दुश्मन बहार खड़ा तब तक कोई बात नहीं, लेकिन दुश्मन अंदर किले में घुस गया तो, बहुत मुश्किल होता हैं, इसी तरह कर्म जो बंध चुके हैं, उनसे निपटे कैसे, जानिए मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी से

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चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव जैन धर्म परम प्रभावक108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
अभक्ष का त्याग करना व्रत नहीं है भक्ष का त्याग करना व्रत है
1.तप करना स्वयं-आज उत्तम तप का दिन है, जो कर्म बंध चुके हैं ,उन्हें निपटाना हैं ,तप निर्जारा करता है, बहार वाले को रोकना सरल है, दुश्मन बहार खड़ा तब तक कोई बात नहीं, लेकिन दुश्मन अंदर किले में घुस गया तो, बहुत मुश्किल होता हैं, इसी तरह कर्म जो बंध चुके हैं उन्हें निपटाना कठिन है तुम खुद तपोगे तब कुछ होगा तप करना बहुत कठिन है फिर भी करना पड़ेगा।

2.इच्छा का निरोध-इच्छा बहुत होती हैं इच्छा को दबाना नहीं है तपस्या के द्वारा इच्छो का निरोध करना है जब राज्य की इच्छा करता है तब विजय पाने की चाह रखता है लेकिन जब तपने के लिए तैयार होते हैं तो सब कुछ छोड़ो तपस्या करके इन्हें जीतना होगा। बालक बहुत सारी इच्छाएं करता है लेकिन माता-पिता इच्छाओं को रोकते हैं कि अपनी ताकत नहीं हैं इसलिए अपनी इच्छाओं को बालक रोक लेता है।

3.संयम का प्रभाव-व्रत शुभ को भी रोकता है अभक्ष का त्याग करना व्रत नहीं है भक्ष का त्याग करना व्रत है पाप का त्याग करने से कुछ नहीं होगा पाप के वाद पुण्य का भी त्याग करना पड़ेगा संयम हमें अशुभ से रोकता है संयम कहता है जो कल चुका है उसे छोड़ो जो होने वाला है उसे रोको संयम पहरे द्वारा हैं जो बहार से आने वाले को रोकता है संयम चौकी द्वार है चौकीदार पर ज्यादा विश्वास मत करना वह जल्दी बीक जाता है पहरेदार मजबूत रखना कोई बलशाली आयेगा तो चौकी दार को हटा कर अंदर घुस जायेगा महानुभाव चौकी दार घर के किसी व्यक्ति को रखना जो मरने को भी तैयार हो लेकिन स्थान ना छोड़े ऐसे ही संयम दृढ़ चाहिए अंदर कुछ भी होता रहे बहार से कोई नहीं आना चाहिए छोटी छोटी बातें में नियम संयम तोड़ देते है संयम के मार्ग अच्छे अच्छे डीग जाते हैं संयम लेना कोई मजाक नहीं है संयम होने पर साक्षात भगवान,गुरु खड़े है तब भी संयमी डिगता नहीं है।

4.मनुष्यता-तुम्हारे लिए मनुष्य पने की अनुभूति नहीं हो रहीं तुम्हें अनुभूति होती हैं दुसरे दारा दिये गये उपमा को ही याद रखते हैं जो नाम आपको गुरु ने दिया पिता ने दिया हैं वही तक सीमित ही रह जाता है तुम्हें मनुष्य पने का अनुभव हो नहीं रहीं जब तुम्हें होगी तब ही मनुष्यता मानवता आयेगी मनुष्य पने की अनुभूति होगी।
5.सत्य-पर्याय द्रव्य को विलीन मत करो,द्रव्य मे पर्याय विलीन हो जाये तो फर्क नहीं पडता,ज्ञान में आत्मा को विलीन मत करो संपूर्ण रूप से हमने आपके द्वारा जो पाया है जो सत्य तक कब पहुंच जाओगे सत्य पर जिंदगी मत बिताना सत्य को आचरण में मत लाना द्रव्य को जानो द्रव्य को आचरण मे मत लाना सत्य को जान रहे हो सत्य जिस दिन अनुभव में आ जाता है मात्र साक्षी भाव रह जाता है।

6.तत्व तथ्य-सारी सृष्टि को जब तत्व की दृष्टि से देखते हैं तो तथ्य और तत्व नजर आता है जब स्वार्थ की दृष्टि से देखते हैं तो तथ्य और तत्व नजर नहीं आते सब ने अपनी दृष्टि से देखते हैं जब स्वार्थ ही बनता है वस्तु तत्व गायब हो जाता है अनुभव में आ रहा है जैन श्रावक हुं लेकिन सत्य नजर नहीं आ रहा हैं यह सापेक्ष है हमे कब अनुभूति हुई कि हम जीव है,मनुष्य का अनुभव नहीं हो रहा हैं हम सत्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

प्रवचन से शिक्षा-पाप का त्याग करने से कुछ नहीं होगा पाप के वाद पुण्य का भी त्याग करना पड़ेगा
सकंलन ब्र महावीर