निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
आपने अपने बेटे को जन्म संसार के लिए नहीं,भगवान के अभिषेक के लिए जन्म दिया है, यह धर्म है
1.भगवान का अतिशयदिन भर में मन से कुछ समय देव शास्त्र गुरु धर्म के लिए सोचेंगे मन क्षण भर प्रभु के काम आ जाए, मन से कुछ चर्चा देव शास्त्र गुरु के काम आ जाए, यह सोचे अपना स्वार्थ नहीं रखना, इसमें कोई ऐसी बात सोचो कि जो भगवान जिन के में भक्ति करके बहुत कुछ पाया है, बहुत कुछ ऊंचाइयां छू ली उनके भक्त बड़ा सुकूं,देव शास्त्र गुरु की प्रभावना कर सको उनका यश,ख्याती बढ़ाना चाहता हूं, भगवान की प्रतिमा के भक्त बढ़ा सकु उनके पुजारी अभिषेक पुजा भगवान की आरती करने वाले चालीसा पढ़ने वाले बड़ा सकु भगवान से दिनभर याचना करते रहते हैं इसकी वजह कुछ देव भगवान की भक्त बढ़ाने की सोचे।
2.हम भगवान गुरु के पास सीधे नहीं आते, तब जो धर्म का विरोधी कर्म है, वो इतने संकट आता है, परेशानियां देता है तो धर्म की याद आती है, यदि पहले ही हम भगवान गुरु की शरण में आ जाते तो यह दुख क्यों आते हैं।दुख मे सुमरन सब करें यदि सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे आए।
3.अच्छे पढ़ने वाले व्यक्ति से अपेक्षा करता है कि कमजोर पड़ने वाले को पडा दे,सामर्थ्य वान व्यक्ति से अपेक्षा करता है कि कमजोर लोगों के लिए कुछ कर दें कोई मदद कर दें, लेकिन कोई मदद नहीं कर पाता क्योंकि कमजोर लोगों ने जिंदगी में दूसरों के लिए कुछ सोचा ही नहीं ,इसलिए आपके लिए कोई सोचता ही नहीं।
4.मृत्यु भोज नहीं होना चाहिए, मृत्यु भोज के लिए समाज के कुछ लोग तैयार नहीं हुए ,तो दूसरे तरीके से मृत्यु भोज का त्याग कराया समाज वालों का।
शिक्षा-भगवान की वजह से हमारा कल्याण हुआ, हमको चाहिए हम उनके लिए कुछ दिन भर में उनका यश बडे , इसके लिए सोचे।