गन्ने में जहाँ गाँठ होती है वही रस नही होता,जीवन में विकार वासना कामनाओं की गांठ नही होगी तो जीवन में रस आता है : आचार्य श्री सुनीलसागरजी

0
437

05 अगस्त 2023/ श्रावण कृष्ण चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/पूर्णिमा दीदी
आचार्य श्री सुनीलसागरजी गुरुदेव ऋषभ विहार, दिल्ली NCR में अपने मधुर वचनों सें प्रतिदिन धर्म की गंगा बहा रहे है। पूज्य गुरुदेव ने अपने उदबोधन में कहा-
इच्छाओं की बोझ में तु क्या कर रहा है, क्षणों की बोझ में तू क्या कर रहा है। इतना तो जिना ही नही है, जितना तु मर रहा है।

पल पल मर रहे है आशा तृष्णा, इच्छा कांक्षा जीवन जीने का रस ‘नही लेने देती। मरण और भाव मरण सदियों से करते आये है गन्ने में जहाँ गाँठ होती है वही रस नही होता। जीवन में विकार वासना कामनाओं की गांठ नही होगी तो जीवन में रस आता है। सौभाग्य शाली हो आप जो, लाखो करोडों, अरबों में से आपका Selection हुआ है, मनुष्य पर्याय प्राप्त हुई है। दुनियाँ में इन्सान 7- 8 अरब है उनमें भी भारत देश जैसा देश मिला जहाँ धर्म है उसमें भी जैन धर्म मिला। जैन धर्म मिलने के बाद भी प्रवचन सुनने आये हो। वह बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है।

Doctor की गोली में वह power नही होती जो जिनवाणी की वाणी में होती है। मुनिराज की वाणी मे पॉवर होता है । मुनि रूप को समझकर भी सम्मान नही दे पा रहे है। श्रेष्ठतम् तपस्या का मार्ग है, मुनि युग के अनुरूप बस्तियों में आकर जिनालयों मे प्रवास करता । समाज का सौभाग्य है। राग द्वेष के गोले जब तक भीतर उबल रहे है तब तक कहाँ है शांति ? सहज रहो, शांत रहे, कुछ ना कहो।

उससे जीव और देह किसी काल में भी एक नहीं है, भिन्न भिन्न ही है। सभी आत्मा परमात्मा है। ज्ञान, दर्शन, चेतना वाला जीव कहलाता है। दुनियाँ के एक एक प्राणी में प्राण है। किडे-मकोड़े में भी यही प्राण है जैसा आप मे है। जैसा सिद्धों में है। बारिश में रास्ते पर काई जम जाती है वह भी अनंत काय है। घरों में गिजर लगवाते है असंख्यात अनंत जीव मर जाते है, इन्सान आनंद से नहाता है।

व्यवहार नय कहता है देह और जीव एक है निश्चय नय कहता है, देह और जीव कभी भी एक नही हो सकता। आयु पूर्ण होने पर देह यही पड़ा रहता है और आत्मा कही और निकल जाती है। मनुष्य पर्याय से कोई भी गति में जा सकते है। उच्च से उच्च भी और नीच से नीच भी पर्याय प्राप्त कर सकते है। परिणामों का खेल है। ज्ञान, ज्ञायक की धुन लगाये अंतर्मुख हो जाये। आत्म स्वभाव परभाव भिन्नं। आत्मा का स्वभाव परभाव से भिन्न है। सही समझ होने से जीवन में शांति बढ़ेगी सबका जीवन सहज शांत और समयसार मय हो यही मंगल भावना।सबका मंगल हो