सारा संसार दुखों से व्यथित है, दुख स्वयं की उपज है, कोई हमें दुखी नहीं कर सकता : मुनिपुंगव श्री सुधासागर

0
1523

16 अप्रैल 2021 देशनोदय चवलेश्वर – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव मिथ्यात्व भंजक 108श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
व्यक्ति सुख नहीं चाहता मात्र, दुख का अभाव हो जाए
1.संबध का दुख -हम दुखी हैं परेशान हैं इसका जब विश्लेषण भगवान सामन कुन्द कुन्द आचार्य ने कहा कोई दुखी नहीं हैं कोई दवाई की जरूरत नहीं आती आत्मा कटती नहीं, मरती नहीं,यह मान्यता उसका नाम दुख है सयोंगज प्रयाय का नाम दुख है संबंध का दुख, हमारा परिवार का कोई आदमी का दुर्घटना हुई हम दुखी हो गए और हमारा नहीं निकला तो हम सुखी हो जाते हैं।
2.मोह का दुख-संबंध का दुख है ये मेरा दुख है इसका कोई इलाज नहीं आत्मा को भूख नहीं लगती,नाटक कर रहा हूं, सिर दर्द करता है, यह नाटक कर रहा है, यह पाखंडी हैं , हम कभी सोते नहीं, मेरे को कभी कोरोना नहीं हो सकता यह परिवार है कुन्दकुन्द भगवान कहते हैं कि ये अपराधी है।
3.सुख नहीं चाहता-व्यक्ति सुख नहीं चाहता है, मात्र दुख का अभाव हो जाए, दुखी व्यक्ति दुख से निवृत्ति चाहता है, सारा संसार दुखों से व्यथित है, दुख स्वयं की उपज है, कोई हमें दुखी नहीं कर सकता,आंखों से परेशान है तो आंखों से कुछ देर बंद कर लेना जिससे आप परेशान हो उसको कुछ देर विराम दो,जो मन से दुखी है मन को कुछ देर विश्राम दो जिससे मन में शांति हो।
4.सुखदुख से अलग हो-ना मैं दुखी हूं ना मैं सुखी हूं ज्ञायक पिंड स्वरूपी, ज्ञान स्वरूपी हूं ज्ञान पिंड हूं मैं इतना सोचता है सुखदुख से ऊपर उठकर सोचो,एक क्षण के लिए सुख-दुख से अलग हो जाओ समयसार के सामने हमारा झुठ अंनत संसार में डाल देगा।
प्रवचन से शिक्षा-संबंध का दुख है यह मेरा है मेरे पने का दुख हैं।
सकंलन ब्र महावीर