रावण को अपनी 16000 रानियों में आनंद नहीं आ रहा था, दूसरी की रानी में मन मचल रहा था : मुनिपुंगव श्री सुधासागर

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19 अप्रैल 2021 देशनोदय चवलेश्वर- निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव तीर्थ रक्षक प्रेरक 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
जब जब तुम्हें पर वस्तुओं में आनंद,स्व मे आनंद नहीं आ रहा है समझना आपकी नीयत ठीक नहीं

1.प्रतिमा व साक्षात भगवान -साक्षात भगवान के सामने प्रतिमा के दर्शन करते हैं मूर्ति की पूजन करते देवता लोग अष्टान्हिका में सभी देवता दर्शन पूजन करते हैं समोवशरण मे भी नही जाकर पुजा करते है विदेह क्षैत्र में भी साक्षात् भगवान के सामने मान स्तम्भ के दर्शन करके जाते है, प्रतिमा के पूजन करने से अतिशय होता है भक्ति करने से,साक्षात् के भगवान मे उतना नहीं होता।

2.अशुद्ध कोन-स्व का त्याग नहीं किया जाता है पर का त्याग करना चाहिए, स्व क्या है? पर क्या है? आचार्य कहते हैं कि जो पर है, उसको तुरंत छोड़ देना चाहिए, दुर्जन के कषाय पर को देखकर कषाय जागती है, दूसरी की वस्तुओं में आनंद आता है, रावण को अपनी 16000 रानियों में आनंद नहीं आ रहा था, दूसरी की रानी में मन मचल रहा था, जब जब तुम्हें पर वस्तुओं में आनंद,स्व मे आनंद नहीं आ रहा है, समझना आपकी नीयत ठीक नहीं, स्वयं में ज्यादा आनंद दिखना चाहिए

3.अपनो को ज्ञान-मुझे तो ज्ञान हो गया कि मैं खोटे देवता है इनकी पूजा नहीं करनी चाहिए जब परिवार को देखते हैं समाज को देखते हैं तो दुखी होते हैं यह खोटे देवताओं को पूजते हैं उनसे कैसे झुडाएं हमे गर्व करो कि हमें ऐसे चौखे गुरु भगवान मां बाप भाई बहन मिले।

4.शुद्ध अशुद्ध क्या-दो प्रकार के दृष्टिकोण की शक्ति विराजमान है एक वो जो सदा शुद्ध रहती है दूसरी निमित्त के आश्रित है जो अशुद्ध रहती है ध्यान करने वाला निमित्त की तरफ जाता है तो व्याकुल हो जाता है त्रिकालिक की तरफ ध्यान देता है तो आनंद की अनुभूति होती है हमेशा मालिकपने का अनुभव होता है जिस कार्य ने करने पर सोचना पड़ेगा वह टेंशन है और जिसको सोचना न पडें वह वास्तिवक सुख हैं।

5.गुणवान की प्रशंसा करो -गुणवान है जिसके पास गुण है उसकी प्रशंसा करो चाहे संसार में हूं ,धर्म में जो अपने से ज्यादा पैसे वाले अपने से ज्ञान में हूं उनकी प्रशंसा करो बस आपके गुण अधिक हो जायेगे

प्रवचन से शिक्षा- साक्षात भगवान के सामने प्रतिमा का दर्शन करना प्रतिमा जी का अतिशय दिखाता है
सकंलन ब्र महावीर