देशनोदय चवलेश्वर-निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
मै प्रतिदिन यह मांग के सोता हू सब जीवो से क्षमा मांगता हू
1.ध्यान-ध्यान जब भी किया जाता है भविष्य का होता है भावना जब होगी अतीत और वर्तमान की होगी ध्यान में अनित्य का ध्यान नहीं करना,शरण में जाना पड़ेगा समर्पण करना पड़ेगा और भावना में अनित्य,अशरण भावना का आचरण करना हैं।
2.संसार मे कोई नहीं-सब कुछ है जो अनित्य हैं नित्य की भावना भाने से अंहकार जागता है अनित्य की भावना से अनित्य आपके ज्ञान की पर्याय बन जाता आपको अनित्य भावना सहज भाव आ जायेंगे,जिन वस्तुओं से आपको राग जागता है उन वस्तुओं में आप अशुचि भावना भाये,शरण भावना भाने से आप के पाप के भाव होंगे,पाप करते समय निश्चिंत हो जाएंगे, बड़े आदमी की छाया होने पर व्यक्ति उद्दंड हो जाता,धन होने पर धन से कुछ भी करने की ताकत आती है इसलिए आपको संसार में कोई नहीं है यह भावना भावे।
3.भावना-जिन वस्तुओं से हमें डर लगता उस कार्य को बार बार करने से डर भाग जाता है, जैन धर्म का मंत्र है,बार-बार कोई भावना भाई जाती है, वह भावना धीरे-धीरे सहज रूप से हो जाती है।
4.शस्त्र का त्याग-जैन आचार्य ने तुम्हे शस्त्र क्यो नही दिया, शस्त्र तुम्हारे पास होगा, तो गुस्सा आयेगा, तुम उसे निपटा दोगे, शस्त्र नही होगा तो तुम भागोगे, शस्त्र होगा तो तुम उसे मारोगे, कर्महीन व्यक्ति का कर्म सब कुछ छीन लेता है, मां-बाप छीन लेता है, महावीर ने कहा शस्त्र नही रखना, तुम भागोगे, बच जाओगे पाप से।
5.मारना नहीं मरना हैं-जैनी लोगो को लोग ज्यादा डराते है क्योंकि जैनी डरता है महावीर ने कहा पीट के आओगे तो मै तुम्हारे साथ नही हूं पीट के आओगे तो मै तुम्हारे साथ हू मरहम लगा दूंगा।
6.त्याग-दुनियां एक ही पूछती है तुम्हारा सब कुछ छूट गया है या तुमने सब कुछ छोड दिया है, छोडना तो सबको है ही, साधू जब मरता है तो पहले ही छोड देता हैं।यमराज कहता है- मै उसको मारता हू जो मरना नही चाहता, मै उसको नही मारता, जो मरने के लिए तैयार हो
प्रवचन से शिक्षा-जब मोत आये तो एक शब्द बोलना है मै तैयार हू
सकंलन ब्र महावीर