जितनी पढ़ाई विद्यार्थी करते हैं ,उतना मुनिराज भी स्वाध्याय नहीं करते है, यदि उतना स्वाध्याय हो जाये तो …..- मुनि पुगंव श्री सुधासागरजी महाराज

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-सूर्य निकलता है अपना कर्तव्य मानकर नहीं,उसका स्वभाव है, सूर्य उजाला करने के लिए नहीं निकलता है, सूर्य का प्रकाश देना स्वभाव है ,नदी कभी खेत के लिए नहीं बहती है, हमें पानी की पूर्ती हो जाए, इसलिए नहीं हुआ उसका स्वभाव है, पेड़ फल देता है वह हम लोगों के लिए नहीं देता है कि हमारा पेट भर जाएगा, पेड़ का फल देना स्वभाव है नदी नाला, पानी यह सब हमारे लिए नहीं है बहना उनका स्वभाव हैं प्रकृति खुद के लिए नहीं,दूसरे के लिए नहीं होती है, वह प्रकृति हैं, किसी पर उसके उपकार का भाव नहीं है, ये उसका स्वभाव हैं, उक्त आशय के उद्गार चन्द्रोदय तीर्थ चाँद खेड़ी से सीधे प्रसारण में मुनि पुगंव श्री सुधासागर जी महाराज ने व्यक्त किए ।

हम परिस्थितियों में जुट जाते हैं प्रकृति नहीं वन पा रहे

उन्होंने कहा कि मैं मुनि बन पूजा कर रहा हूं, यह प्रकृति नहीं ,परिस्थिति है, हम मोक्ष के लिए, धर्म के लिए कर रहे हैं, परिस्थिति है ,हम परिस्थिति में जुटे हैं, लेकिन प्रकृति नहीं बन पा रहे ,हैं मुनि महाराज को मोबाइल नहीं मिल जाए,हमारी वेदना मोबाइल मिल जाए, यह दोनों की वेदना है ,हमारी नहीं देखने की वेदना है, मुनि को देखने ही वेदना हैं, हमारा रस भरा भोजन खाने नहीं मिला, तकलीफ हैं ,मुनि को रस भरे भोजंन, खाने मे तकलीफ है।

जितनी पढाई वच्चे करते हैं, उतना स्वाध्याय तो मुनि राज भी नहीं करते

उन्होंने कहा कि विद्यार्थी पढ़ रहा है ,ज्ञान के लिए नहीं ,परीक्षा के लिए नहीं, नौकरी के लिए पड़ रहा है और नौकरी के लिए भी नहीं ,रोजी रोटी के लिए पड़ रहा है और रोजी रोटी के लिए भी नहीं ,पेट की भूख मिटाने के लिए ,उसका ज्ञान ज्ञान के लिए नहीं पड़ता है ,परीक्षा के लिए पड़ रहा है ,जितनी पढ़ाई बच्चे करते हैं ,उतना मुनिराज भी स्वाध्याय नहीं करते है ,यदी स्वाध्याय करने वाला का मन पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी जितना लग जाए, तो स्वाध्याय वाला बहुत बड़ा आदमी बन जाए, विद्यार्थी पढ़ाई वेदना के प्रतिकार के लिए करता हैं।

प्रकृति परीस्थिति स्थिति व्यक्ति जितना कुछ भी जानना चाह रहा ,इस संबंध में वह सब कुछ परिस्थिति में इर्दगिर्द कर रहे हैं, समस्या भी परिस्थिति समाधान भी परिस्थिति हैं वेदना का प्रतिकार करने का नाम स्वार्थ वासना है संसार है संसार का निर्माण होता है सभा का संचालन महावीर भइया ने किया