जैन शौर्य दिखायें, पूरे देश का DNA एक, सबसे पहले राष्ट्र , अंग्रेजी की गुलामी आज तक नहीं गई : आचार्य श्री सुनील सागर

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26 मई 2024/ जयेष्ठ कृष्ण तृतीया /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
रविवार 19 मई को किशनगढ़ में ‘पण्ह पुच्छा’ कार्यक्रम समाज व तीर्थ संरक्षण व संवर्धन पर समर्पित करते हुए सान्ध्य महालक्ष्मी द्वारा अनेक ज्वलंत मुद्दों को उठाया, जिनका उचित समाधान आचार्य श्री सुनील सागरजी ने दिये। इसी तरह कुछ और ऐसे ही ज्वलंत मुद्दे उनके समाधान इस प्रकार दिये:-

गिनती में थोड़े, और अहिंसा का चोगा, ऐसे में जैन समाज न तीर्थ बचाता है न साधु-संत, हर तरफ हमले, तो क्या है इसका इलाज?
आचार्य श्री ने कहा – कोशिश करने से सब कुछ होता है 500 साल के संघर्ष के बाद प्रभु अपने आसन पर विराजे, कि नहीं विराजे, श्री राम मंदिर में, अनावश्यक हम शौर्य नहीं दिखाते लेकिन जहां जरूरत होती है, वहां बोलना भी पड़ता है। हम सब में आत्म दृष्टि रखते हैं लेकिन ये जो गृहस्थ हैं, गृहस्थों का अपना एक धर्म होता है। अगर उनके धर्म पर, उनके परिवार पर, उनके आयतनों पर, जब कोई आक्रमण करता है, तो जवाब देना होता है। मुनि नहीं है, कि मुनि ध्यान में बैठ जाएंगे, उन पर कोई तलवार चलाएं, उन्हें कोई पत्थर मारे, तो कोई कुछ नहीं करेंगे।
मुनि, मुनि है। श्रमण, श्रमण है। श्रावक, श्रावक है। गृहस्थ, गृहस्थ है और गृहस्थों को अपनी गृहस्थी के ढंग से अपना देश और समाज चलना चाहिए। न धन में, न आसन में, न अमीरी में होती है, मन की अमीरी के आगे तो कुबेर की संपत्ति भी रोती है। हमारे मन की अमीरी, हमारे आपसी प्रेम की अमीरी बनी रहना चाहिए। यह समझ लीजिए 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकर इक्षाकु वंशी हैं। नेमिनाथ यदुवंशी हैं, सारे क्षत्रिय हैं। इक्षाकु वंश इसलिए कहा जाता है कि आदिनाथ से ले करके 20 तीर्थंकर इक्षाकु वंश से ही श्री राम का भी जन्म हुआ और जब हम इस तरह से विचार करते हैं, तो पूरे देश की DNA एक ही होता है, इक्षाकु वंश वाला। अब किसने क्या काम पकड़ा है और कौन किधर गए हैं वह बात अलग है, बाकि पूरा देश पूरा समाज एक है। इस विराट सागर के हम बिंदु हैं। हम अपने सागर को समर्पित होकर समाज और धर्म के लिए जियें।

ढाई दिन के झोपड़ा में आपसे दुर्व्यवहार किया गया, जैन चुप रह गये, अन्य ढाल बन गये। वहां क्या लगा, प्राचीन भारतीय जैन संस्कृति को बदला गया है?
हां, हम ढाई दिन के झोपड़े में गए, वहां के मुस्लिम युवा मना करने लगे यहां कैसे जा सकते हैं यहां तो मस्जिद है। साथ के आरएसएस के लोग कहने लगे, क्यों नहीं जा सकते हैं? यह पुरातत्व की जगह है और काफी समझाने पर उन्होंने स्वीकार किया कि आप जा सकते हैं। आ सकते हैं, मगर पर्दा लगाना होगा। फिर उन्होंने कहा कि आपको मालूम होना चाहिए कि दिगंबर मुनि हमेशा बालक की तरह इसी रूप में रहते हैं, यह देश की प्राचीन संस्कृति के गौरव हैं और यह इसी रूप में रहेंगे। गोल टोपी वाले ने कहा कि इस रूप में तो पर्दा लगाना होगा तो उन्होंने सुझाया कि आपको जो चीज नहीं देखना है पर्दा आप वहां लगा लो। महाराज जी के लिए कोई पर्दा आड़े नहीं होगा। यह एक तरह का शौर्य है, मौके पर अपनी बात तो कहिये तो सही। हम लोगों ने सब देखा। जो है, सबको पता है कि पूरा वास्तु हमारे देश का कभी गौरव रहा है और किस तरह से बदल गया है, क्या हुआ है इसका भी इतिहास है। वहां कक्ष थे, हमने वहां झांकने की कोशिश की तो, वहां कुछ पुरानी चीज रखी हुई है। कुछ वस्तु जिसे हम पहचान सकते हैं संस्कृति गौरव वापस होनी चाहिए।

