दुनिया में जितने रिश्ते होते हैं ,उनमें दो रिश्ते गाली होते हैं, डराने वाला पापी अधोगति डाकू है, घर के गुंडे मत बनना – मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी

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चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी – निर्यापक श्रमण आगम के यथार्थ उपदेष्टा मुनि पुंगव108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
मरना पाप नहीं मारना पाप हैं
1.घर के गुंडे-एक व्यक्ति जो परिवार से डरता हैं, एक व्यक्ति से परिवार समाज नगर सबको डराता है, डराने वाला पापी अधोगति डाकू है, भगवान ने कहा मारने का भाव नही करना, हमारा कोई बुरा करें, हमें बुरा करने का भाव नहीं करना , तुमसे मां बाप तो नहीं डर रही, घर के गुंडे मत बनना।

2.विश्वास-दुनिया में जितने रिश्ते होते हैं ,उनमें दो रिश्ते गाली होते हैं ,साला और साली, सगे पर से विश्वास उठा रहे हो, जिसका विश्वास उठा रहा है, वह उतना खतरनाक नहीं हैं, जितना जिस पर से विश्वास उठा रहा, वे माँ बाप विचार करना चाहिए ,आखिर हमने क्या किया है कि मेरा व्यक्ति मेरे पर विश्वास नहीं कर पा रहे, आप बेटे को जन्म देते हो, लेकिन नेचर को नहीं समझ पायेगा, उसका मन नहीं जीत पाये

3.अपनो से अविश्वास-सबसे ज्यादा व्यक्ति अविश्वास अपनों से कर रहा है, व्यक्ति अपना पैसा सुसराल में जमा करा रहा है, जिस मां-बाप ने आप पर विश्वास किया उससे ही छुपा रहे हैं, आपके ऐसे लोगों का अंतर्चेतना भी काम नहीं करेगी, हम सब अपना पैसा अपने लोगों से छुपा रहे हैं, यह घर में हम घर के लोगों को डाकू और चोर सिद्ध कर रहे हैं।

4.भविष्य का भय-हम कोई ना कोई भय सतता रहता है, लेकिन अतीत को स्मरण करते ही भाव आता है कि मुझे आगे समस्या आयगी या नहीं, भगवान ने जान लिया वर्तमान में हमने सब जान लिया, लेकिन आकस्मिक भय बना रहता है, मैं आज शाम को डूबता हुआ सूरज देख पाऊंगा या नहीं, हर कार्य के बाद भय बना रहता है ,हमारे पुण्य है, आज जो है वह कल रहेगा कि नहीं वर्तमान की कमाई सब उस में समा जाती है, भविष्य की खाई बहुत गहरी है

5.समस्याओं-हमारी जिंदगी समस्याओं के समाधान के लिए ही है, हम कई बार मन से डर रहे हैं, आज हम सब कुछ जान रहे हैं , जिंदगी भर भगवान के दर्शन के बिना जल भी नहीं पिया,वह आज दर्शन भी नहीं कर पा रहा, जिंदगी भर आलु नहीं खाया, जिंदगी के अंत में बच्चे के हाथ से चिप्स खा लेते हैं, ज्ञान का भरोसा नहीं ,आज हमारा भी हमारा नहीं है

6.भय-भगवान ने जान लिया मुनि पद भी अनंत बार पा लिया, कल तक मैं जिंदा रह पाऊंगा या नहीं, यह भी बना रहता है, भोजन कर रहा हूं, मैं कल कर पाऊंगा कि नहीं आज जो पर्याय है, वह कल रह पाएगी या नहीं हम सब जी रहे हैं ,आज जो पर्याय हैं ,वह जाता हुआ नजर आ रहा है, एक आकस्मिक भय हमेशा बना रहता है ,जाने की अनुभूति क्यों बनी रहती है ,वर्तमान को असीम बना दो, तुम जहां हो उसको असीम कर दो जो है ,जो हैं उसको छोटा कर दो।
प्रवचन से शिक्षा- अपनों को डराना नहीं

सकंलन ब्र महावीर विजय धुर्रा 7339918672