चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी , निर्यापक श्रमण आगम के यथार्थ उपदेष्टा मुनि पुंगव108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
अनुकूल मत बनाओ अनाकुल बन जाओ
1.पुर्णता का अनुभव-अभाव की अनुभूति वाला दरिद्र हैं, एक गिलास में दूध भरा है ,पूछा गिलास आधा खाली है ,वहीं दूसरे से पूछा वह आधा भरा है, खाली दिखने वाले का मन विषाद से भरा है, दरिद्र हैं ,जिसको गिलास भरा दिख रहा है ,वह जो इन दोनों से ऊपर उठकर देखना चाहता है, वह गिलास को देखेगा ,उसे दूध को देखेगा नहीं, दूध से उसे क्या लेना देना ,पूँछ गया गिलास कैसा है, गिलास तो अपने में पूर्ण हैं
2.अभाव-अभाव में संतोष मजबूरी है ,अभाव में कैसा लगता है, अब आओ की अनुभूति लग रही है, हमें समयसारजी की अनुभूति नहीं होगी ,अनुभूति वाला जीव गरीब दरीद्री हैं, अभाव में सदभाव कि अनुभूति करों ,सामने दुश्मन खड़ा हैं और आप मित्र की अनुभूति करों,महाराज को शेरनी खा रहीं हैं ,महाराज शेरनी खाने पर भी उसे मित्र मान रहे हैं
3.अनाकुल-हर व्यक्ति चाहता है, जिस समय जो चाहिए ,जहाँ चाहिए, जैसा चाहिए, वह उसे उसी समय उपलब्ध हो, सारी दुनिया का हर व्यक्ति ये चाह रहा है, जिस समय जो चाहिए ,वह मिल जाये ,वही सेविन स्टार हैं ,अनुकूल नहीं, हम अनाकुल हो जाये, हम अनाकुल बन जाओ, अनाकुल हमारी प्रकृति है, अनुकूल बनाने दूसरे के आधीन हैं ,अनुकूल मत बनाओ ,अनाकुल बन जाओ ,अनुकूल पर प्रत्यय दूसरे को अनुकूल बनाना परिस्थिति है, अनाकुल प्रकृति है, हमारी है, रास्ते में मोड़ को आप अपनी गाड़ी को रास्ते के अनुसार चलो ,यही अनुकूल बनना हैं।
4.अनुकूल-जीवन यदि जीना है ,तो हमें रास्ते के अनुसार चलना होगा, रास्ते को नहीं मोडना, हमारे जिंदगी के रास्ते अनुसार हमे मुडना होगा,दुनिया मेरे अनुसार हो जाए ,यह संभव नहीं ,जो दुनिया मन के अनुकूल नहीं होगी, हमें दुनिया की अनुकूल बनना होगा, दुनिया की सुनो ,अनुकूल मत चलो, जो देखा, अपने-अनुसार दूसरे को चलाना चाहते हैं, सब कुछ अनुकूल दुनिया में अनुकुल है ही नहीं, अनुकूलता का नाम पुरषार्थ नहीं, अनुकूल तो का नाम ज्ञानी नहीं ,सब मेरे अनुकूल चले, जो मैं चाहता हूं वह वैसा अनुकूल चले, जिस समय चाहिए, उस समय मिले जहां चाहिए ,वहां मिले अनुकूल बनाओ
प्रवचन से शिक्षा- दुनिया के अनुकूल बन जाओ
सकंलन ब्र महावीर विजय धुर्रा 7339918672