देशनोदय चवलेश्वर- निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव वाग्भि 108श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
अशुभ कर्म का उदय आता है तो थोड़ा शांत हो जाओ,व्यापार में घाटा लगा है,मन वचन काय से शांत हो जाओ
1.पर को नहीं देखना-सबसे ज्यादा चक्षु इंद्रिय काम करती है सबसे ज्यादा राग द्वेष आंख से होते हैं और आप चक्षु इंद्रीय से होते हैं पाप से 90% छूट छुटकारा पाना है अपनी आंखों को नीचे कर लो,आंखों को नीचे करके चलो आंखों को कम देखना प्रारंभ कर दो पराई वस्तु को नहीं देखूंगा जो मेरी चीज थी नहीं हैं,जो मेरी चीज है नहीं और होगी भी नहीं उस वस्तु को नहीं देखूंगा आप सबसे ज्यादा पर वस्तु को देखती है जो मेरी है नहीं और होगी नहीं,अपनी आंख को रावण की आंख मत बनाना है।
2.आंखो को शान्तचित्त बैठो-हम दूसरों की गलती पर चिल्लाते हैं जबकि स्वयं की गलती पर चुपचाप हो जाते हैं इसी प्रकार जब अशुभ कर्म का उदय आता है तो थोड़ा शांत हो जाओ, व्यापार में घाटा लगा है शांत हो जाओ शांत चित्त होकर बैठ जाओ,मन वचन काया से शांत हो जाओ अशुभ कर्म पर भोजन को कम कर देना चाहिए,पूजा पाठ णमोकार के लिए नहीं कहना आंख को झुका लो मन को शांतचित्त हो जाओ अच्छे से विराज जाओ।
3.दुख के कारण-संसार बहुत दुखी है हमने स्वयं ही खोज लिया कि संसार दुखी है उनको दुख उतना ही नहीं जितना दुख हैं, दूसरा हम अपनों के दुख से दुखी हैं स्वंम के दुख से दुखी कम हैं दुखी नहीं हैं दूसरा व्यक्ति सुखी है फिर भी मैं दुखी हूं जबकि वह कह रहा है कि मैं सुखी हूं।
4.उच्ची जाती को नीच कार्य नहीं-यदि व्यक्ति को बुरा कार्य करना हो तो उनके परिवार में बुरा कार्य होता आया हो तो वह बुरा कार्य करें नहीं तो जिन के परिवारों अच्छी जाति में पैदा हुए हैं वह बुरा कार्य ना करें वह मरेगा कैंसर होगा।
प्रवचन से शिक्षा-पाप कर्म से बचना है तो आंखों को नीचे देख कर चलना है
सकंलन ब्र महावीर