29 जुलाई 2023/ श्रावण अधिमास शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
पूज्य आचार्य श्री सुनीलसागरजी गुरुदेव ऋषभ विहार, दिल्ली NCR में अपने मधुर वचनों सें प्रतिदिन धर्म की गंगा बहा रहे है। पूज्य गुरुदेव ने अपने उदबोधन में कहा-
यू तो जीवन में पल पल हार होती है
कृपा हो महावीर की तो, सागर से भी नौका पार होती है।
कृपा के साथ साथ पुरुषार्थ भी जरूरी है।पशुओं का क्रंदन करुण पुकार सुनकर दया से हृदय भीग जाता है वही दयावान मानुष दूसरों को समझने वाला होता है। दुष्ट व्यक्ति दूसरों को कष्ट मे देखकर ठहाका लगाता है। परंतु जब वही कष्ट उसके परिवार पर आते है तो गिडगिडाते है। भगवान महावीर सिखाते है. वसुदेव कुटुंबकम वसुधा पर विराजित सभी प्राणी कुटुंब की तरह है। किसी को कष्ट मत दो। हर जीव के प्रति दया करुणा होनी चाहिए विरासतो को संभालने का महोत्सव चल रहा है। तिर्थंकरो की निर्वाण भूमि और जन्मभूमि पर क्यो नही ध्यान दिया जाता?
वृषभदेव के पुत्र भरत से भारत नाम पड़ा है इस देश का। कहते है 68 तीर्थो का दर्शन में जितना पुण्य है उतना तो आदिनाथ / नेमिनाथ भगवान के दर्शन का पूण्य है। गिरनार जी पहाड के विभाग कर अलग अलग नाम रखे गये परंतु भगवान नेमिनाथ की निर्वाण स्थली होने के बावजूद भी कही भी नेमिनाथ के नाम का उल्लेख नहीं । जब की वह कई वर्षो पुराना, प्राचीन तीर्थ है। पुरातत्व विभाग को चाहिए की 1947 मे जैसी प्राचीन स्थितियाँ मौजूद थी वैसी ही रहनी चाहिए। भारतीय संस्कृति का यह हिस्सा है। वह इसी रूप से रहना चाहिए। कोई आगे होकर कुछ करने की सोचता है तो टांग खिचाई वाले लोग भी दुनियाँ मे कम नहीं है।
सज्जनो, सरकार को बात समझानी होगी, पुरातत्व के नजरंदाज से एक वर्ग का नुकसान हो गया है, देश के संस्कृति का भी नुकसान होगा। आज भी कई जैन मंदिरों पर अन्य धर्मीयों ने कब्जा कर लिया है। जैन धर्म के वैभव का सदा से विस्तृत महत्त्व रहा है काल परिवर्तन के कारण, धर्मांतरण के कारण घट रहा है। 6 माह तक जैन शास्त्रों की होली जली। घोर अंधकार छाया है, उसका जहर खतरनाक होता है। सांप्रदायिकता का जहर भरा है। जिससे इन्सानियत का निर्णय नही हो पाता । असली चीजें घुलमिल हो रही है। गिरनारजी जैनों का ही तीर्थ है। जो जैनियों का होने के बावजूद भी यहाँ जैनी नही जा सकते और नाही दर्शन कर सकते। व्यवहार तीर्थ अंतरंग निर्मलता का साधन बनते है।
समयसार जी के गाथा – 17-18 में कहते है. जैसे कोई भी धन की इच्छा वाला जीव पहले राजा को राजा जानकर उसपर भरोसा करता है, फिर प्रयत्नपूर्वक तदनुकूल आचरण करके उससे धन प्राप्त करता है उसीप्रकार मोक्षार्थी जीव को भी जीव रूपी राजा को जानकर उसपर भरोसा करते हुये प्रयत्नपूर्वक तदानुकूल आचरण चाहिए।
अंतरंग तीर्थ के साथ व्यवहार तीर्थ की भी रक्षा सुरक्षा हो इसपर ध्यान देने की आवश्यकता है। व्यवहार तीर्थ हमारे परिणाम को निर्मल बनाते है। इसलिए उसकी सुरक्षा हमारी सुरक्षा। सबका मंगल हो।
उपाध्याय श्री शशांक सागरजी महाराज एवंम् मुनि श्री संप्रभसागरजी महाराज का केशलोच संपन्न हुआ।