ऐसा आज तक नहीं हुआ : पिछले 3 माह में 11 बार निवेदन, फिर क्यों कहा दिल्ली ने ‘हमें मत दो चातुर्मास’

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11 जून 2024// जयेष्ठ शुक्ल पंचमी//चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
देश में जगह-जगह 1808 दिगम्बर संतों के अपने-अपने क्षेत्रों में चातुर्मास हेतु श्रीफल समर्पित कर निवेदन करने का सिलसिला लगातार जारी है। इसी तरह दिल्ली वालों ने जो पिछले 3 माह में 11 बार आचार्य श्री सुनील सागरजी मुनिराज ससंघ को निवेदन करते आ रहे हैं, और अनेक बसों, रेल, निजी वाहनों से किशनगढ़ पहुंचे, फिर श्रीफल लेकर, पर सबको हैरत में डाल दिया कि यह चातुर्मास दिल्ली वालों का नहीं दें, बल्कि यह चातुर्मास किशनगढ़, अजमेर, जयपुर को दे दिया जाये। ऐसा आज तक नहीं हुआ कि हर 50-60 किमी पर चातुर्मास के लिये निवेदन कर रहा हो, उसने क्यों मना किया?

मना करने का अंदाज निराला था, अद्भुत था और संभवत: आज तक के इतिहास में पहली बार। आचार्य श्री किशनगढ़ आये और फिर तब वहां की कमेटी ने भामाशाह श्री अशोक जैन पाटनी की उपस्थिति में चातुर्मास के लिये जोर-शोर से निवेदन किया। क्या ऐसे ही मिलते हैं चातुर्मास? इसलिये अतिशय तीर्थ श्री लाल मंदिरजी, दिल्ली की ओर से निवेदन के लिये शुरूआत करते चैनल महालक्ष्मी ने खचाखच भरी सभा में आचार्य श्री से कह दिया। यह चातुर्मास किशनगढ़ को दीजिए, और दिल्ली को नहीं। कहने का अंदाज व्यंगात्मक था, ‘अरे दिल्ली वालों, अगर चातुर्मास चाहिए था तो मथुरा, कामां, श्री महावीरजी, सांगानेर, सागवाड़, अजमेर, कंकेरी आदि जगहों पर श्रीफल तो चढ़ाते, ये क्या, जब गुरुवर आ गये, तो बोल रहे हैं चातुर्मास दे दीजिए।

कहा गया कि दूसरी बार फिर दिल्ली में चातुर्मास क्यों करें? जवाब दिया, जब मोदी जी तीसरी बार दिल्ली की गद्दी पर बैठे, तब कोई नहीं बोला, तीसरी बार क्यों?

॰ अगला सवाल था कि इतनी भीषण गर्मी में 370 किमी का विहार क्यों करें, तो जवाब दिया जब कश्मीर से 370 धारा हटी, तो पूरा देश एकता की खुशी में झूम उठा, अब 370 किमी चल कर पूरे देश को दिखाना है कि चतुर्थ कालीन चर्या वाले संत आज भी वैसे ही विहार करते हैं।

॰ यह भी कहा जब ठीक दो दिन पहले 26 नवंबर 2023 को होने वाला, प्रधानमंत्री जी की उपस्थिति में 2550वां निर्वाण महोत्सव कार्यक्रम एन वक्त पर निरस्त कर दिया, तब रोहिणी की ओर बढ़ते आचार्य श्री ने एक लाइन में जैन समाज की थू-थू होने से बचाते हुए, यह कहकर विराम लगा दिया कि अगर प्रधानमंत्री नहीं आयेंगे तो क्या जैन समाज का कार्यक्रम नहीं होगा। बस दो दिन में आनन-फानन वहीं से आगाज किया, जहां से प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर भाषण देते हैं। अब उसका समापन है, उसके लिये इस बार किशनगढ़ वालों को जोर-शोर से आचार्य श्री का कार्यक्रम उसी लालकिले मैदान से करवाना चाहिए।

॰ आज जब पूरा देश 23वें तीर्थंकर व श्री पार्श्वनाथ स्वामी के 2900वें जन्म कल्याणक वर्ष और 2800वें निर्वाण कल्याणक वर्षको भूला बैठा है, तब किशनगढ़ वालों को दिल्ली के 458 वर्ष प्राचीन उस ऐतिहासिक लाल मंदिर में महोत्सव करना चाहिये। यही वह देश का एक मात्र मंदिर है, जिसकी मुगल बादशाह अकबर ने बनाने को अनुमति दी, वर्ना मुगलकाल में अनेकों, हजारों मंदिरों-प्रतिमाओं को तोड़ा गया।
॰ आचार्य श्री द्वारा दिल्ली से तीर्थों की सुरक्षा के लिये शंखनाद किया गया, वह कार्य अभी अधूरा है, उसको पूरा करने के लिये दिल्ली आना ही चाहिये।

॰ 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जी द्वारा 100 करोड़ मूल्य की 3 एकड़ जमीन दी थी, जो अब हजार करोड़ से ज्यादा की होगी, आपसी मनमुटाव वे चलते अदालत में केस चल रहे हैं। पहले भी आचार्य श्री के सान्निध्य में चारों सम्प्रदाय आपस मेंबैठे थे, अब फिर उस बात को बढ़ाना होगा, वर्ना यह अमूल्य जमीन कहीं जैन समाज के हाथों से निकल ना जाये।

॰ इसी तरह के कई कारण गिनाये, चाहे वो चातुर्मास किशनगढ़ वाले दिल्ली में करवा लें, पर यह चातुर्मास किसी एक स्थान का न होकर, पूरे देश में चल-अचल तीर्थों की सुरक्षा के लिये हो, प्रभावना के लिये हो, और वो केवल दिल्ली से ही संभव है।

(इसकी पूर्ण जानकारी यूट्यूब चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 2666 में देख सकते हैं)