जैन अलग धर्म है, फिर जैनों को हिंदू कहना कहां से ठीक है और सबसे पहले क्या, राष्ट्र, नेता या समाज?
हिंदुस्तान में रहने वाले, जो जो इस धरती में उत्पन्न हुए वह सब हिंदू है। गिरनार जी के मुद्दे को, लेकर वहां नेमिनाथ की मोक्ष स्थल है, सुंदर सी प्रतिमा पहाड़ पर खुदी हुई है, चरण बने हुए हैं। वहां आपस में थोड़ी खींचतान चलती है। वहां के महंत ने हमारे से पूछा, पहले तो यह बताइए कि जैन हंै या हिंदू हैं, हमने उनको वापस संदेश भेजा कि सैद्धांतिक रूप से, कुछ सिद्धांतों को लेकर के बात करें, तो जैन जैन हैं, लेकिन जब हम सांस्कृतिक रूप से बात करते हैं, तो जैन भी हिंदू ही हैं। कोई आसमान से नहीं टपके हैं, श्रमण संस्कृति, वैदिक संस्कृति वर्षों-वर्षों से अनादि काल से साथ-साथ हैं।
सनातन किसे कहते हैं? इसके आदि का कोई पता नहीं, क्या हमें पता नहीं है कि हमारे सारे देश की यह संस्कृति महापुरुषों की परिकल्पना कितनी पुरानी है। सबसे पहले – फर्स्ट नेशन – देश है, तो समाज है। धर्म है तो हम हैं। अगर देश नहीं है, तो बीती सदियों में क्या-क्या हुआ है सब ने देखा है, देखा नहीं है, तो इतिहास में पढ़ा है। जहां कभी हमारे मंदिरों का गौरव रहा है, आज वहां जाने पर लोग आपत्तियां करते हैं। सक्षम बनिए, हमारे लिए कोई पराया नहीं है, लेकिन जिन लोगों के मन पहले से मैले हैं या तो उनके मन साफ करना पड़ेंगे। आज हम देखते हैं कि भारत की काफी सीमाएं खंडित हैं। चंद्रगुप्त मौर्य के जमाने का भारत देखिए चंद्रगुप्त मौर्य अशोक के परदादा थे। श्री राम, श्री कृष्ण के जमाने में भारत की परिकल्पना बहुत बड़ी है। गांधारी भी गंधार से आती थी, जो आजकल अब अफगान कहलाता है। यह सब कुछ एकजुटता से संभव है। आपके पास वोट दान का बहुत बड़ा अधिकार है, मतदान करिए ‘महादान’ चुनाव के माहौल बनते हैं, तो वोट का सही-सही उपयोग जरूर करना चाहिए और सही-सही आदमियों को सही जगह पहुंचाना चाहिए, ताकि देश की पंचायत में, देश की बातें ठीक से रखी जा सकें।

अंग्रेजों से आजाद हो गये, पर अंग्रेजी की गुलामी आज तक नहीं गई?
अंग्रेजी के गुलाम बहुत लोग हैं। इससे पहले राजस्थान में गहलोत जी की सरकार थी, जयपुर में उनका आना हुआ। हमने उनसे कहा इतने सारे अंग्रेजी स्कूल क्यों खोल दिए, अंग्रेज तो बड़ी मेहनत करके भाषा के गुलाम बनाते थे, 5 या 25 बनाते थे, आपने तो स्कूल खोल करके पूरे समाज को अंग्रेजी का गुलाम बनाने की पाठशाला खोल दी हैं। मुझे अपनी दलीलें दीं, लेकिन हमने कहा- नहीं, हमारी अपनी मातृभाषा है भारतीय भाषा है, हिंदी भाषा है और ध्यान रखिए चाहे वह जर्मनी हो, चाहे वह जापान हो, इन देशों ने बहुत तरक्की की है। इन लोगों ने अपनी भाषा में कार्य करके ही तरक्की की है। हम अंग्रेजी या दूसरी भाषा के कट्टर विरोधी नहीं है, हजार भाषायें सीखिये, लेकिन आपकी मातृभाषा सबसे पहले होनी चाहिए, दूसरे नंबर पर आपके प्रांत की भाषा होनी चाहिए।

अंग्रेजी जायेगी कब, पर हम ‘भारत’ को भूल ‘इण्डिया’ में क्यों भटक रहे हैं अब तक?
विज्ञान भवन में हमने जी-20 में जो इंडिया को भारत बोलकर संबोधित किया, उसको लेकर हमने एक बात कही। गुलामी की शब्दावली का एक शब्द और बीत गया, इंडिया हार गया, भारत जीत गया। हमारा आशय उसमें सिर्फ इतना है कि हम अपने देश को ‘भारत’ कहना ही पसंद करते हैं। हमारे 18 पुराणों में से 12 पुराणों में एक उद्घोष है – इस धरती पर एक ऋषभदेव नाम के महापुरुष पैदा हुए, जैन में जिन्हें पहले तीर्थंकर आदिनाथ माना जाता है। श्रीमद्भागवत के आठवें अध्याय में जिनकी बड़ी लंबी चर्चा है, उनके पुत्र थे भरत और वह प्रतापी चक्रवर्ती भरत के नाम पर हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। लोग भारत का नाम भूलेंगे नहीं, क्योंकि श्रीराम के भाई भरत, श्री राम ने उन्हें राज्य करने की आजादी दे दी और खुद वन चले गए तभी भी भरत राज सिंहासन पर नहीं बैठे। दुनिया में भाई बहुत मिलेंगे, लेकिन भरत जैसा भाई नहीं मिलेगा। राज पाकर भी राज सिंहासन पर नहीं बैठे, उन्होंने भारत गौरव को बढ़ाया और फिर महाभारत काल में हुए दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र, जो अपने शौर्य और पराक्रम से शेर के दांत गिरने की सामर्थ्य रखते थे और भरत नाम के महापुरुषों ने हमारे देश का नाम भारत रोशन किया और हमें इस भारत की शोभा रथ बनाए रखना, यह हम सब की जिम्मेदारी है। ‘इंडिया’ शब्द का उल्लेख नहीं करना चाहिए।

इस श्रृंखला को अगले अंक में जारी रखेंगे, यह आप चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 2608 ‘देश का DNA एक, जैन हिंदू भी, सनातन भी’ में देख सकते हैं।