संघस्थ साधु-त्यागियों से चातुर्मास के दौरान सभी त्रुटियों के लिये समिति की ओर से क्षमा याचना करते हुए कहा कि जब आचार्यश्री का संघ को जागृति एन्क्लेव में चातुर्मास हेतु श्रीफल भेंट किया तब व्यवस्था जीरो थी और चातुर्मास की घोषणा होते ही श्रमण सेवा समिति का गठन किया या जिसमें समाज के ही लोगों को चौके, दूध, पंडाल, आवास आदि सभी व्यवस्थाओं के लिये नियुक्त किया गया। उन्होंने सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न करायें। इसका एक ही कारण रहा कि किसी के भी कार्य में किसी का हस्तक्षेप नहीं था और सभी लोग चाहे वे भोजन व्यवस्था में राकेशजी मनीष जी हो, आवास में प्रदीप, अजय मनीष हों, दूध वालों की टीम तड़के 4 बजे से नियुक्त श्रावक अपनी गाड़ी, अपना ही सामान इस्तेमाल करते हुए काम को अंजाम दे रहे थे, तो पंडाल व्यवस्था विजयजी, विपुलजी, मनोज आदि लोगों ने बखूबी संभाली।
यह आचार्य श्री संघ का चमत्कार, बड़े बाबा का अतिशय ही था कि सारी व्यवस्थायें स्वत: ही बनती चली गई। आवास व्यवस्था में जागृति एन्क्लेव की नई बिल्डिंग का इस्तेमाल हुआ, इसके अलावा अनेक लोगों ने अपनी कोठियां, पार्किंग आदि स्वेच्छा से प्रदान की। स्याद्वाद भवन, 79 ऋषभ विहार की पूरी कोठी से हमारी व्यवस्थाओं को बल मिला। इस चातुर्मास में कमेटी, समाज, सभी ने पूरी तरह से सहयोग दिया। सुनील सागर सेवा समिति का उपकार भी बहुत बड़ा है। सुनील जी ने कहा हमारी ओर से कोई भी त्रुटि रही हो, पूरी कमेटी व ऋषभ विहार समाज की ओर से क्षमायाचना करता हूं। समाज आचार्य श्री से शीतकालीन वाचना के लिये निवेदन करता है। अंत में सुनील जी ने कहा बिना आचार्य श्री से बोले ही हमारे सारे कार्य व्यवस्थित हो गये।
चातुर्मास या चमत्कार का पिटारा
चेयरमैन विजय जैन ने कहा कि चातुर्मास के दौरान अनेक चमत्कारी घटनायें देखने को मिली। चातुर्मास के प्रथम दिवस 02 जुलाई को पूज्य आचार्य श्री की स्थापना होने जा रही थी, तब श्री ओम प्रकाश बिरला जी का आना तय हुआ। इसी बीच उन्हें चोट लग गई और पहली तारीख को संदेशा आया कि वे नहीं आ पाएंगे। उनका एक व्यक्ति सूचना देने आया तो उस समय आचार्य श्री शुद्धि से आ रहे थे। उन्होंने सुना तो कमंडल से जल की कुछ छींटे उस व्यक्ति और भक्त पर डाली और कहा – जाओ, वे जरूर आएंगे। उसके बाद ही ओम बिरला जी के आदमी स्टेडियम का मुआयना करने आए और उन्होंने ओम बिरला जी को रिपोर्ट दी कि उन्हें चढ़ना नहीं पड़ेगा, वे यहां आ सकते हैं। बस क्या था ओम बिरला जी का स्थापना समारोह में आगमन हुआ।
भगवान महावीर कथा का सुंदर मंचन
पिच्छी परिवर्तन समारोह का शुभारंभ ऋषभ विहार पाठशाला के बच्चों ने सुंदर नाटक- भगवान महावीर की कथा प्रस्तुत की। यहां आपको बता दें कि पूरे चातुर्मास में जितने भी सांस्कृतिक शिक्षाप्रद कार्यक्रम मंच पर आयोजित किये गये, वे सभी महिला मंडल ने पाठशाला के ही बच्चों से संघ की माताओं के दिशा-निर्देशन पर आयोजित किये। बाहर से कोई कलाकार आदि नहीं बुलाया गया। यह समाज की बहुत बड़ी धरोहर है जो भविष्य में जिन शासन की ध्वजा थामने के लिये तैयार हो रही है।