1 मई 2022/ बैसाख शुक्ल एकम /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
सुख-दु:ख का कारण परद्रव्य यानि कर्म के उदय से प्राप्त बाह्य-सामग्री या कषाय-भाव ??
सुख-दु:ख का कारण परद्रव्य या कर्म के उदय से प्राप्त बाह्य-सामग्री नहीं है, बल्कि जीव के स्वयं के भाव ही सुख-दु:ख का कारण है। कर्म तो परद्रव्य हैं, जीव जैसे भाव करता है,उसी अनुसार कर्मबंध होता है। और उन्हीं बंधे हुए कर्मों के उदयानुसार जीव को अनुकूल प्रतिकूल सामग्री प्राप्त होती है। पर वह सामग्री भी सुख दु:ख का कारण नहीं हैं। बल्कि उस प्राप्त सामग्री में जीव जो अच्छे बुरे की कल्पना करता है वह दु:ख का कारण है। यानि जीव स्वयं अपनी कल्पनाओं से दु:खी है।
जैसे जीव सोने के लिये मखमल के गद्दे को सुख का कारण और जमीन को दु:ख का कारण मानता है। पर क्या वास्तव में यह सही है ? क्यों कि हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि एक अमीर आदमी को मखमल के गद्दे पर भी नींद नहीं आती, और एक गरीब आदमी बिना बिस्तर के जमीन पर भी सुकून से सोता है।
56 प्रकार के पकवान मिलने पर भी व्यक्ति को स्वाद नहीं आता जब कि दूसरी ओर एक मजदूर आदमी को रूखी-सूखी नमक रोटी में भी भरपूर स्वाद आता है।
कहने का तात्पर्य यही है कि बाह्य सामग्री सुख-दुख की दाता नहीं है, कषायवश हम स्वयं उसमें सुख-दुख की कल्पना करते हैं। वस्तुतः तो प्रमेयत्व गुण के कारण ये सब वस्तुऐं मात्र ज्ञान का ज्ञेय हैं।
परवस्तु से सुख की कल्पना/इच्छा ही दु:ख का कारण है, भ्रम है, वही आकुलता रूप है। क्योंकि कोई भी सामग्री कभी इष्ट अनिष्ट की कल्पना नहीं कराती, ये कल्पना जीव स्वयं करता है और स्वयं ही दु:खी होता है। यदि अनुकूल सामग्री सुख का और प्रतिकूल सामग्री दु:ख का कारण होती, तो जिनके पास सर्व अनुकूलतायें हैं वे जीव तो पूर्ण सुखी होते और प्रतिकूल सामग्री वाले पूर्ण दु:खी। पर वास्तव में ऐसा दिखाई नहीं देता। भाई! एक चक्रवर्ती भी सारी सामग्री का त्याग करके ही सुखी होता है।
यदि हम सब भी सुखी होना चाहते हैं तो हमें इष्ट सामग्री को जुटाने और अनिष्ट सामग्री को हटाने का पुरूषार्थ नहीं करना है, ये तो पुण्य-पाप के उदयानुसार स्वयं मिलती है, बल्कि प्राप्त सामग्री में संतुष्ट रहकर कषाय-भावों को नियंत्रित करने और समता-भाव रखने का पुरूषार्थ करना है। तो हम वर्तमान में भी सुखी रह सकते हैं।
– एक सोशल मीडिया पोस्ट से