चमत्कार! जहाँ भक्ति के मेघ बनते है वहाँ कमंडल से भी वर्षा : कमंडल आहार चर्या के बाद से लेकर सन्ध्याकालिन प्रवचन तक स्वतः रिसने लगा

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आचार्य देव श्री आदिसागर अंकलिकर स्वामी की तपस्वी परम्परा के चतुर्थ पट्टसुरी संयम भूषण आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज ससंघ पिछले एक सप्ताह से अतिशय क्षेत्र सिपुर में आगमन हुआ

यह क्षेत्र जहाँ जैन समाज का एक भी घर नही है किंतु तपस्वी सन्तो के निरन्तर वर्षायोग होते है,साधु भगवन्तों की अथाह सेवा इस क्षेत्र पर सदैव होती रही है

गुरु सम अग्रज आचार्य श्री सुनीलसागर जी भगवन्त ससंघ के आगमन की सूचना मात्र से हर्षित होकर इस प्राचीन तीर्थ के उद्धारक आचार्य श्री समता सागर जी गुरुदेव अस्वस्थ होते हुए भी स्नेह व भक्ति से वशीभूत होकर मात्र तीन दिनों में उपरगाव से लम्बा विहार करके पूर्व से ही सिपुर पधारे। और अत्यंत आत्मीयता,आनन्द,विनय के साथ स्वयं आगे होकर आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरुदेव की मंगल आगवानी की

छः दिनों के इस प्रवास में आचार्य श्री समता सागर जी की अपने गुरु सम अग्रज आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरुदेव के प्रति भक्ति,विनय,श्रद्धा एवम आचार्य श्री सुनील सागर जी गुरुदेव की अपने लघु भ्राता के प्रति वात्सल्य स्नेह को देखकर जन जन तो क्या,देव गण भी हर्षित हो उठे

इस क्षेत्र की समिति ने आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज के 2021वर्षायोग हेतु पिछले तीन माह से प्रशंसनीय व अनुमोदनीय पुरुषार्थ किया,भक्ति की साक्षात भागीरथ मिसाल रख दी

आस्था व भक्ति के इन्ही पवित्र मेघो से कल 11 जुलाई को आचार्य भगवन्त श्री सुनीलसागर जी गुरूराज का पवित्र कमंडल आहार चर्या के बाद से लेकर सन्ध्याकालिन प्रवचन तक ओवरफ्लो होकर स्वतः रिसने लगा

प्रायः ऐसा कई वर्षों में देखने को आया है कि आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज के प्रति जिन क्षेत्र में समाज संगठित होकर निस्वार्थ भक्ति प्रेषित करती है वहाँ उनका कमंडल देवयोग से स्वतः ओवरफ्लो होकर रिसने लगता है

निश्चित ही आचार्य श्री समतासागर जी व सिपुर तीर्थ क्षेत्र की समिति ने बड़े गुरु के प्रति भक्ति व आस्था का जो समंदर बहाया उससे महातपस्वी आचार्य श्री सुनीलसागर गुरूराज के कमंडल के जल का स्वतः वर्षा करना स्वाभाविक है।

-शाह मधोक जैन चितरी