तीर्थों की सुरक्षा के लिये मुनि पुंगव श्री सुधा सागरजी सिंह की दहाड़ हो, समाज हेतु हुंकार हो

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29 दिसंबर 2023 / पौष कृष्ण दौज /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी के एक सवाल पर मुनि पुंगव श्री सुधा सागरजी ने अनेक सवालों से कमेटियों व समाज के नकारापन के लिए झिंझोड़ा। एक सवाल पर ही खोल दी कलई
॰ तीर्थक्षेत्र कमेटी सक्रिय नहीं : पद के लिये लड़ेंगे, पर तीर्थों के लिये नहीं
॰ न संगठन, न नेतृत्व, मंदिर असुरक्षित, आवाज बस दिल्ली में


अवसर था, दिल्ली में मुनि पुंगव श्री सुधा सागरजी को दिल्ली की ओर विहार करने के लिये विनय करने का। राजनीतिक व सामाजिक एकता के लिये और इस अवसर पर सान्ध्य महालक्ष्मी ने एक सवाल से जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम में मुनि श्री को चल-अचल तीर्थों की सुरक्षा के लिये अपनी 44 साल से चिरपरिचित अंदाज में सिंह रूपी दहाड़ के साथ समाधान के लिये अनुरोध किया, तो उन्होंने अनेक सवाल खड़े कर, कमेटियों की, समाज के ‘खास’ लोगों की कलई खोल दी। पेश है 26 दिसंबर सायं जिज्ञासा समाधान में

सान्ध्य महालक्ष्मी – गुरुवर, शहंशाह के इस ताज ने जंगल के इस नाज को अब बहुत दिन देख लिया है, अब वक्त है इंतजार का कि उनके लघु अकबर का लालकिला भी इस सिंह के नाज को देख ले। अब बस यहां की आवाज लालकिले की गूंज से होनी चाहिये। 44 वर्ष के इस विराट स्वरूप के अंदर कई बार सिंह की दहाड़ देखी है, कई बार हाथी की चिंघाड़ देखी है। आज हम सिर्फ ये चाहते हैं कि एक साथ दोनों की आवाज हो जाए, जो 44 सालों में आपने देखा है गुरुवर हमारे चल-अचल तीर्थों पर बार-बार चोट हो रही है। इन सालों में आपने देखा है, जो हमारे साथ हो रहा है, न सत्ता साथ है, न प्रशासन, न शासन मिल रहा है, न ही जैन समाज में एकता हो पा रही है। तो गुरुवर आज कम से कम एक शंखनाद ऐसा हो जाए, पूरी आवाज गूंजे। वहां पर कुतुबमीनार भी है, जहां शिलालेख पर लिखा है कि 27 जैन मंदिरों को तोड़ कर बनी है। वह भी आवाज पुकारना चाहती है कि लालकिला मैदान से पहले आज ऐसा शंखनाद हो जाए, जिसमें सिंह की दहाड़ भी हो और हाथी की चिंघाड़ भी हो – हम कैसे अपने तीर्थों की सुरक्षा कर सकें?

दहाड़ कहीं बेकार न हो जाये….
मुनि पुंगव श्री सुधा सागर: कहीं सिंह की दहाड़ टकराकर के और कहीं ध्वनि बन कर ना रह जाए। आकाश से पानी बरस सकता है, कहीं ये ना हो जाए कि पानी जमीन में चला जाए। सिंहनी का दूध हो सकता है, पर ऐसा ना हो जाए कि सिंहनी का दूध बरतन में जाए और बरतन में छेद हो जाए। हम तो बहुत बार दहाड़ चुके हैं, पर इस दहाड़ को झेलने वाला एक समाज भी सामने नहीं आ पा रही है, मैंने बहुत बार कहा है तीर्थ क्षेत्रों के सम्बन्धों में, बहुत कहा है और उपाय भी बतायें हैं।

तीर्थक्षेत्र कमेटियां पदों के लिये लड़ती है, तीथों के लिये नहीं
तुम्हारी जितनी भी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाए हैं, सभी सुप्त पड़ी हैं। मेरे पास संस्थान विषय धर्म ध्यान है, संस्था नहीं है, जो तुम्हारी अर्न्तराष्ट्रीय संस्थाए हैं वो चुनाव के लिए तो लड़ती हैं, पदों के लिए लड़ती हैं। तीर्थ क्षेत्र कमेटी पदों के लिए लड़ती है – मेरा पद, मेरा पद तो करती हैं और जब तीर्थ सुरक्षा की बात आती है तो पीछे हो जाती हैं। नेतृत्व की कमी है, दहाड़ तो अभी भी वैसी है, बस समाज में नेतृत्व की कमी है। जब तक जैनी एक नेतृत्व में संगठित नहीं होंगे, तब वहां पर भगवान महावीर भी दहाड़ेंगे तो भी वो हमारी सुरक्षा नहीं कर पायेंगे। सबसे पहले सेंट्रलाइज होना पड़ेगा। सेंट्रलाइज हुए बिना हमारा काम नहीं चलता है और जो सेंट्रलाइज हैं उनको गांव -गांव में जाना पड़ेगा। मान लो दिल्ली सेंटेÑलाइज है, तो जो दिल्ली की आवाज है वो दिल्ली में ही गूंज कर रह जाती है, गांव तक नहीं पहुंच पाती। दिल्ली वाले गांव नहीं पहुंचते और गांव वाले दिल्ली नहीं पहुंच पाते, परिणाम ये निकलता है कि दिल्ली अकेली पड़ जाती है और गांव सब टूट जाते हैं। बिना प्रजा के राजा हो जाता है, बिना सेना के राजा हो जाती है। आज हमें ऐसी यूनियन चाहिए जो हमारी दहाड़ को झेल सके, संसार की ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसका समाधान न हो। बस समाधान के लिए उसको फोलो करने वाला चाहिए, गाइड मैं दे सकता हूं, निर्देशन मैं दे सकता हूं, पहले चलने वाला कौन है उसका नाम बताओ?

