चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव तर्क वाचस्पति108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
भोजन बनाने वाला बुलाकर खिलावे तो आहार है,मांग कर खावे तो भोजन हैं भीख हैं
1.भोजन निमंत्रण से-घर में भोजन निमंत्रण से करता है वह साधु के समान आहार करता है भरत चक्रवर्ती ने कभी मांगकर भोजन नहीं किया अपने घर से मांग कर नहीं करना, निमंत्रण से खाओ शुगन है, मांग कर खाना भिखारी बनाता है ,अपने घर में मांग कर नहीं खाना भोजन बनाने वाला बुलाकर खिलावे तो आहार है, मांग कर खावे तो भोजन हैं भीख हैं।
2.धन का उपयोग-आप धन किसलिए चाहते हो दूसरे को धनी बनाने के लिए उसका उपयोग करते हो या दूसरे को नौकर बनाने के लिए करते हो उसका उपयोग दूसरे को धनी बनाने के लिए करो।
3.पुण्य का फल-एक निमित्त जो आलसी हो चुका है मेरा कार्य दुनिया करे ऐसी धारणा बन चुकी हैं मेरा कार्य दूसरा करें तब तक आपको धर्म नहीं होगा मोक्ष नहीं होगा यदि हमारा कार्य दुसरा करें तो एक दिन हमको दुसरो के कार्य करना पडेगा उसको कोई नहीं रोक सकता जो पुण्य के फल की इच्छा से भोगता है पुण्य उसको पापी बना देता हैं पुण्य के फल की इच्छा करके भोगता है वो पापी हो जाता है।
4.मार्ग-निमित्त शक्ति के दो रूप संसार में रहते हैं तो स्वयंभू शक्ति आना कठिन हैं संसार का कार्य नहीं हो सकता देखा जाता है मजबूरी भी है घटीत होता है वह सिद्धांत होता है मार्ग होता हैं
प्रवचन से शिक्षा-अपनों के सामने मांग कर कुछ नहीं करना सूचना दे सकते हो
सकंलन ब्र महावीर