सुधारना चाहते हैं, लेकिन सुधर नहीं पा रहे,पापों में रुचि है लेकिन पापों को छोड़ नहीं पा रहे, छोड़ने के लिए अनुकरण वातावरण नहीं बन पा रहा: श्री सुधासागर जी महाराज

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चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी – निर्यापक श्रमण महातपोमार्तंड 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
जो जो मन से विचार करे, मन से जाने ,जो मन में हो वो व्यक्त करे, वहीं माने,वहीं करें,वह भगवान नहीं हो सकता

1.भगवान कौन-यदि तुम्हारे भगवान सब कुछ जान लिया और वही तुम जानते हो, तो जाओ तुम भी भगवान हो, वही सब कुछ कर रहा है, तो कोन सी नई बात है, मन में जो ज्ञान है, उसकी स्मृति भी होतीं हैं और विस्मृति हो सकता है ,कभी मन सत्य तक पहुंच ही नहीं सकता,जो मन में आया वही हैं, जो जो मन में आया वहीं सत्य हो ही नहीं सकता, मानस्प्रत्यक्ष का मतलब है मैने नहीं जाना, उन्होंने जाना है,मैने मन में बस धारण किया, इतना ही लेना जो जो मन से विचार करे, मन से जाने मन हो वह व्यक्त करे, वह भगवान नहीं हो सकता

2.वक्ता की प्रमाणिकता से वचनों की प्रमानता होती है ,वक्ता जैसे वेद और डॉक्टर प्रमाणिक है ,तो उससे उनकी दवाई भी प्रमाणिक हो जाती है, इसी प्रकार वक्ता की प्रमाणता का हैं।

3.पापों से चारों तरफ से-इनके मन में यह भाव भी नहीं है कि मैं खोटे को चोखा मान रहा हैं अपने आप को गलत मानता ही नहीं है अनादि मिथ्यादृष्टि से सादि कैसे होगा अंतरंग में मिथ्यादृष्टि बहीरंग से भी मिथ्यादृष्टि चारों तरफ से भी उसका कल्याण कैसे होगे मैं गलत हूं मेरे भगवान शास्त्र गुरु जी गलत है,क्या भगवान है तो सही बोल रहे हैं भगवान जो बोले वो सत्य नहीं हैं सत्य हैं जो भगवान बोलते हैं।

4.नियति-हर व्यक्ति अपनी बात को कहने वाले व्यक्ति को पसंद करते है सब वही बात पसंद करता है जो वे चाहते हैं लेकिन इन्द्रभूति इससे अलग हटकर जब प्रश्न का उत्तर ना देने पर प्रश्न कर्ता के पास चल देता है ये नीति नहीं हैं ये अच्छी नियति का परिणाम है

5.सुधरना चाहता-अनादि मिथ्यादृष्टि जी का कुल जाती चारों तरफ से मिथ्यादृष्टी है हम उनकी चर्चा करना चाहते हैं अविरत सम्यकदृष्टि जो सुधारना चाहते हैं लेकिन सुधर नहीं पा रहे हैं पापों में रुचि है लेकिन पापों को छोड़ नहीं पा रहे हैं छोड़ने के लिए अनुकरण वातावरण नहीं बन पा रहा हैं।

प्रवचन से शिक्षा-ऐसे भगवान को खोजो जिन की भक्ति करने पर हम उन जैसा बन सके
सकंलन ब्र महावीर विजय धुर्रा 7339918672