न एक संगठन है, न ही एक नेतृत्व
हमारे नेताओं के वचन नहीं है। हम उसी समय दहाड़ते हैं जब जरूरत होती है। जब हम संघ में गये आचार्य श्री के दर्शन करने, तो लोग कहते कि आप तो चुपचाप बैठे हैं, तो मैंने कहा कि अपनों के बीच में थोड़ी दहाड़ा जाता है। सामने कोई मैदान तो हो यहां तो सब अपने घर के लोग हैं, तो ये है ऐसा मौका। ऐसे समाज नेतृत्व कमर कस करके आए, जो तीर्थ क्षेत्र की सुरक्षा के ऊपर हो रहे अत्याचार पर कमर कस ले और एक सारे संगठन को लेकर आवाज उठाये, सारे भारत की जनता उनके पीछे चलने को तैयार हो और मैं चलाऊंगा जनता को, लेकिन कोई आगे तो आए और उसके सम्बंध में सारे लोगों का समर्थन होना चाहिए। सारी अर्न्तराष्ट्रीय संस्थाओं को आगे आना पड़ेगा।

तीर्थक्षेत्रों के लिये तीर्थक्षेत्र कमेटी सक्रिय नहीं
तीर्थ क्षेत्र के लिए तीर्थ कमेटी जब तक सक्रिय नहीं होगी, तब तक तुम कुछ भी नहीं कर पाओगे, क्योंकि कानून में आवाज की सुनवाई नहीं है, कानून में हस्ताक्षर की सुनवाई होती है। आप कौन हैं, अगर आप किसी तीर्थ के सम्बंध में आवाज उठायें और कोर्ट में पहुंच जाएं, तो कोर्ट पूछेगा कि आप कौन हैं? तो अपने पास एक स्टेट बैलेंस एक डोक्यूमेंट होना चाहिए। तो हस्ताक्षर की कमी है, तीर्थ तीर्थ क्षेत्र की कमेटी के चुनाव होते हैं, तो जितने पुराने कागज हैं, पुराने अध्यक्ष पर रह जाते हैं। वो नये को देते ही नहीं हैं। पुराने अध्यक्ष के मर जाने पर भी कागज रद्दी में चले जाते हैं, पर नये को नहीं देते। ये समाज की, कमेटी की बहुत बड़ी कमी है, कोई चार्ज नहीं देना चाहता।

तीर्थों के कागज पक्के करो, बाऊंड्री बनवाओ
सभी तीर्थों के कागज होने चाहिए ,नहीं हैं तो आज बनवा लो। जिन तीर्थक्षेत्रों पर कोई विवाद नहीं है, सरकार से कोई एप्लीकेशन लगाकर के कम से कम कब्जा का कागज तो हासिल कर लो। कागज का सबसे बड़ा महत्व है, जो हुआ है, जो हो रहा है सब कागज पर हो और दूसरी बाउंड्री। जितने भी क्षेत्र लुटे हंै अगर 25 साल पहले बाउंड्री बना लेते, तो शायद ये दिक्कत नहीं होती, बेसिक चीजें हैं ये।

करोड़ों के मंदिर बनाते, पर सुरक्षा के इंतजाम नहीं
एक एस पी ने कहा था कि महाराज जी आपके मंदिर बहुत सुंदर बनते हैं, करोड़ों का मंदिर बनवा लेगें पर 10 लाख का लॉकर नहीं रखेंगे, जो सुरक्षा पर खर्च कर दें। समाज को चेतना चाहिए, पक्के कागज तैयार करो, बाउंड्री बनवाओ, सुरक्षा करो, उसके बाद एक ऐसी संगठन संस्था हो जो कहीं भी समस्या आए जो अपने हस्ताक्षर बैनर लेकर कोर्ट में जाकर खड़े हो जाए, तो आज भी हमें न्याय मिल सकता है और मिलना चाहिए।

आप तीर्थ क्षेत्र कमेटी को लाईये, फिर मैं दहाडुंगा और फिर उसकी आवाज सुनना
सान्ध्य महालक्ष्मी – दिल्ली से एकता का हुंकार, गुरुवर का रहेगा इंतजार और पक्का वादा रहा दिल्ली के अंदर ये सभी कमेटी को लेकर आपके चरणों में आयेंगे, बस एकता की हुंकार आपके मुख से वहां से हो जाए।