12 जुलाई 2023/ श्रावण अधिमास कृष्ण दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ प्रवीण जैन/ दिल्ली/EXCLUSIVE
कर्नाटक के चिकौड़ी जिले के हिरेकोड़ी गांव में नंदी आश्रम में विराजमान आचार्य श्री कामकुमार नंदी जी की 05 जुलाई रात्रि में नृशंस हत्या पर ऋषभ विहार, दिल्ली में चातुर्मास कर रहे आचार्य श्री सुनील सागरजी ससंघ (51 पिच्छी) के सान्निध्य में जैन मुनि संरक्षण सभा का आयोजन किया गया जिसमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक कमीशन के सदस्य चिकोड़ी से आये धनंजय जिन्नप्पा गुंडेजी, दिल्ली के पूर्व महापौर निर्मल कुमार जैन, विश्व जैन संगठन के अध्यक्ष संजय जैन, विराग जैन समेत सभा संचालन कर रहे सान्ध्य महालक्ष्मी के प्रधान सम्पादक शरद जैन सभी ने अपने वक्तव्य में दिगंबर मुनि की नृशंस हत्या को वर्तमान जैन इतिहास में कलंक बताया। सभी का मत था समाज को एकजुट होकर सरकार से हत्यारों को फांसी की सजा, उनकी सम्पत्तियों पर बुलडोजर चलाने की मांग और जैन समाज की चल-अचल सम्पत्तियों और उनके सिद्धांतों की रक्षा के लिये जैन आयोग के गठन की मांग की।
आचार्य श्री सुनील सागरजी ने समाज के नेताओं, वोट के लिये अपनी रोटियां सेंकने वालों पर शब्दों का जोरदार प्रहार करते हुए कहा कि आज एक व्यक्तित्व पर नहीं, दिगंबर संत के पिच्छी-कमंडल पर आक्रमण हुआ है। नेता लोग मंच पर नारियल चढ़ाते हैं, तिलक लगवाते हैं और बिना प्रवचन सुने ही सभाओं से गायब हो जाते हैं। दिगंबर साधुओं का 7वीं सदी से कत्लेआम हुआ था, तब सम्राटों द्वारा कुचक्र रचे जाते थे धर्मांतरण के लिये। लेकिन आज आजाद देश में दिगंबर साधु की नृशंस हत्या हो जाना, इतना बड़ा अपराध हो जाना और समाज फिर भी चुप बैठा रहे, तो हम नपुंसक ही कहे जाएंगे, अरे कुछ तो ऐसा करो कि लोग कहें दिल्ली में भी जिंदा लोग रहते हैं।
आज जैन समाज को खत्म करने का खेल चल रहा है, इतना बड़ा अपराध होने के बावजूद कोई भी नेता न तो ट्वीट कर घटना की भर्त्सना करता है, न ही इस पर आवाज बुलंद करता है। जैन समाज के साथ इतना कुछ हो जाता है और सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगती। समाज में आज पंथवाद का जहर इतना फैला है कि साधु के आहार में भी दिक्कत आ जाती है। साधु नाम धारी लोग, ठेकेदार लोग, नेता लोग असुरों जैसा काम कर रहे हैं। पद-प्रतिष्ठा की चिंता है लेकिन अपनी चल-अचल तीर्थों की परवाह नहीं। अरे, कभी तो अपने समाज-साधु के पक्ष में खड़े होकर देखो। आज गहरे लोग चाहिये, जो जिनधर्म के लिये मरने के लिये तैयार हो जाएं। एकजुटता लाइये, नारदपना छोड़िये। आज साधु में ऐसी अकड़ हो गई है कि हल्दी की गांठ लेकर पंसारी की दुकान खोलना चाहता है। श्रावकों के कारण साधुओं में जो माहौल बन रहा है, वह गलत है।
आचार्य श्री सुनील सागर जी ने आज आक्रोशित रूप में, साधु समाज की संवेदना को, समाज के सामने जिस रुप में रखा। वर्तमान में शायद, किसी ने नहीं रखा। उस पर पूरा एपिसोड , आज, बुधवार 12 जुलाई, को रात्रि 8:00 बजे, चैनल महालक्ष्मी विशेष रुप से प्रसारित करेगा, जो आप सबको एक बार तो हिला कर रख देगा, सुनिएगा जरुर, आज, 12 जुलाई को रात्रि 8:00 बजे।
हम अपने सिद्धांतों को स्वीकारते तो हैं, पर उन्हें प्रेक्टिकल रूप में चलाना नहीं चाहते। जैन धर्म वीतरागता का धर्म है, जिनगुण सम्पत्ति वाला धर्म है। भक्त लोग राजनीति कर साधुओं को लड़ाते हैं, अरे! समझदारी से कार्य करो, तो समाज बहुत आगे जाएगा। कान भरने बंद करो, समझदारी से काम करो।
हाल ही में केंद्र सरकार ने चंद्रपुरी तीर्थ को विकास प्रोजेक्ट से अंतिम क्षणों में हटा दिया। उस पर क्या गौर किया जैन समाज ने? ऐसा क्यों हुआ। अरे, लोकतंत्र में, सत्ता की कुर्सी पर बैठाने के लिये आज खोपड़ियां गिनी जाती है, यह नहीं देखा जाता उस खोपड़ी में क्या भरा है। समय आ गया है, जब जैनियों को अपनी खोपड़ियों की संख्या बढ़ानी होंगी और उन खोपड़ियों में अच्छी चीजें भरनी होंगी। सत्ता में भी भागीदारी तब होगी, जब आप जैनी की, अपने की कद्र करना सीख जाएंगे।
आचार्य श्री ने कहा समाज वालों जागो, नेतागिरी को आग लगाओ। जब इस तरह की नृशंस घटनायें हो जाती हैं, तो कमियों को गिनाने की बजाये, ये सोचो कि इतना बड़ा जुर्म जैन साधु के साथ कैसे हो गया? ध्यान रखना, वर्द्धमान शासन अभी साढ़े 18 हजार साल चलना है, कुछ ध्यान दीजिए। नपुंसक बने रहने से काम नहीं चलेगा। गंदी राजनीति मंदिर-गुरुओं के साथ करोगे तो यह आपका सबकुछ लील जाएगी। ऐसी भावना भायें- मैं रहूं, न रहूं, जिनधर्म चलता रहना चाहिए। कल्याण पंथों से नहीं, पथ से होगा।
हम व्यक्तित्व नहीं, पिच्छी-कमण्डल के स्वरूप की बात कर रहे हैं। जिम्मेदारी सरकार की भी है, समाज की भी। समाज एकजुट और मजबूत रहेगा तो समाज की कीमत होगी। अंत में आचार्य श्री की निम्न पंक्तियां, समाज को आइना दिखा गई:-
लोमड़ी के साथ रहते नहीं, पर लोमड़ीपना दिखाते हैं
सिंह के साथ रहते नहीं, पर सिंह जैसी क्रूरता दिखाते हैं
कुत्ते के साथ रहते हैं, पर उसके जैसी वफादारी दिखाते नहीं।