चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी – निर्यापक श्रमण मनोज्ञ108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
जैसे भोजन से नहीं उबते वैसे ही अभिषेक पूजन से नहीं उबना
1.राग से उबे नहीं-जब एक रागी राग की वस्तु को देखकर थकता नहीं है, वैसे ही भगवान को देखकर थकना नहीं, पापी एक बार पाप करता है, लेकिन यह नहीं सोचा, पाप अभी तो किया था, क्रोध करने के बाद थोड़ी देर में वापस क्रोध कर बैठते हैं, मंदिर जाते जाते थक जाते हैं ,मंदिर से ज्यादा घर में रहते फिर भी घर से थके नहीं ,उबे नहीं नहीं।मुनि हम अनंत बार बन चुके हैं, लेकिन यह कभी देखते श्रावक अनंतानंत बना चुके, लेकिन घर तो घर कितनी बार बनाएं ,अनंतानंत बार,माला फेरते समय उबासी आती है ,नोट गिनते समय कभी जमाई आती है।
2.धर्म से उबे नहीं-पापी की कितनी बुराई करें, पाप नहीं छोड़ते, जैसे सूअर को गंदगी अच्छी लगती है, वैसे ही हम लोगों को संसार के पाप बुरे नहीं लगते, जो तुम कर रहे हो, वही परिवार मिले वही सब बार बार मिले एक बार फिर सोचना कि हम णमोकार मंत्र की माला बार बार मिले , इतनी सी आदत प्रिय वस्तु से नहीं उबते, तो भगवान जन्म-जन्म तक आपको देखकर नहीं उबना, इतना सा परिवर्तन कर ले।
3.उबना-त्याग और नियम हमारी नीयत को बताते हैं परीग्रह परिमाण किया, यह बहुत बड़ी तलब है, अंत में जाकर रोटी पानी से भी उब जाता है और अष्टमी चतुर्दशी का उपवास करता है, जैसे भोजन से नहीं उबते, वैसे ही अभिषेक पूजन से नहीं उबना
4.वर्तमान सुधारों-जीवन की शुरुआत हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन जीवन कहा से आता हैं, हमारे हाथ में नहीं है, जीव कहां से आया, यह हमें मेरे ज्ञान में नहीं,पहले कहा था पता नहीं,मुल स्थान हम सब का निगोद था, थोड़े अतीत को देखे प्रकृति में अनादि काल से देखें ,तो अतीत हमारे हाथ में,अतीत की लकीर को नहीं पीटा जाता है वर्तमान को संवारा जाता है यह हमारे हाथ में है इसको सुधारे ये हमारा हाथ में है हम जान रहे हैं, फिर भी हमारा वर्तमान बिगड़ रहे हैं, हम जानते हुए भी हमारे गलत कार्य होते हैं, जो नहीं करना चाहिए फिर भी करते हैं , बच्चे को हिरा दिया , लेकिन को कंचा समझकर के खेलते हैं।
प्रवचन से शिक्षा-संसार से नहीं उबते वैसे धर्म से नहीं उबना
सकंलन ब्र महावीर विजय धुर्रा 7339918672