हम उन परिधियों में घूम रहे हैं जहां गंधे लोग रहते हैं, हमको बुरा पाप लगता ही नहीं,सब कुछ अच्छा लगता है : निर्यापक श्रमण श्री सुधासागर जी

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चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी – निर्यापक श्रमण तर्क वाचस्पति 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
सबसे बड़ा पापी वह है जिसमें पाप को धर्म कहा
1.मिथ्यादृष्टि-अनादि मिथ्या दृष्टि खोटे देव शास्त्र गुरु को खोटा नहीं मानता है ,खोटे को सच्चा मान लिया, यह असत्य है ,असत्य स्वीकार कर लिया,असत्य को सत्य मान कर,दूसरा सत्य को असत्य मान लेता है,खोटे देश शास्त्र गुरु को सच्चा मानता है ,गृहित मिथ्यादृष्टि है, सच्चे देश शास्त्र गुरु को असत्य मान लेता है ,अगृहित मिथ्यादृष्टि है।

2.पाप को छोडने-हमे बुरी आदते छोड़ना हैं ,पापों को छोड़ना है, सब कुछ पाप मेरा स्वभाव नहीं हैं, पापों को झोडना हैं, इन पापों कों किंचित मात्र भी अभी तक नहीं छोड़ा नहीं लेकिन झोड़ने का भाव आ गया, इन लोगो की चिंता करने को नहीं कहा गया, इन लोगों का अनंत संसार छुलु भर रह गया, इन लोगों ने अपना रास्ता चुन लिया।

3.हम उन परिधियों में घूम रहे हैं जहां गंधे लोग रहते हैं कुछ भी अच्छा नहीं होता कोयले की खानों में हीरा बनता है स्वस्थ अच्छे लोग में रहते हैं हम सब कुछ बुरा ही पापी हो हमको बुरा पाप लगता ही नहीं, सब कुछ अच्छा लगता है।

4.परम्परा-जो परंपरा से पाप आया है, उसको बड़ा पाप कहा,बाप दादा से ही बुराई आई , यदि कोई पाप बुराई परम्परा से आये

सकंलन ब्र महावीर विजय धुर्रा 7339918672